(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
16वें वित्त आयोग का गठन दिसंबर 2023 में किया गया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित 16वें वित्त आयोग ने अपना कार्य प्रारंभ कर दिया है।
वित्त आयोग का प्राथमिक कार्य
- केंद्रीय वित्त आयोग मुख्यत: संचित निधि (Consolidated Fund) के हस्तांतरण पर ध्यान केंद्रित करता है। हालाँकि, 73वें एवं 74वें संविधान संशोधनों के बाद से स्थानीय निकायों को संघीय प्रणाली के भीतर महत्वपूर्ण मान्यता मिली है।
- इन संशोधनों के माध्यम से उप-खंड 280(3)(BB) एवं (C) वित्त आयोग को पंचायतों व नगर पालिकाओं के समर्थन के लिए राज्य समेकित निधि को बढ़ाने के उपायों की सिफारिश करने का अधिकार देते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 280(1) के अनुसार, संघ व राज्यों के बीच करों की शुद्ध आय के वितरण, अनुदान-सहायता और राज्यों के राजस्व एवं नियत अवधि के दौरान पंचायतों के संसाधनों की पूरकता के लिए आवश्यक उपाय करने तथा आय से संबंधित हिस्सेदारी को राज्यों के बीच आवंटन पर सिफारिश करने के मद्देनज़र एक वित्त आयोग की स्थापना की जाएगी।
16वें वित्त आयोग के बारे में
- 16वें वित्त आयोग का गठन दिसंबर 2023 में किया गया था और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष श्री अरविंद पनगढ़िया को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
- यह आयोग 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाली पांच वर्षों की अवधि के लिए अपनी रिपोर्ट 31 अक्तूबर, 2025 तक उपलब्ध कराएगा।
- राष्ट्रपति की मंजूरी से निम्नलिखित व्यक्तियों को आयोग के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है :
- श्री अजय नारायण झा : पूर्व सदस्य 15वां वित्त आयोग
- श्रीमती एनी जॉर्ज मैथ्यू : पूर्व विशेष सचिव, व्यय
- डॉ. निरंजन राजाध्यक्ष : कार्यकारी निदेशक, अर्थ ग्लोबल
- डॉ. सौम्य कांति घोष : भारतीय स्टेट बैंक समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार
- श्री ऋत्विक रंजनम पांडे को आयोग का सचिव नियुक्त किया गया है।
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16वें वित्त आयोग के लिए संदर्भ-शर्तें
- 16वें वित्त आयोग द्वारा निम्नलिखित मामलों पर सिफारिशें की जानी हैं :
- संघ एवं राज्यों के बीच करों की शुद्ध आय का वितरण, जो संविधान के अध्याय-I, भाग-XII के तहत उनके बीच विभाजित किया जाना है, या किया जा सकता है और ऐसी आय के संबंधित हिस्सेदारी का राज्यों के बीच आवंटन
- वे सिद्धांत जो संविधान के अनुच्छेद 275 के तहत भारत की संचित निधि से राज्यों के राजस्व के सहायता अनुदान और उनके राजस्व के सहायता अनुदान के माध्यम से राज्यों को भुगतान की जाने वाली राशि को नियंत्रित करते हैं। उस अनुच्छेद के खंड (1) के प्रावधानों में निर्दिष्ट उद्देश्यों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए और
- राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों और नगर पालिकाओं के संसाधनों के पूरक उपाय के लिए राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय।
- आयोग आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गठित निधियों के संदर्भ में आपदा प्रबंधन पहल के वित्त पोषण पर वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा कर सकता है और उस पर उचित सिफारिशें कर सकता है।
16वें वित्त आयोग के समक्ष शहरी निकायों से संबंधित प्रमुख मुद्दे
शहरी निकायों की वित्तीय स्थिति
- आर्थिक विकास के इंजन के रूप में शहरी निकाय
- 80 के दशक के मध्य में राष्ट्रीय शहरीकरण आयोग ने शहरों को ‘विकास के इंजन’ के रूप में वर्णित किया।
