संदर्भ
193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने,वर्ष 2023 को मोटे अनाज के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया।विदित है की भारत वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक है।
मोटे अनाज (कदन्न)
- मोटे अनाजों के प्रयोग मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही किया जाता रहा है। रूस, नाइजीरिया जैसे देशों में पारंपरिक व्यंजनों के रूप में मोटे अनाजों का व्यापक उपयोग किया जाता है।
- सांस्कृतिक दृष्टि से भी इनका विशेष महत्त्व है, भारत के कुछ राज्यों में विशेष अनुष्ठानों व पर्वों पर इनका भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इनके अंतर्गत मक्का, रागी, ज्वार, बाजरा, जौर, कोदो, सामा आदि को शामिल हैं । ये अनाज पोषक तत्त्वों से युक्त होते है, अतः ये बच्चों, ज़्यादा शारीरिक मेहनत करने वाले कामगारों तथा वृद्ध व्यक्तियों के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- इनकी वुवाई लिये कम जल, श्रम व लागत की आवश्यकता होती है। मोटे अनाज की कृषि, सूखा प्रवण क्षेत्रों के लिये उपयुक्त होने के साथ-साथ फसल की कम अवधि, उच्च कीट प्रतिरोधक क्षमता तथा उर्वरकों के न्यूनतम उपयोग के कारण महत्त्वपूर्ण है। उच्च कीटरोधक क्षमता के कारण इसमें कीटनाशकों का प्रयोग कम करना पड़ता है, जिससे कार्बन फुटप्रिंट में कमी आती है।
- इनकी कृषि को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने अप्रैल 2018 में इसे पोषक अनाज के रूप में अधिसूचित किया तथा वर्ष 2018 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया गया था।
भारत द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव के लाभ
- भारत द्वारा प्रायोजित यह प्रस्ताव बांग्लादेश, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, रूस,सेनेगल के साथ-साथ 70 से अधिक राष्ट्रों द्वारा सह-प्रायोजित था। इसका प्राथमिक उद्देश्य मोटे अनाज से होने वाले स्वास्थ्य लाभ और बदलती जलवायु परिस्थितियों में कृषि के लिये उनकी उपयुक्तता के बारे में जागरूकता का प्रसार करना है।
- इस प्रस्ताव को भोजन की टोकरी में प्रमुख घटक के रूप में मोटे अनाजों को शामिल करने के रूप में देखा जा रहा है।
- ऐतिहासिक रूप से मोटे अनाज की कृषि व्यापक स्तर पर होती रही है। किंतु, वर्तमान में कई देशों में इनका उत्पादन घटा है।मोटे अनाजों की उत्पादन क्षमता, इनसे जुड़े अनुसंधान व् खाद्य क्षेत्र के लिंकेज को बेहतर बनाने के लियेउपभोक्ताओं, उत्पादकों तथा निर्णय निर्माताओं को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- मोटे अनाजों के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के घोषित होने से इसके उत्पादन से जुड़ी जागरूकता फैलाने में मदद मिलेगी। यह विशेषकर सूखा प्रभावी जलवायु परिवर्तन से ग्रस्त क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा, पोषण, आजीविका सुनिश्चित करने,कृषक आय में वृद्धि, गरीबी उन्मूलन तथा सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करेगा।
मोटेअनाजसे होने वाले लाभ
- जून 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार,जलवायु परिवर्तन के कारण अनाज की विभिन्न फसलों पर नकरात्मक प्रभाव पड़ रहा है, परंतु मोटे अनाज की फसलें जलवायु अनुकूल फसलें हैं।
- इसके अतिरिक्त मोटे अनाजों की जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी दोहरी भूमिका है, क्योंकि वे अनुकूलन और शमन दोनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
- पिछले कुछ वर्षों से इन अनाजों के उत्पादन पर विशेष ध्यान नहीं दिये जाने के कारण इनके उत्पादन में कमी आई है। कृषि नीतियों में गेहूँ व धान जैसे अनाजों के उत्पादन को व्यवस्थित रूप से प्रोत्साहित किया गया है, जबकि मोटे अनाजों की अनदेखी की गई है। उपलब्ध आँकड़ों से ज्ञात होता है कि कुछ वर्षों से इनके कृषि क्षेत्र में भारी गिरावट हुई है,यह क्षेत्रफल वर्ष 1965-66 में लगभग 37 मिलियन हेक्टेयर था, जो 2016-17 में घटकर 14.72 रह गया।
- मोटे अनाजों के उपयोग व माँग में कमी का एक कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूँ तथा चावल की सुगम उपलब्धता भी है। सुगमता से उपलब्ध होने तथा इनकी फसलों पर अधिक ध्यान दिये जाने के कारण गेहूँ तथा चावलजैसे अनाजों की माँग व उपयोग में वृद्धि हुई है, जबकि अधिक पोषणयुक्त होने के वावजूद मोटे अनाजों की माँग में कमी आई है।
- अत्यधिक पौष्टिक होने के कारण मोटे अनाजों को प्रोत्साहित कर इनका उपयोग देश के पोषण संकट का समाधान करने के लिये किया जा सकता है, जो अन्य लाभों के अतिरिक्त ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ में भारत की स्थिति को सुधारने में मदद करेगा।
- उच्च रक्तचाप, मधुमेह, पाचन विकार तथा जीवनशैली से संबंधित कई अन्य रोगों के निदान के रूप में मोटे अनाजों का उपयोग किया जाता है।
- अप्रैल 2016 में, संयुक्तराष्ट्र महासभा ने भूख उन्मूलन तथा कुपोषण के सभी रूपों की पहचान करने तथा इसे वैश्विक रूप से समाप्त करने के उद्देश्य से 2016-2025 तक पोषण पर कार्रवाई दशक के निर्णय की घोषणा की थी।
मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने के लिये उठाए गए कदम
- इन्हें प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने 2014 से 2020 के मध्य रागी, बाजरा और ज्वार जैसे अनाजों पर क्रमशः 113%, 72%, 71% न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की थी।
- ओडिशा में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत मोटे अनाजों को भी शामिल किया गया है।
- गहन सुरक्षा संवर्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा के लियेएक पहल के रूप में सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय कृषि विकास योजना’की शुरुआत 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान की गई।इस योजना का उद्देश्य देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये उत्पादन तथा कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों को एकीकृत तरीके से प्रदर्शित करना है।इससे उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन तकनीकों के माध्यम से मोटे अनाज आधारित खाद्य उत्पादों की उपभोक्ता माँग में वृद्धि होने की उम्मीद है।