(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, चित्रकला से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - भारतीय कला एवं संस्कृति से संबंधित मुद्दे)
संदर्भ
- अवनींद्रनाथ टैगोर को उनकी 150वीं पुण्यतिथि के अवसर पर पूरे वर्ष भर ऑनलाइन कार्यशालाओं तथा वार्ताओं के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी।
- ‘अवनींद्रनाथ एट 150: विचित्र रिविजिटेड’ शीर्षक से उत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
अवनींद्रनाथ टैगोर: बंगाल चित्रकला के प्रमुख चित्रकार
- अवनींद्रनाथ टैगोर बंगाल चित्रकला के प्रमुख चित्रकार थे। 20वीं सदी के आरंभिक वर्षों में भारत में राष्ट्रवादी भावनाएँ बढ़ी। साथ ही, भारतीय सांस्कृतिक इतिहास और अध्यात्म की ख़ोज में पुनर्जागरण की शुरुआत हुई।
- परिणामस्वरूप चित्रकला की एक नई शैली ‘बंगाल चित्रकला’ का विकास हुआ, जिसे पुनर्जागरण स्कूल या रिवाइवलिस्ट स्कूल भी कहा जाता है।
- अवनींद्रनाथ टैगोर ने अरेबियन नाइट शृंखला में पहले से चली आ रही भारतीय चित्रकलाओं से भिन्न बंगाल शैली को प्रस्तुत किया।
- इस शैली में अवनींद्रनाथ ने पश्चिमी कला के प्रभावों को कम करने तथा स्वदेशी मूल्यों से युक्त चित्रों के निर्माण का प्रयास किया।
- अवनींद्रनाथ टैगोर ने ‘भारत माता’ और मुग़ल विषयवस्तु पर आधारित चित्र बनाए।
बंगाल कला की अन्य चित्रकलाएँ
कालीघाट चित्रकला
- कालीघाट चित्रकला का विकास 19वीं सदी में कोलकाता के ‘कालीघाट मंदिर’ से माना जाता है।
- इसमें चित्रों को बनाने के लिये पक्षी और बछड़े के बाल से बने ब्रश का प्रयोग किया जाता है।
- इस शैली में नव धनाढ्यों के नाटकीय तौर-तरीकों पर कटाक्ष के चित्र बनाए गए।
- साथ ही, महिला शिक्षा की शुरुआत के परिणामस्वरूप महिलाओं एवं पुरुषों की बदलती भूमिकाओं पर भी चित्र बनाए गए हैं।
- इस चित्रकला में मिल में तैयार कागज़ों पर जलीय रंगों की सहायता से चित्र बनाए जाते थे।
- कालीघाट चित्रकला में मुख्यतः हिंदू देवी-देवताओं तथा पारंपरिक किवदंतियों के पात्रों का चित्रण विशेष रूप से होता है।
पटुआ कला
- बंगाल की पटुआ कला लगभग एक हजार वर्ष पुरानी है।
- इसका प्रारंभ मंगल काव्यों या देवी-देवताओं की कहानियों को वर्णित करने वाले चित्रकारों की ग्रामीण परंपरा के रूप में किया गया था।
- परंपरागत रूप से ये कपड़े पर चित्रित की जाती थी और धार्मिक कहानियों को वर्णित करती थी।
- पटुआ अधिकतर राज्य के मिदनापुर ज़िले से संबंधित है।
अन्य प्रमुख तथ्य
- अवनींद्रनाथ टैगोर एक कलात्मक मुहावरे के पहले प्रमुख प्रतिपादक थे, जिन्होंने औपनिवेशिक शासन के तहत कला के पश्चिमी मॉडलों के प्रभाव का सामना करने के लिये ‘मुगल और राजपूत शैलियों’ का आधुनिकीकरण करने का प्रयास किया था।
- स्वदेशी विषयों की उनकी अनूठी व्याख्या ने एक नई जागृति पैदा की और भारतीय कला के पुनरुद्धार की शुरुआत की।
- अवनींद्रनाथ टैगोर ने अपने भाई गगनेंद्रनाथ टैगोर के साथ मिलकर वर्ष 1907 में कलकत्ता में ‘इंडियन सोसायटी ऑफ़ ओरियंटल आर्ट्स’ की स्थापना की।
- बंगाल शैली के एक अन्य प्रमुख चित्रकार नंदलाल बोस हैं। इन्होंने आधुनिक चित्रकला को और अधिक विकसित करने में अपना योगदान दिया।
- काली पृष्ठभूमि पर सफ़ेद रंग से बनाए गए गांधीजी के चित्र को नंदलाल बोस की एक प्रमुख रचना माना जाता है।
निष्कर्ष
टैगोर ने जिस प्रकार की विचारोत्तेजक कविताएँ लिखीं, उसी प्रकार के भाव उनके चित्रों में भी प्रदर्शित होते हैं। इसके अतिरिक्त, टैगोर के चित्रों में आध्यात्मिक पक्ष भी अधिव्यक्त होता है।