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जलवायु परिवर्तन का नमक उद्योग पर दुष्प्रभाव

संदर्भ 

जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले उद्योगों में कृषि, मत्स्य पालन, ऊर्जा, वानिकी, सौर नमक उत्पादन आदि शामिल हैं। बदलते मौसम ने नमक उत्पादन से जुड़े लोगों की आजीविका को भी नकर्तमाक रूप से प्रभावित किया है।

सौर नमक/समुद्री नमक के बारे में 

  • ‘समुद्री नमक’ क्रिस्टलीय नमक है जिसे सौर वाष्पीकरण द्वारा समुद्री जल (अथवा लेक ब्राइन) से निकाला जाता है। 
    • प्राकृतिक लैगून या कृत्रिम रूप से निर्मित तालाबों, नमक दलदल या समुद्री नमक के मैदानों (साल्ट पेन) में समुद्री जल के वाष्पीकरण से नमक उत्पादन सबसे पुरानी प्रक्रियाओं में से एक है। 
  • निर्माण प्रक्रिया : शुष्क क्षेत्रों में, ऐसे स्थानों पर नमक को सौर ऊर्जा द्वारा निर्मित किया जाता है जिन क्षेत्रों में वाष्पीकरण की दर, वर्षा की दर से अधिक होती है और स्थिर प्रचलित पवनें होती हैं।
    • सूर्य एवं हवा की क्रिया के कारण खुले बेसिन में समुद्री जल संतृप्ति बिंदु तक वाष्पित हो जाता है तथा सांद्रित लवणीय जल नमक को अवक्षेपित करता है जिसे विभिन्न विधियों द्वारा इकट्ठा किया जाता है।
  • उपयोग : उत्पादित नमक का उपयोग न केवल मानव उपभोग के लिए किया जाता है, बल्कि कास्टिक सोडा, उर्वरक एवं पेंट सहित विभिन्न उत्पादों के लिए कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है।
  • वैश्विक नमक उत्पादन में भारत की स्थिति : भारत 300 लाख मीट्रिक टन वार्षिक उत्पादन के साथ चीन एवं अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा नमक उत्पादक देश है।
  • नमक उत्पादक राज्य : देश की अधिकांश नमक आपूर्ति तीन राज्यों, जैसे- गुजरात, तमिलनाडु एवं राजस्थान से होती है। 
    • इन राज्यों के कुल नमक उत्पादन का 80% से अधिक गुजरात से प्राप्त होता है।
  • महत्व : भारत में लगभग 12,000 से अधिक नमक उत्पादन इकाइयों में अनुमानतः 1 लाख लोग अपनी आजीविका के लिए नमक उद्योग में पर निर्भर हैं।

नमक उद्योग पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • नमक का उत्पादन सीधे तौर पर मौसम की स्थितियों, जैसे- वर्षा, आर्द्रता, तापमान, भूमि की विशेषताओं, सौर प्रकाश एवं वायु की गति से प्रभावित होती है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन का इस उद्योग पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। परिवर्तनशील जलवायु प्रतिरूप नमक उत्पादन प्रक्रिया को विभिन्न परस्पर संबंधित तरीकों से प्रभावित करते हैं।
  • विगत तीन दशकों में गुजरात की जलवायु में अत्यधिक परिवर्तन हुए हैं। वर्ष 1980 से 2020 तक मौसम संबंधी आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार अरब सागर में चक्रवाती तूफानों की आवृत्ति में 52%, उनकी अवधि में 80% की एवं मानसून के बाद की अवधि के दौरान उनकी तीव्रता में लगभग 40% की वृद्धि हुई है।
  • वर्षा पर हुए एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 1983 से 2023 तक 40 वर्ष की अवधि में राज्य के सौराष्ट्र एवं कच्छ क्षेत्रों में औसत वर्षा 400 मिलीमीटर से लगभग दोगुनी होकर 800 मिलीमीटर हो गई है। सौराष्ट्र एवं कच्छ क्षेत्रों में बड़े नमक कारखाने हैं।
    • चक्रवात एवं दीर्घकालिक मानसून के कारण तटीय राज्यों में नमक उत्पादन में गिरावट आई है।
  • अप्रत्याशित बारिश तालाबों में खारे पानी के साथ मिल जाती है जिससे खारापन कम हो जाता है और नमक के क्रिस्टल बनने में देरी होती है।
  • चक्रवात के साथ आने वाली धूल से एकत्रित नमक एवं लवणीय जल दूषित हो जाते हैं जिससे वे बिक्री योग्य नहीं रहते हैं।
  • गुजरात के नमक उत्पादक जिले कच्छ और भावनगर में समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण तटीय जोखिम बहुत अधिक है। 
    • उदाहरण के लिए, मई 2021 में ताउते एवं जून 2023 में बिपरजॉय चक्रवातों से गुजरात में नमक उत्पादन का मौसम समय पूर्व ही समाप्त हो गया और लगभग 30 दिनों के लिए उत्पादन चक्र को बाधित हो गया।
    • इन चक्रवातों के कारण अगरिया नमक किसानों से लेकर बड़ी कंपनियों के नमक उत्पादन में अत्यधिक नुकसान हुआ। 
    • दिसंबर 2023 में तमिलनाडु में मौसमी बाढ़ से प्रमुख नमक उत्पादक जिला तूतीकुडी में लगभग चार लाख टन नमक बह गया। 

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रमुख सुझाव 

  • नवीन अप्रत्याशित परिस्थितियों के लिए नमक निर्माण ईकाइयों के डिज़ाइन में संशोधन की आवश्यकता 
  • मजबूत तटबंधों के साथ साल्ट पेन की पुन: डिज़ाइन 
  • सभी पेन्स में उचित गेट व्यवस्था 
  • बाढ़ एवं बारिश के पानी को बाहर निकालने के लिए उचित जल निकासी
  • मिट्टी को सुदृढ़ बनाए रखने और नमक के साथ मिश्रित अवरोध पैदा करने के लिए लवणसह वनस्पति के बंध बनाना   
  • मानसून के दौरान मौजूदा नमक पेन में ब्राइन के घनत्व को बढ़ाने के लिए रिवर्स पंपिंग प्रणाली का उपयोग करना  
  • वार्षिक शुष्क दिनों की संख्या में कमी आने से प्रति एकड़ क्षेत्र में नमक उत्पादन को बढ़ाने के लिए ब्राइन वाष्पीकरण में वृद्धि और अंतः स्राव को कम करने की आवश्यकता 
  • छोटे नमक उत्पादकों द्वारा एकल चक्र (बडागरा नमक) के बजाय बहु-चक्र (कर्कच नमक) प्रक्रिया अपनान 
  • ब्रोमीन, मैग्नीशियम और कैल्शियम उत्पाद निष्कर्षण के लिए बिटर्न की बिक्री जैसे विकल्पों को अपनाना और जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) का विविधीकरण करना 
  • नमक उत्पादन पर जलवायु प्रभावों की निगरानी करने, प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान का आकलन करने और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए नियामक ढांचे की आवश्यकता 
    • प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के लिए छोटे व सीमांत नमक उत्पादकों को मुआवजा
    • अन्य फसलों की तरह जलवायु परिवर्तन के प्रति इसकी संवेदनशीलता को पहचानने के लिए नमक का एक कृषि वस्तु के रूप में वर्गीकरण करना  
    • नमक उत्पादकों के लिए फसल बीमा का कार्यान्वयन एवं समर्थन 
    • नीतिगत ढाँचे को बढ़ाने के लिए जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाओं में नमक उद्योग को शामिल करना
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