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कृषि विकास हेतु सोलह सूत्री कार्ययोजना

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3 : भारतीय अर्थव्यवस्था)

चर्चा में क्यों ?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में कृषि व किसान कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘सोलह सूत्री कार्ययोजना’ (16-point action plan) का प्रस्ताव किया था।

पृष्ठभूमि

सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। बजट 2020-21 के तीन प्रमुख घटक हैं- आकांक्षी भारत (Aspirational India), सभी के लिये आर्थिक विकास (Economic development for all) और ज़िम्मेदार समाज (Caring Society) हैं। कृषि क्षेत्र को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने एवं किसानों की उन्नति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रस्तुत इस ‘सोलह सूत्री कार्ययोजना’ को उपर्युक्त तीन घटकों में से ‘आकांक्षी भारत’ के एक भाग के रूप में संदर्भित किया गया है।

16-सूत्री कार्ययोजना के प्रमुख बिंदु

  • राज्यों में कृषि उपज बढ़ाने तथा विपणन को सहज बनाने के लिये केंद्र द्वारा उन्हें 3 आदर्श कानूनों को लागू करने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा। इन कानूनों में 'मॉडल कृषि भूमि पट्टा अधिनियम, 2016; मॉडल कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2017 तथा  मॉडल कृषि उत्पाद और पशुधन संविदा कृषि और सेवाएँ (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2018’ शामिल हैं।
  • कृषि ऋण का लक्ष्य 12 लाख करोड़ से बढ़ाकर 15 लाख करोड़ करने का फैसला किया गया है। विगत एक दशक में कई राज्यों को कुल मिलाकर 4.7 लाख करोड़ के कृषि ऋण का नुकसान हुआ है, जो उद्योग स्तर पर बैड लोन के 82 प्रतिशत के बराबर है।
  • जल की समस्या से जूझ रहे 100 जिलों में सुधार हेतु व्यापक उपाय किये जाने का प्रस्ताव किया गया है। 'प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान' (PM KUSUM) योजना के तहत बीस लाख किसानों को सोलर पंप स्थापित करने हेतु सुविधा मुहैया कराने का प्रस्ताव किया गया है।
  • किसानों को उनकी खाली अथवा बंजर भूमि पर उन्हें सौर ऊर्जा उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने और अधिशेष बिजली ग्रिड को बिक्री करने हेतु योजना का आरम्भ किया जाएगा। किसानों को सोलर ग्रिड से जोड़ने के संदर्भ में 'अन्नदाता' के साथ ही ‘उर्जादाता’ के रूप में भी परिभाषित किया गया है।
  • उर्वरकों (Fertilizer) के संतुलित प्रयोग पर बल देने के साथ ही खाद (Manure) व कम पानी के प्रयोग पर अधिक बल दिया जाएगा। मनरेगा अधिनियम का प्रयोग चारा क्षेत्र (Fodder Farm) के विकास हेतु भी किया जा सकेगा।
  • 'एक जिला एक उत्पाद' के तहत बेहतर विपणन और निर्यात हेतु जिला स्तर पर बागवानी (Horticulture) क्षेत्र को गति प्रदान किया जाएगा।
  • शीघ्र ही खराब होने वाले कृषि उत्पादों व दूध के लिए पी.पी.पी. मोड में 'किसान रेल' का भी प्रावधान किया गया है। साथ ही, वर्ष 2025 तक दुग्ध प्रसंस्करण क्षमता को दोगुना करके 108 मीट्रिक टन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
  • उचित कृषि मूल्य प्राप्त करने तथा कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए घरेलू व अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर नागर विमानन मंत्रालय द्वारा 'कृषि उड़ान' योजना का आरम्भ किया जाएगा। इससे पूर्वोत्तर तथा आदिवासी जिलों को विशेष रूप से अधिक लाभ होगा।
  • स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी.) द्वारा चलाई जाने वाली 'ग्राम भंडारण योजना' किसानों को धारण क्षमता बेहतर करने के साथ ही महिलाओं की स्थिति में भी सुधार करेगा। महिलायें एस.एच.जी. धनलक्ष्मी योजना के तहत मुद्रा या नाबार्ड से सहायता का लाभ उठा सकती हैं।
  • नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) देश भर के गोदामों के मानचित्रण और जियोटैग हेतु कार्य शुरू करने और नए वेयरहाउस व कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने के लिये वित्त पोषण प्रदान करेगा। वेयरहाउसिंग को ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) से जोड़ने का प्रस्ताव है।
  • वर्षा सिंचित क्षेत्रों में एकीकृत कृषि प्रणाली का विस्तार कर गैर-फसली मौसम में सौर पंप, सौर ऊर्जा उत्पादन, मधुमक्खी पालन इत्यादि बहुस्तरीय उत्पादन को प्रोत्साहित किये जाने का प्रस्ताव किया गया है। इसके अतिरिक्त, 'शून्य बजट प्राकृतिक कृषि' (ZBNF) को बढ़ावा देने के साथ ऑनलाइन राष्ट्रीय जैविक बाजार को सुदृढ़ता प्रदान की जायेगी।
  • मवेशियों के खुर व मुंह में होने वाली बीमारी ‘ब्रुसेलोसिस’ और भेड़ व बकरियों में होने वाली बीमारी ‘पेस्ट डेस पेटिस रुमिनैंट’ (पी.पी.आर.) को वर्ष 2025 तक समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • समुद्री मत्स्य संसाधनों के विकास, प्रबंधन और संरक्षण के लिए रूपरेखा तैयार की जाएगी। समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा एवं सुस्थिरता को सुनिश्चित करते हुए उत्तरदायी समुद्री मत्स्यन पर ध्यान केन्द्रित किया जायेगा।
  • मत्स्य उत्पादन वर्ष 2022-23 तक बढ़ाकर 200 लाख टन करने का प्रस्ताव है। साथ ही, शैवाल और समुद्री खरपतवार और केज कल्चर को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिये युवाओं को 'सागर मित्र' के रूप में शामिल किया जाएगा और 500 मत्स्यपालक उत्पादक संगठनों का निर्माण किया जायेगा।
  • गरीबी उन्मूलन हेतु स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) का विस्तार किया जाएगा।

