(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश)
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2020 संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ है। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष कार्यक्रम की मुख्य थीम ‘बहुपक्षवाद के लिये हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता की पुष्टि करना’ है।
- संयुक्त राष्ट्र का उद्भव द्वितीय विश्व युद्ध की भयावहता के चलते हुआ था। स्थापना के समय इसका मुख्य लक्ष्य विश्व शांति बनाए रखना और भावी पीढ़ियों को युद्ध के दंश व बुराइयों से बचाना था। इस मंच का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने में सहयोग करना, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार व विश्व शांति को बनाए रखना है।
- 193 सदस्य देशों वाले इस संगठन में 11 जुलाई, 2011 को सबसे नवीनतम सदस्य देश के रूप में दक्षिणी सूडान को शामिल किया गया। इस संगठन में सभी ऐसे देश शामिल हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में, आम सभा के अलावा सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय शामिल हैं।
आगामी दशक के लक्ष्य
- संयुक्त राष्ट्र ने अगले 10 वर्षों को सतत विकास के लिये कार्रवाई और प्रतिपादन का दशक के रूप में नामित किया गया है, जो आगामी पीढ़ी के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
- अगले दस वर्षों के लिये सूचीबद्ध लक्ष्यों में पृथ्वी और पर्यावरण की सुरक्षा, शांति, लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण, डिजिटल सहयोग और स्थायी वित्तपोषण को बढ़ावा देना शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र का उद्भव : विकासक्रम
- विश्व को युद्ध के दंश से बचाने के लिये प्रथम विश्व युद्ध के बाद जून 1919 में वर्साय की संधि के एक हिस्से के द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘राष्ट्र संघ’ (The League of Nations) की नींव रखी गई।
- हालाँकि, जब वर्ष 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो लीग लगभग अस्तित्वहीन सी हो गई और ज़िनेवा स्थित इसका मुख्यालय पूरी तरह से अर्थहीन रहा।
- फलस्वरूप अगस्त 1941 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के मध्य हुई गुप्त मुलाकात के बाद ‘अटलांटिक चार्टर’ के नाम से एक वक्तव्य जारी किया गया।
- दिसम्बर 1941 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल हुआ और पहली बार ’संयुक्त राष्ट्र’ शब्द राष्ट्रपति रूज़वेल्ट द्वारा उन देशों के लिये प्रयोग किया गया, जो धुरी शक्तियों के खिलाफ एकजुट थे।
- 1 जनवरी, 1942 को 26 मित्र देशों के प्रतिनिधियों ने वाशिंगटन डी.सी. में संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर किये, जिसमें मूलत: मित्र देशों के युद्ध उद्देश्यों के बारे में बताया गया था।
- अंततः 51 (पोलैंड ने उसी वर्ष परंतु बाद में हस्ताक्षर किया था, अत: 50+1 देश) देशों द्वारा अनुसमर्थित होने के बाद 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया, जिसमें पांच स्थायी सदस्य (फ्रांस, चीन गणराज्य, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका) और 46 अन्य हस्ताक्षरकर्ता शामिल थे। महासभा की पहली बैठक 10 जनवरी, 1946 को सम्पन्न हुई।
- संयुक्त राष्ट्र के चार मुख्य लक्ष्यों में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना, राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बंध विकसित करना, वैश्विक समस्याओं को हल करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना और इन सामान्य हितों की प्राप्ति हेतु राष्ट्रों के कार्यों में सामंजस्य के लिये एक केंद्र के रूप में कार्य करना था।
संयुक्त राष्ट्र : तथ्य
- भारत उन देशों में शामिल था, जिन्होंने यू.एन. चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भारत सबसे अधिक सहयोग करता है।
- संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क में है। इस मुख्यालय के अलावा और अहम संस्थाएँ जिनेवा और कोपनहेगन आदि में भी स्थित हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृत भाषाओं में कुल छह भाषाएँ हैं, जिनमें अरबी, चीनी, अंग्रेज़ी, फ्रांसीसी, रूसी और स्पेनिश शामिल हैं, परंतु इनमें से केवल अंग्रेज़ी और फ्रांसीसी को ही संचालन की भाषा माना गया है। अरबी और स्पेनिश भाषा को इसमें वर्ष 1973 में शामिल किया गया था।
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संयुक्त राष्ट्र के 75 वर्ष : उपलब्धियाँ
- स्वतंत्रता आंदोलनों और बाद के वर्षों में वि-उपनिवेशीकरण ने इसकी सदस्यता का विस्तार किया और वर्तमान में 193 देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं।
- इन 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र ने बड़ी संख्या में वैश्विक मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों के समाधान के लिये अपने दायरे का विस्तार किया है।
- गठन के तुरंत बाद इसने वर्ष 1946 में परमाणु हथियारों के उन्मूलन की प्रतिबद्धता का प्रस्ताव पारित किया।
