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एरियल सीडिंग तकनीक: अरावली क्षेत्र में पौधारोपण हेतु पहल

(प्रारम्भिक परीक्षा:  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत का भूगोल एवं पर्यावरण पारिस्थिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3:  देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का‘ फेफड़ा’ कहे जाने वाले अरावली पहाड़ियों पर विशेष ध्यान देते हुए हरियाणा वन विभाग द्वारा पूरे राज्य में ‘एरियल सीडिंग तकनीक’ के प्रयोग के द्वारा प्रयोगिक तौर पर बीजारोपण की प्रक्रिया शुरु की गई है।

उद्देश्य

  • इस प्रयोगिक परियोजना का मुख्य उद्देश्य एरियल सीडिंग तकनीक व इसके फैलाव व इसकी प्रभावशीलता को निर्धारित करने के साथ-साथ वनीकरण में वृद्धि करने के सम्भावित उपायों का परीक्षण करना भी है।
  • अधिकारियों का कहना है कि यह तकनीक अरावली के उन क्षेत्रों में वृक्षारोपण में वृद्धि करेगी, जहाँ ढलान बहुत तीव्र हैं। साथ ही, इसके द्वारा उन क्षेत्रों में भी वृक्षारोपण किया जा सकेगा, जो या तो पहुँच से बाहर हैं या पूरी तरह से दुर्गम हैं।
  • पायलट प्रोजेक्ट के दौरान इस पद्धति का उपयोग करके 100 एकड़ क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाएगा।
  • फरीदाबाद से पहले यमुना नगर और महेंद्रगढ़ में भी कुछ समय पूर्व ही इस पद्धति का उपयोग शुरू किया गया था।

एरियल सीडिंग तकनीक -

  • ‘एरियल सीडिंग’ वृक्षारोपण की एक ऐसी तकनीक है जिसमें बीज को मृदा, कम्पोस्ट खाद और अन्य घटकों के मिश्रण से आवृत कर देते हैं। मृदा, कम्पोस्ट खाद व अन्य घटकों से कोटिंग (ढंके) किये हुए इन बीजों को‘सीड बॉल’ कहते हैं।
  • इन ढंके हुए बीजों को हवाई जहाज़, हेलीकाप्टर या ड्रोन जैसे उपकरणों की सहायता से ज़मीन पर बिखेर दिया जाता है।इस पूरी प्रक्रिया को एरियल सीडिंग कहा जाता है।

इस तकनीक की कार्य प्रणाली

  • सीड बॉल को कम ऊँचाई पर उड़ने वाले ड्रोन जैसे उपकरणों की मदद से ज़मीन पर एक लक्षित क्षेत्र में फैला दिया जाता है। ध्यातव्य है कि मृदा, कम्पोस्ट खाद व अन्य घटकों के द्वारा बीज का कोटिंग या लेपन (बीज को ढंकने की क्रिया) हवा में इधर-उधर फैलने के बजाय पूर्व निर्धारित स्थान पर गिराने के लिये आवश्यक वजन प्रदान करती है।
  • पर्याप्त वर्षा की उपस्थिति में फैलाये गए इन बीजों का अंकुरण होगा तथा कोटिंग में प्रयोग किये पोषक तत्त्व इन बीजों के प्रारम्भिक विकास में मदद करेगें।

अरावली पहाड़ियाँ

  • अरावली पहाड़ियाँ दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 692 किमी. लम्बी एक पर्वत श्रृंखला हैं। यह श्रृंखला दिल्ली से प्रारम्भ होकर दक्षिणी हरियाणा और राजस्थान से गुज़रते हुए गुजरात में समाप्त होती है।
  • इस पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी का नाम गुरु शिखर (लगभग 1,722 मीटर) है।
  • अरावली भारत में वलित पर्वत की सबसे पुरानी श्रृंखला है जो आज अपने अवशेष के रूप में उपस्थित है।
  • अरावली पर्वत श्रृंखला में विविध खनिज पदार्थो का भंडार है जिस कारण यह खनन का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है।
  • वर्तमान समय में तीव्र विकास के चलते अरावली क्षेत्र में खनन क्रियाओं व वानोन्मूलन के कारण मरुस्थली करण का विस्तार तथा पर्यावरण को भारी क्षति हुई है।
  • इन समस्याओं को देखते हुए इस क्षेत्र में खनन क्रियाओं पर रोक लगा दी गई है। साथ ही,अनेक प्रकार के नए उपायों के द्वारा इस क्षेत्र को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।

एरियल सीडिंग तकनीक का महत्त्व-

  • तीव्र ढलान वाले या खंडित दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ वनाभाव वाले क्षेत्रों के लिये यह तकनीक महत्त्वपूर्ण है। साथ ही,पारम्परिक वृक्षारोपण की दृष्टि से कठिन क्षेत्रों को भी एरियल सीडिंग तकनीक द्वारा लक्षित किया जा सकता है।
  • इन बीजों के प्रसार के बाद इस पर कोई विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इन बीजों में अंकुरण व विकास की प्रक्रिया स्वत:सम्पन्न होती है। एक प्रकार से इस तकनीक को वृक्षारोपण के ‘दागो और भूल जाओ’ या‘ लगाओ और भूल जाओ’तकनीक के रूप में जाना जाता है।
  • इस तकनीक में मिट्टी में जुताई व खुदाई की आवश्यकता नहीं होती हैं। साथ ही,बीजों के रोपण की भी आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि वे पहले से ही मिट्टी, पोषक तत्वों और सूक्ष्मजीवों से आवृत होते हैं।
  • लेपित किये गए मिश्रण में अन्य पदार्थों व रसायनों का प्रयोग बीजों को पक्षियों, चींटियों और चूहों से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • यह तकनीक वनीकरण, पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ मरुस्थली करण व मृदा क्षरण को रोकने जैसी चुनौतियों से निपटने में सहायक हो सकती है। एरियल सीडिंग तकनीक अरावली के अत्यधिक दुर्गम क्षेत्र में वृक्षारोपण को आसान बनाएगी।

एरियल सीडिंग में प्रयुक्त बीजों की प्रमुख प्रजातियाँ

  • एरियल सीडिंग के लिये चयन किये गए बीजों की प्रजातियों का सम्बंध उस क्षेत्र विशेष से होना चाहिये। साथ ही, ऐसे बीजों की परत कठोर होने के साथ-साथ उन बीजों व वृक्षों के जीवित रहने का दर भी उच्च होना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, बीज का एक उपयुक्त व अनुकूल आकार होना चाहिये, जिससे बीजों को लेपित करके निश्चित आकार एवं वजन का ‘सीड बॉल’ तैयार करने में आसानी हो।
  • साथ ही,पौधारोपण के लिये भी उपयुक्त समय का होना आवश्यक है।

सुझाव -

  • एरियल सीडिंग तकनीक को पारम्परिक वृक्षारोपण तकनीक के स्थान पर प्रयोग किये जाने के लिये वृहद् स्तर पर अनुसंधान की आवश्यकता है।
  • एरियल सीडिंगत कनीक की प्रभावशीलता के मूल्यांकन के लिये प्रयोगिक आधार पर बीजारोपण किये जाने के साथ-साथ वृक्षों के विकास व लागत का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
  • वनीकरण के पारम्परिक तरीकों को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता हैं परंतु एरियल सीडिंगत कनीक का प्रयोग पूरक रूप में किया जा सकता है।
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