(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 :विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियाँ, विकास एवं अनुप्रयोग तथा दैनिक जीवन पर उसके प्रभाव)
संदर्भ
हाल ही में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के स्वायत्त निकाय ‘नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान’ (INST) ने दो इन्सुलेट ऑक्साइड परतों के इंटरफेस पर अत्यधिक गतिशील 2D-इलेक्ट्रॉन गैस (2DEG) का उत्पादन किया है।
2d-इलेक्ट्रॉन गैस से संबंधित मुख्य बिंदु
- यह इलेक्ट्रॉन गैस किसी डिवाइस के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक क्वांटम सूचना और सिग्नल को अत्यधिक गतिशीलता(Ultra High Mobility) के साथ स्थानांतरित करने में सक्षम है। साथ ही, यह डाटा भंडारण और मेमोरी को भी बढ़ा सकती है।
- इलेक्ट्रॉन गैस की उच्च गतिशीलता के कारण इलेक्ट्रॉन के नाभिक लंबी दूरी के माध्यम के भीतर आपस में टकराते नहीं हैं, फलस्वरूप वे लंबे समय तक मेमोरी व सूचना को भंडारित करने तथा लंबी दूरी तक स्थानांतरित करने में सक्षम होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, तीव्र प्रवाह के दौरान कम टकराव के कारण उनके मध्य प्रतिरोध बहुत कम होता है, जिससे ऊर्जा की क्षति अपेक्षाकृत कम होती है। इसलिये ऐसे उपकरण जल्दी गर्म नहीं होते हैं तथा उनके संचालन हेतु कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
क्रियाविधि
- इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की कार्यक्षमता में वृद्धि करने के लिये इलेक्ट्रॉन के गुणधर्म में कुछ बदलाव किये जाते हैं। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉन के ‘आवेश’ (Charge) की बजाय उसके ‘चक्रण’ (Spin) का उपयोग किया जाता है, यह प्रक्रिया ‘स्पिन डिग्री ऑफ फ्रीडम’ कहलाती है। इलेक्ट्रॉन के आवेश के आधार पर विकसित प्रौद्योगिकी को ‘इलेक्ट्रॉनिक्स’, जबकि इलेक्ट्रॉन के चक्रण पर आधारित प्रौद्योगिकी को ‘स्पिन्ट्रॉनिक्स’ कहा जाता है। जहाँ ‘इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण’ इलेक्ट्रॉन के ‘आवेश संरक्षण के सिद्धांत’ (Charge Conservation Theory) पर कार्य करते हैं, वहीं ‘स्पिन्ट्रॉनिक्स उपकरण’ इलेक्ट्रॉन के ‘स्पिन वितरण के सिद्धांत’ (Spin Distribution Theory) पर कार्य करते हैं।
- इस सिद्धांत के आधार पर विज्ञान की एक नई शाखा का जन्म हुआ, जिसे वैज्ञानिकों ने ‘स्पिन-इलेक्ट्रॉनिक्स’ या 'स्पिन्ट्रॉनिक्स' का नाम दिया है। यह व्यवस्था 'रश्बा प्रभाव' (Rashba-Effect) की क्रियाविधि पर कार्य करती है, जिसके अंतर्गत एक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली के भीतर स्पिन-बैंड विभाजित होते हैं। स्पिन्ट्रॉनिक्स उपकरण रश्बा प्रभाव की क्रियाविधि पर कार्य कर सकते हैं।
स्पिन्ट्रॉनिक्स तकनीक के अनुप्रयोग
- ‘स्पिन्ट्रॉनिक्स’ के अंतर्गत ठोस अवस्था वाले उपकरणों में इलेक्ट्रॉन के आंतरिक स्पिन और इसके चुंबकीय गुणों का अध्यनन किया जाता है। स्पिन्ट्रॉनिक्स प्रणाली को प्रायः तनु चुंबकीय अर्द्धचालकों (Dilute Magnetic Semiconductors) और हेस्लर मिश्रणों (Heusler Alloys) में अनुभव किया जा सकता है। इस तकनीक का अनुप्रयोग क्वांटम कंप्यूटिंग और न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के क्षेत्र में किया जा सकता है।
- स्पिन्ट्रॉनिक्स (इलेक्ट्रॉन स्पिन-ऑर्बिट टेक्नोलॉजी) के माध्यम से स्मार्टफोन्स, स्मार्ट टेक्नोलॉजी एवं इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी तकनीकों में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहा है। इसके अतिरिक्त, स्पिन्ट्रॉनिक्स समर्थित उपकरणों में ऊष्मण (Heating) की समस्या भी अपेक्षाकृत कम देखने को मिलती है।
नैनो मिशन के बारे में
- वर्ष 2007 में भारत सरकार ने ‘अंब्रेला कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम’ के रूप में नैनो मिशन की शुरुआत की थी।
- नैनो मिशन के तहत किये गए प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैज्ञानिक उपलब्धियों के मामले में दुनिया के शीर्ष पाँच देशों में शामिल हो गया है।
- ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ नैनो मिशन के क्रियान्वयन हेतु नोडल एजेंसी है।
नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (INST) –
- मोहाली (पंजाब) में स्थित ‘नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान’ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है। इसकी स्थापना ‘नैनो मिशन’ के तहत भारत में नैनो विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये की गई थी।
- यह संस्थान नैनो विज्ञान में रूचि रखने वाले जीव विज्ञानियों, रसायन विज्ञानियों, भौतिक विज्ञानियों, इंजीनियरों आदि को एकसाथ लाता है।
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं, विशेष रूप से कृषि, रक्षा, स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा, पर्यावरण, जल इत्यादि क्षेत्रों में प्रौद्योगिकीय विकास को बढ़ावा देना है।