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बारिश से प्रभावित हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में 8 खाली इमारतें गिर गईं

प्रारम्भिक परीक्षा – हिमाचल प्रदेश में भू-स्खलन से हुई क्षति
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन पेपर-3

सन्दर्भ

  • बारिश से प्रभावित हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में गुरुवार को लगभग आठ खाली इमारतें ढह गईं, जबकि शिमला में शिव मंदिर में भूस्खलन स्थल से एक और शव बरामद किया गया। 
  • कुल्लू के आनी क्षेत्र में इमारत गिरने की घटना में कोई हताहत नहीं हुआ। 
  • शिमला के एसपी संजीव कुमार गांधी ने कहा कि अकेले शिमला में तीन प्रमुख भूस्खलन हुए हैं।

landslide

 भूस्खलन

  • भूस्खलन एक वैज्ञानिक घटना है, यह एक ऐसी घटना है जिसमें भारी वर्षा, बाढ़ या भूकंप के कारण आधारहीन चट्टाने, मिट्टी एवं वनस्पति पहाड़ी ढलानों से गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव में अपने स्थान से खिसककर नीचे गिरते हैं। इस तरह की घटना प्राय: पहाड़ी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड इत्यादि प्रदेशों में विशेष रूप से घटित होती है। 

भूस्खलन (landslide) के लिए जिम्मेदार कारक

  • भूस्खलन (landslide) के लिए जिम्मेदार कारकों में प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों ही कारक महत्वपूर्ण है। 
  • इनमें प्राकृतिक कारकों के अंतर्गत भारी वर्षा, पर्वतों का तीव्र ढलान, चट्टानों की कच्ची परते, पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति, पहाड़ी नदियों द्वारा होने वाला अपरदन, भूकंप गतिविधियां आदि शामिल हैं।
  • मानवीय कारको के अंतर्गत पहाड़ों पर खुदाई, खनन क्रियाएं, वनों की अंधाधुंध कटाई, कच्चे चट्टानों के ऊपर भारी निर्माण कार्य (जैसे माकन,बिल्डिंग) आदि कारक शामिल है, जो भूस्खलन की प्रक्रिया को और तीव्र कर देते हैं।

भूस्खलन के प्रकार -

  • भूस्खलन के प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं- स्लाइड्स, फॉल्स, प्रवाह, मलबे का प्रवाह, मलबे हिमस्खलन, पृथ्वी प्रवाह,मड फ्लो, रेंगना, टोपल्स, फैलाव आदि।

भूस्खलन के कारण  -

तीव्र ढाल-

  • पर्वतीय तथा समुद्री तटीय क्षेत्रों में तीव्र ढाल भू-स्खलन की घटनाओं की तीव्रता में कई गुना वृद्धि कर देता है।
  • ढाल अधिक होने तथा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पहाड़ी ढलानों का कमजोर भाग तीव्र गति से सरककर नीचे आ जाता है ।

जल-

  • जल भू-स्खलन की घटनाओं के प्रमुख कारकों में से एक है। जब ऊपरी कठोर चट्टान की परत के नीचे कोमल शैलों (चट्टान) का स्तर पाया जाता है तब वर्षा होने के कारण दरारों के माध्यम से जल कोमल भाग में प्रवेश कर जाता है। जिस कारण कोमल शेल फिसलन जैसी परत में बदल जाते हैं। परिणामस्वरूप ऊपरी शैल स्तर सरककर नीचे आ जाता है।

अपक्षय तथा अपरदन-

  • माइका, क्ले साइट तथा जिप्सम आदि खनिज पदार्थों की अधिकता वाली चट्टानों में अपक्षय तथा अपरदन की क्रिया तीव्र गति से होती है। जिस कारण चट्टानों में मिश्रित खनिज तत्वों के पानी घुलने (अपक्षय) तथा अपरदन की क्रिया के कारण इन क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं होती रहती है।

वनों की कटाई -

  • मानव ने अपने आर्थिक स्तर में सुधार हेतु वनों का तेजी से कटाव किया है। वनस्पति की जड़े मिट्टी की ऊपरी परत को जकड़ कर रखती है, जिस कारण मृदा के अपरदन एवं बहाव की दर बहुत कम होती है। परंतु वनों की कटाई के कारण क्षेत्र विशेष की मिट्टी ढीली पड़ जाती है जिससे अपरदन की क्रिया में तीव्रता घटित होती है।परिणामस्वरूप भू-स्खलन की घटना को बल मिलता है!

पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण कार्य

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  • पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण कार्य भी भूस्खलन के कारणों में से एक है। पहाड़ी ढालों पर कटान द्वारा सड़क और रेल लाइनों का निर्माण किया जाता है। जिसके कारण पहाड़ी ढाल कमजोर एवं अस्थिर हो जाते हैं, जिससे लेंडस्लाइड की घटना घटित होती है। यह घटना बरसात में और भी तीव्र हो जाता है।

गुरुत्वाकर्षण बल

  • गुरुत्वाकर्षण के कारण भी भूस्खलन होता है। खड़ी और बड़ी चट्टाने भी गुरूत्वाकर्षण बल के कारण खिसक जाती हैं। इस प्रकार की घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होती हैं।

भूस्खलन के प्रभाव–

  • भूस्खलन का प्रभाव क्षेत्र अपेक्षाकृत छोटा एवं स्थानीय होता है, परंतु अपनी तीव्रता एवं बारंबारता के कारण यह विध्वंसकारी सिद्ध होते हैं। उदाहरण के लिए उत्तराखंड में भारी वर्षा, बादल फटने, ग्लेशियर एवं अन्य हिम क्षेत्रों के पिघलने से बर्फ से भारी मात्रा में जल निकासी के कारण लेंडस्लाइड बड़ी घटना घटित हुई।
  • इससे सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई और हजारों लोग फस गए एवं जन धन की अपार क्षति हुई है । 
  • भूस्खलन की वजह से पर्वतीय ढलानों पर निर्मित भवन एवं अन्य निर्माण कार्य (सड़क, पुल आदि) पूरी तरह से ध्वस्त हो जाते हैं, जिससे क्षेत्र विशेष में विकास कार्य बाधित होता है।

भू-स्खलन से बचाव के उपाय  -

  • भूस्खलन से बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-
  • इन क्षेत्रों में पेड़ लगाकर तथा जल के बहाव को रोकने हेतु छोटे बांध बनाकर लेंडस्लाइड को कम किया जा सकता है।
  • इन क्षेत्रों में कृषि का कार्य नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होना चाहिए।

  • पानी के निकास का उचित प्रबंधन ताकि पानी का रिसाव पहाड़ी को सुभेध न बना दे। ऐसी स्थिति में पहाड़ी में भूस्खलन की आशंका बढ़ सकती है
  • कटाव एवं भराव वाले स्थानों पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्यतया ढलानो वाली भूमि होती है एवं समतल भूमि कम मिलती है। ऐसी स्थिति में ढलान को सुदृढता प्रदान करना जरूरी है जैसे मृदा अपरदन को रोकने के लिए पौधे, घास, वृक्ष एवं झाड़ियां लगाना चाहिए। 
  • कटाव व भराव वाले स्थानों पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए। 
  • आवास का निर्माण नदी से अपेक्षित दूरी बनाकर करना चाहिए।
  • भूस्खलन प्रवण क्षेत्र में भवनों को समतल भूमि पर बनाना चाहिए, न कि किसी ढाल वाली भूमि पर ।
  • लैंडस्लाइड प्रभावित क्षेत्र का मानचित्र बनाकर उसे अंकित करना, ताकि उस स्थान को आवास तथा अन्य गतिविधियों के लिए छोड़ा जा सकता हैं।
  • भू-स्खलन प्रवण क्षेत्रों में सड़क तथा बड़े बांधों के निर्माण के क्रम में अपेक्षित सतर्कता जरूरी है एवं यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वहां अवैज्ञानिक विकास कार्य न हो।

प्रारम्भिक परीक्षा प्रश्न : निम्नलिखित में से भूस्खलन के लिए जिम्मेदार कारकों में कौन-सा मानवीय कारक जिम्मेदार नहीं  है?

 (a) पहाड़ों पर खुदाई

 (b) खनन क्रियाएं 

 (c) वृक्षारोपण

 (d) चट्टानों के ऊपर निर्माण कार्य

उत्तर (c)

मुख्य परीक्षा प्रश्न: भू-स्खलन क्या है? इसके घटित होने के कारण क्या है एवं इसके रोक-थाम के उपाय सुझाएँ।

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