- शहर भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 66% और कुल सरकारी राजस्व में लगभग 90% का योगदान करते हैं। इस प्रकार, शहर देश के समग्र विकास के लिए एक महत्वपूर्ण स्थानिक क्षेत्र हैं।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि अगले दशक में बुनियादी शहरी अवसंरचना के लिए $840 बिलियन की आवश्यकता है।
- शहरी निकायों के समक्ष वित्तीय चुनौतियाँ
- 11वें वित्त आयोग सहित पाँच आयोगों के प्रयासों के बावजूद शहरों को वित्तीय हस्तांतरण अपर्याप्त बना हुआ है।
- नगर पालिकाओं की राजकोषीय स्थिति खराब है, जो शहर की उत्पादकता एवं जीवन की गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करता है।
- उचित राजकोषीय कार्रवाई के बिना तीव्र शहरीकरण विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- भारत में शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को अंतर-सरकारी हस्तांतरण (Intergovernmental transfers : IGT) सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.5% है, जो अन्य विकासशील देशों (2-5%) से बहुत कम है।
- मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत द्वारा वर्तमान दरों पर शहरी बुनियादी ढाँचे में निवेश अपर्याप्त है और यह शहरी बुनियादी ढाँचे को कमजोर करेगा।
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- इससे जलापूर्ति एवं अनुपचारित सीवेज की समस्या उत्पन्न हो जाएगी।
कराधान प्रणाली
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली की शुरूआत से स्थानीय शहरी निकायों का कर राजस्व (संपत्ति कर को छोड़कर) वर्ष 2012-13 के लगभग 23% से घटकर वर्ष 2017-18 में लगभग 9% हो गया है।
- राज्यों से शहरी निकायों को मिलने वाला आई.जी.टी. बहुत कम हैं।
- राज्य वित्त आयोगों ने वर्ष 2018-19 में राज्यों के स्वयं के राजस्व का केवल 7% ही अनुशंसित किया है।
- सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में आई.जी.टी. की मात्रा में वृद्धि आवश्यक है। शहरी निकायों को वित्तीय रूप से मजबूत करने के 74वें संवैधानिक संशोधन के उद्देश्य के बावजूद तीन दशकों में प्रगति कम रही है।
- 13वें वित्त आयोग के अनुसार समानांतर एजेंसियां और निकाय स्थानीय सरकारों को वित्तीय एवं परिचालनगत दोनों तरह से कमजोर कर रहे हैं।
- स्थानीय सरकारों को धन के साथ-साथ पदाधिकारियों व तकनीकी सहायता के रूप में संघ एवं राज्य सरकारों से समर्थन की आवश्यकता होती है।
जनगणना का महत्त्व
- वर्ष 2021 की जनगणना के अभाव में साक्ष्य-आधारित राजकोषीय हस्तांतरण के लिए वर्ष 2011 के आंकड़ों पर निर्भर रहना होगा जोकि वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित नहीं करता है।
- भारत में लगभग 4,000 वैधानिक शहर और समान संख्या में जनगणना शहर हैं, जिनमें अनुमानित 23,000 गाँव हैं, जो सभी प्रभावी रूप से शहरी हैं।
- इन आँकड़ों को 16वें वित्त आयोग द्वारा शामिल किया जाना चाहिए, जिसमें टियर-2 व 3 शहरों में महत्वपूर्ण प्रवास भी शामिल है।
आगे की राह
- 15वें वित्त आयोग के नौ मार्गदर्शक सिद्धांतों में से कुछ पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है जो निम्नलिखित हैं :
- राज्य के जी.एस.टी. के साथ-साथ संपत्ति कर संग्रह में वृद्धि
- खातों का रखरखाव
- प्रदूषण को कम करने के लिए संसाधन आवंटन
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
- पेयजल
- 16वें वित्त आयोग को भारत की शहरीकरण गतिशीलता पर विचार करना चाहिए और शहरी क्षेत्रों में आई.जी.टी. कम-से-कम दोगुना सुनिश्चित करना चाहिए।
इसे भी जानिए!
15वें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर, 2017 को किया गया था। इसने अपनी अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट के माध्यम से 1 अप्रैल, 2020 से शुरू होने वाली छह वर्षों की अवधि से संबंधित सिफारिशें कीं। पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2025-26 तक मान्य हैं।
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