(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ )
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 3: निवेश मॉडल, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
मानसून सत्र, 2021 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने उस कर उपबंध को रद्द करने के लिये लोक सभा में ‘कराधान कानून (संशोधन) विधेयक’ प्रस्तुत किया, जो सरकार को ‘पूर्वव्यापी/पूर्वप्रभावी कर’ (Retrospective Tax) आरोपित करने की शक्ति प्रदान करता है।
पृष्ठभूमि
- सरकार ‘वोडाफोन और केयर्न एनर्जी’ के विरुद्ध उन करों पर कानूनी मुक़दमे लड़ रही है, जिन्होंने देश में परिचालन से संबंधित इन संस्थाओं द्वारा किये गए लेनदेन पर पूर्वव्यापी कर का दावा किया है।
- यूनाइटेड किंगडम स्थित दोनों कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के मामले में मुकदमे जीते हैं, जिसमें भारत सरकार ने क्रमशः नीदरलैंड और यू.के. के साथ ‘द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौतों’ का उल्लंघन किया है।
पूर्वव्यापी कर
- एक पूर्वव्यापी कर वह है, जो लंबे समय में लेनदेन पर लगाया जाता है। यह अतीत में किये गए लेनदेन पर एक नया या अतिरिक्त कर हो सकता है।
- आदर्श रूप से, पूर्वव्यापी कर अतीत और वर्तमान में नीतियाँ भिन्न होने पर पुरानी नीति के तहत पहले भुगतान किये गए कर के रूप में जाना जाता है।
- पूर्वव्यापी कराधान एक राष्ट्र को कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं और सौदों पर कर लगाने के लिये एक नियम को लागू करने की अनुमति देता है तथा इसे कानून पारित होने की तारीख से पहले के समय से कंपनियों पर आरोपित किया जाता है।
- उदाहरणार्थ, यदि कानून में कोई संशोधन करके अतीत की एक निर्दिष्ट तिथि से कर लागू होता है, लेकिन भविष्य में नहीं, तो इसे ‘पूर्वव्यापी संशोधन’ कहा जाता है। इसलिये, पूर्वव्यापी कर का अर्थ है, अतीत में एक निर्दिष्ट तिथि से संशोधन के माध्यम से कर आरोपित किया जाना।
- भारत के अतिरिक्त, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया आदि कई अन्य देशों ने कंपनियों पर पूर्वव्यापी कर आरोपित किये हैं।
संशोधन के कारण
- सरकार ने कंपनियों से 17 मामलों में कर की माँग की थी, लेकिन वोडाफोन और केयर्न ने सबसे ज़्यादा ध्यान आकर्षित किया। दोनों कंपनियों ने द्विपक्षीय समझौतों के तहत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता (International Arbitration) शुरू की थी।
- वोडाफोन को सितंबर 2020 में हेग में स्थायी मध्यस्थता अदालत में ₹22,000 करोड़ के मामले में जीत हुई।
- इस वर्ष केयर्न ने अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर, मॉरीशस और नीदरलैंड के न्यायालयों में सरकारी स्वामित्व वाली एयर इंडिया के विमान जैसी भारतीय संपत्तियों की ज़ब्ती के लिये आवेदन किया था।
- इसने फ्राँस में एक कानूनी आदेश भी प्राप्त किया, जिसमें पेरिस में भारत के स्वामित्व वाली कुछ अचल संपत्ति को फ्रीज़ किया गया, जिसकी कीमत लगभग 24 मिलियन डॉलर थी।
- हालाँकि, ये मामले अपील में हैं। इसी कारण मध्यस्थता के मामलों में हानि और केयर्न की विदेशों में भारत की संपत्ति की खोज ने सरकार को मज़बूर किया है।
भारत में विवादास्पद पूर्वव्यापी कर का इतिहास
- वर्ष 2012 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार द्वारा पूर्वव्यापी कर प्रावधान प्रस्तुत किया गया था।
- तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद में एक विधेयक पारित करवाकर केयर्न और वोडाफोन जैसी कंपनियों को कानून में पूर्वव्यापी परिवर्तनों के आधार पर करों का भुगतान करने के लिये बाध्य किया था।
- यह आयकर अधिनियम, 1961 में एक संशोधन था, जिसे मई 2012 में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई।
- इससे सरकार को कंपनियों को उस तारीख से पहले हुए ‘विलय और अधिग्रहण’ पर करों का भुगतान करने के लिये अनुमति मिली।
- उस समय यू.के. स्थित टेलीकॉम दिग्गज वोडाफोन ने हॉगकॉग स्थित हचिसन में 11 बिलियन डॉलर में 67% हिस्सेदारी खरीदी थी।
- इसके लिये भारत सरकार ने पूंजीगत लाभ में ₹7,990 करोड़ की मांग करते हुए कहा था कि कंपनी को हचिसन को भुगतान करने से पहले स्रोत पर कर कटौती करनी चाहिये थी।
- ऐसा ही एक अप्रत्यक्ष हस्तांतरण यू.के. स्थित केयर्न एनर्जी द्वारा किये गए वर्ष 2006 के आंतरिक कॉर्पोरेट पुनर्गठन के विरुद्ध भी किया गया था।
विधेयक के निहितार्थ
- विधेयक के अनुसार “यह तर्क दिया जाता है कि इस तरह के पूर्वव्यापी कर निश्चितता के सिद्धांत के खिलाफ हैं और एक आकर्षक गंतव्य के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाते हैं”।
- “देश आज ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जब महामारी के पश्चात् अर्थव्यवस्था में तेज़ी से सुधार समय की माँग है और इसमें विदेशी निवेश की महत्त्वपूर्ण भूमिका है”।
वैश्विक निवेशकों की प्रतिक्रिया
- विधेयक के अधिनियम बनने के पश्चात् भी केयर्न एनर्जी जैसी संस्थाओं को अपने शेयरधारकों को आश्वस्त करना चाहिये और प्रतिवाद (Caveats) को स्वीकार करना चाहिये।
- संभावित निवेशक इस तथ्य को महसूस कर सकते हैं कि सरकार ने पूर्वव्यापी रूप से कर का दावा नहीं करने का इरादा दिखाया है।
- साथ ही, पूर्वव्यापी कर को समाप्त करने की इच्छा भी दिखाई गई है, क्योंकि इससे विदेशी निवेश के प्रवाह को नुकसान के रूप में देखा जा रहा है।