उपर्युक्त सभी कार्य योजनाओं के संदर्भ में वर्तमान वित्त वर्ष के लिये कृषि व सम्बंधित गतिविधियों; सिंचाई तथा ग्रामीण विकास हेतु 2.83 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। जिसमें से 1.60 लाख करोड़ रूपये कृषि, सिचाई और इससे जुड़े क्षेत्रों के लिये और 1.23 लाख करोड़ रुपए ग्रामीण विकास और पंचायती राज के लिये आवंटित किया गया है।

सीमाएँ

  • कृषि और ग्रामीण विकास प्राथमिकता में होने के बावजूद इस क्षेत्र को कुल बजट की तुलना में दस फीसदी से भी कम आवंटन हुआ है, जो कि अपर्याप्त है।
  • किसानों की कृषि लागत भी आय की तुलना में अधिक है, उर्वरक सब्सिडी में कटौती, बिजली और डीजल का अत्यधिक मूल्य कृषि लागत को बढ़ाते हैं।
  • उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य का अभाव एवं उत्पादों के विपणन में बिचौलियों की भूमिका।
  • असमान अनुदानयुक्त ऋण वितरण एवं ऋण माफ़ी की समस्या।
  • जीरो बजट प्राकृतिक कृषि का उल्लेख जुलाई 2019 के बजट में भी किया जा चुका है किंतु अभी तक इस पर ठोस कार्ययोजना का अभाव है।

क्या हो आगे की रणनीति?

  • कृषि क्षेत्र के विकास व किसानों की दशा में सुधार लाने हेतु पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता कृषि लागत को कम करना है।
  • कृषि हेतु बिजली, डीजल आदि के मूल्यों में कमी करना। साथ ही, गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ते दामों में बीज, कीटनाशकों एवं उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • कुल बजट में कृषि क्षेत्र के बजट आवंटन में वृद्धि करना चाहिए।
  • अनुदानित ब्याजदर पर ऋण देने तथा कृषि ऋण माफी के सिलसिले को सीमित करते हुए किसानो को इनपुट अनुदान के रुप में वितरित किया जाना चाहिये ताकि इस अनुदान राशि का उपयोग केवल कृषि कार्य के लिये ही हो।
  • कृषि क्षेत्र को और प्रतिस्पर्धी बनाने के साथ तकनीकी के अधिक प्रयोग पर बल देते हुए सतत फसल चक्र को अपनाना आवश्यक है।
  • लागत की तुलना में उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य का उचित निर्धारण करना आवश्यक है। हालांकि कृषि के विकास एवं किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने की दिशा में सरकार द्वारा कई प्रयास (यथा- कुसुम योजना, ई-नाम, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना इत्यादि) किये जा रहे हैं, किंतु सही मायने में इस दिशा में अभी और भी ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
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