(प्रारंभिक परीक्षा : संविधान संशोधन से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - संविधान संशोधन अधिनियम के महत्त्वपूर्ण प्रावधान, विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व)
संदर्भ
- हाल ही में, संसद से पारित 127वें संविधान संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् 105 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2021 के रूप में अधिसूचित किया गया।
- यह अधिनियम उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के प्रभाव को कम करने के लिये आवश्यक हो गया था, जिसमें राज्यों ने ‘102वें संविधान संशोधन’ के अधिनियमित किये जाने के बाद 'पिछड़े वर्गों' की सूची में समुदायों को शामिल करने या बाहर करने की अपनी शक्ति खो दी थी।
अधिनियम के प्रमुख बिंदु
- संसद ने उच्चतम न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के मामले में की गई व्याख्या को पूर्ववत करने के लिये संशोधन किया।
- इसका उद्देश्य राज्यों द्वारा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की पहचान करने की उनकी शक्ति को बहाल करना है।
- इसमें विशिष्ट खंड शामिल हैं, जो केंद्र के उद्देश्यों के लिये 'केंद्रीय सूची' रखने के मूल उद्देश्य को बहाल करना चाहते हैं और साथ ही, राज्यों को अपनी संबंधित सूचियों को बनाए रखने की अनुमति प्रदान करते हैं।
- संशोधन के माध्यम से यह प्रावधान किया गया है कि नीतिगत मामलों पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श करने की आवश्यकता एस.ई.बी.सी. की राज्य सूचियों पर लागू नहीं होगी।
- अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित एस.ई.बी.सी. की सूची केवल केंद्र सरकार के उद्देश्यों के लिये होगी और ‘केंद्रीय सूची’ का अर्थ केवल केंद्र सरकार द्वारा और उसके लिये तैयार और अनुरक्षित सूची है।
- इसके अलावा, 105वां संशोधन स्पष्ट करता है कि प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश, कानून द्वारा, अपने उद्देश्यों के लिये एस.ई.बी.सी. की एक सूची तैयार कर सकते हैं और यह सूची केंद्रीय सूची से भिन्न हो सकती है।
- नवीनतम संशोधन ने 102वें संशोधन में दी गई एस.ई.बी.सी. की परिभाषा में भी बदलाव किया है।
- मूल रूप से एस.ई.बी.सी. में उन वर्गों को शामिल किया जाता है, जो अनुच्छेद 342A के तहत वर्णित किये जाते हैं।
- यद्यपि, इस अनुच्छेद में वर्णित पिछड़े वर्गो की सूची को राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
- संशोधन के पश्चात् अब एस.ई.बी.सी. वे हैं, जिन्हें केंद्र सरकार या राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के प्रयोजनों के लिये एक ही अनुच्छेद के तहत माना जाता है।
संशोधन की आवश्यकता
- 102वें संविधान संशोधन के माध्यम से, संसद ने ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ का गठन किया है।
- इस आयोग को केंद्र और राज्यों द्वारा 'सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों' (SEBC) से संबंधित सभी मामलों में परामर्श करने की शक्ति प्रदान की गई।
- संसद ने आयोग को,‘अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग’ के समान अधिकार प्रदान करने के लिये एस.सी.एस.टी. आयोग से संबंधित मौजूदा प्रावधानों के समान, शब्दों का प्रयोग किया।
- इस प्रकार, अनुच्छेद 342A के तहत, यह निर्धारित किया गया था कि राष्ट्रपति, राज्यपालों के परामर्श से प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में एस.ई.बी.सी. की एक सूची को अधिसूचित करेंगे।
- इस सूची को केंद्रीय सूची कहा जाता है और इसे एक बार अधिसूचित करने के पश्चात् केवल संसद के माध्यम से ही इसमें बदलाव किया जा सकता है।
- इसी आधार पर उच्चतम न्यायालय ने मराठा आरक्षण के मामले में चुनौती देने पर विचार करते हुए निष्कर्ष निकाला कि 102वें संशोधन के लागू होने के बाद राज्य अब पिछड़े वर्गों को अधिसूचित या उनकी पहचान नहीं कर सकते हैं।
- इस प्रकार का निर्धारण केवल राष्ट्रपति द्वारा एवं इसमें बदलाव संसद के द्वारा ही किया जा सकता है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
- 102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 के द्वारा संविधान में एक नये ‘अनुच्छेद 338B’ को जोड़ने के साथ ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा तीन सदस्य शामिल हैं। जिनकी नियुक्ति एवं सेवा शर्तों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को सौंपता है, जो ऐसे प्रतिवेदन को संसद के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।