- वर्ष 1948 में चेचक, मलेरिया, एच.आई.वी. जैसे संचारी रोगों से निपटने के लिये इसने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का गठन किया। वर्तमान में WHO कोरोनोवायरस महामारी से निपटने वाला शीर्ष संगठन है।
- वर्ष 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने द्वितीय विश्व युद्ध के कारण विस्थापित हुए लाखों लोगों की देखभाल के लिये शरणार्थियों के लिये उच्चायुक्त (Commissioner for Refugees) कार्यालय बनाया। यह दुनिया भर में शरणार्थियों द्वारा सामना किये जा रहे संकटों के लिये प्रमुख समाधान प्रस्तुत करता है।
- वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का निर्माण किया गया था। वर्ष 2002 में युद्ध अपराध, नरसंहार और अन्य अत्याचारों के आलोक में यू.एन. ने संयुक्त राष्ट्र आपराधिक न्यायालय की स्थापना की।
विफलताएँ
- कई मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र और उसकी अनुषंगी इकाईयों की आलोचन भी की गई है। उदाहरण के लिये वर्ष 1994 में संगठन रवांडा नरसंहार को रोकने में विफल रहा था।
- वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में कांगो गणराज्य में यौन दुराचार के आरोप सामने आए थे और इसी तरह के आरोप के मामले कम्बोडिया और हैती से भी सामने आए हैं।
- वर्ष 2011 में दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन वर्ष 2013 में छिड़े गृहयुद्ध में हुए रक्तपात को रोकने में असफल रहा था।
- इसके अतिरिक्त परमाणु हथियारों के अप्रसार पर अंकुश न लगा पाने के साथ-साथ शरणार्थियों की बढती संख्या और समस्या के कारण भी इसकी आलोचना हुई है।
- आतंकवाद की परिभाषा सहित उसको रोकने के प्रभावी उपायों के आभाव और बढ़ते नस्लवाद को न रोक पाने में भी इसकी कार्यप्रणाली बहुत प्रभावी नहीं रही है। साथ ही सुरक्षा परिषद् के विस्तार और उसकी कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं।
- वर्तमान महामारी के प्रसार को रोक पाने और उचित समय पर उचित जानकारी के आभाव के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन की तीखी आलोचना की गई है तथा इस मंच के राजनीतिकरण का आरोप लगा है।
भारत और सुरक्षा परिषद्
- संयुक्त राष्ट्र में सुधार की माँग करने में भारत सबसे अग्रणी रहा है। भारत विशेषकर इसके प्रमुख अंग सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर सक्रिय और प्रयत्नशील है।
- दशकों से विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और सबसे अधिक आबादी वाले देशों में शामिल होने के कारण इसका दावा काफी मज़बूत है।
- एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड भी अच्छा रहा है और वह संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में अग्रणी भूमिका में रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय मित्र राष्ट्रों (बाद में चीन) द्वारा UNSC की स्थायी सदस्यता व वीटो का अधिकार आज शायद ही दुनिया के नेतृत्व के पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व का दावा कर सकता है।
- यू.एन.एस.सी. में अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों से एक भी स्थायी सदस्य शामिल नहीं हैं और बहुपक्षीय व्यवस्था के स्तम्भ, जैसे- ब्राज़ील, भारत, जर्मनी और जापान के G-4 समूह को लम्बे समय से नज़रअंदाज किया गया है।
- सदस्यों के बीच ध्रुवीकरण और UNSC के पाँच स्थाई सदस्यों के भीतर लगातार विभाजन प्रमुख निर्णयों और समाधान में बाधा उत्पन्न करते हैं।
आगे की राह
- वर्तमान में व्यापक सुधारों के अभाव में संयुक्त राष्ट्र 'विश्वसनीयता के संकट' का सामना कर रहा है। पुराने ढाँचे या व्यवस्था के साथ आज की चुनौतियों का सामना किया जाना कठिन है, अत: इसमें ढाँचागत और प्रणालीगत सुधार की व्यापक आवश्यकता है।
- विश्व को एक सुधारवादी बहुपक्षीय मंच की आवश्यकता है, जो कि आज की वास्तविकता को दर्शाने के साथ-साथ सभी हितधारकों को आवाज उठाने का मौका दे। यह समकालीन चुनौतियों का समाधान करने वाला और मानव कल्याण पर ध्यान देने वाला होना चाहिये।
- आज बहुपक्षीय चुनौतियाँ कहीं अधिक है लेकिन समाधानों का अभाव है, अत: एक बेहतर विश्व शासन की आवश्यकता है। खासतौर पर लैंगिक समानता के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बीजिंग कार्रवाई मंच के 25 साल बाद भी लैंगिक समानता की समस्या दुनिया भर में सबसे चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
- इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के भीतर ध्रुवीकरण है, इसलिये निर्णय या तो नहीं लिये जाते हैं या उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र के कारण आज दुनिया बेहतर जगह बन पाई है और इसने शांति व विकास के कार्यों को बेहतर किया है। हालाँकि, इससे विश्व ने काफी कुछ हासिल किया है लेकिन मूल मिशन अब भी अधूरा है। आज जिस दूरगामी घोषणा पत्र को अपनाया जा रहा हैं उससे पता चलता है कि इन क्षेत्रों में अभी भी काफी काम करने की ज़रूरत है, जैसे- संघर्ष को रोकने, विकास सुनिश्चित करने, जलवायु परिवर्तन को रोकने, असमानताओं को कम करने और डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने में सहयोग की आवश्यकता है। इस घोषणा पत्र में संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता को भी स्वीकार किया गया है।