(प्रारंभिक परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं एवं मानचित्र आधारित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : द्विपक्षीय और भारत से संबंधित, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
चीन द्वारा अफ्रीका की आर्थिक गतिविधियों में बढ़ता हस्तक्षेप भारत के लिये एक चिंता का विषय बना हुआ है। इसी क्रम में, भारत-अफ्रीका संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारतीय विदेश मंत्री ने अपनी हालिया यात्रा के दौरान ट्वीट करते हुए कहा कि ‘एक ऐतिहासिक एकजुटता आज एक आधुनिक साझेदारी है’।
अफ्रीका-चीन जुड़ाव का विश्लेष्ण
- वर्तमान में चीन, अफ्रीका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है। साथ ही, अफ्रीका चीन का सबसे बड़ा लेनदार भी है।
- चीन का निगम क्षेत्र, अफ्रीका के बुनियादी ढाँचे के बाज़ार पर अपना वर्चस्व स्थापित किये हुए है। साथ ही, अब यह कृषि-इंफ़्रा क्षेत्र में भी प्रवेश कर रहे हैं।
- चीन, अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधनों, उसके अप्रयुक्त बाज़ारों तक अपनी पहुँच को सुनिश्चित करना तथा ‘वन चाइना पॉलिसी’ के समर्थन को प्राथमिकता देना चाहता है।
- श्रम प्रधान विनिर्माण इकाइयाँ, जो चीन से स्थानांतरित हो रही हैं; वह अफ्रीका में ‘चीनी निर्मित औद्योगिक पार्क’ और कम लागत के आर्थिक क्षेत्र को आकर्षित कर रही हैं।
- वे न केवल ‘ब्राण्ड चीन' बनाने के लिये अल्पकालिक मुनाफे को नजरअंदाज करने को तैयार हैं, बल्कि वे लंबी अवधि में बाज़ार पर हावी भी होना चाहते हैं; जिसमें मेज़बान देशों में चीनी मानकों को आगे बढ़ाना शामिल है।
- चीनी टेक कंपनियाँ महत्त्वपूर्ण दूरसंचार अवसंरचना को विकसित कर रही हैं; उद्यम पूँजी कोष, अफ्रीकी फिनटेक फर्मों में निवेश कर रहे हैं, जबकि अन्य छोटे उद्यम पूरे क्षेत्र में विस्तार कर रहे हैं।
- जाम्बिया में, चीनी कंपनियां पारंपरिक चुनौतियों से निपटने के लिये कृषि-तकनीक पेश कर रही हैं, जैसे कि ‘फॉल आर्मीवर्म संक्रमण’ को नियंत्रित करने के लिये ‘ड्रोन तकनीक’ का उपयोग करना।
- उन्होंने महाद्वीप में 20 से अधिक ‘कृषि प्रौद्योगिकी प्रदर्शन केंद्र (ATDC)’ स्थापित किये हैं, जहाँ चीनी कृषि विज्ञानी नई फसल किस्मों को विकसित करने और फसल की पैदावार बढ़ाने पर काम करते हैं।
- ये ए.टी.डी.सी. स्थानीय विश्वविद्यालयों के साथ भागीदारी करते हैं, अधिकारियों के लिये कार्यशालाएँ और कक्षाएँ आयोजित करते हैं। साथ ही, छोटे किसानों को ‘प्रशिक्षण और पट्टे पर उपकरण’ प्रदान करते हैं।
- चीनी कंपनियाँ, जिनके पास कृषि का कोई पूर्व अनुभव नहीं है, वे भविष्य में पारिस्थितिक पार्क बनाने की तैयारी कर रही हैं, जबकि अन्य बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक खेतों की खरीद कर रही हैं।
- इसके अलावा, अफ्रीकी कृषि विशेषज्ञों, अधिकारियों और किसानों को कौशल बढ़ाने तथा चीन में प्रशिक्षित होने के अवसर भी प्रदान किये जा रहे हैं।
- चीन-अफ्रीका आर्थिक संबंधों में घातीय वृद्धि और पारंपरिक पश्चिमी शक्तियों के विकल्प के रूप में बीजिंग के उद्भव ने समूहों की धारणाओं में बदलाव को प्रेरित किया है।
अफ्रीका-चीन संबंधो के नकारात्मक पहलू
- अफ्रीका में आकर बसने वाले चाइना मूल के लोगों और अफ्रीका के मूल निवासियों के मध्य टकराव की स्थिति बन रही है।
- साथ ही, अफ्रीकी-चीन संबंध, द्वीपीय डायस्पोरा, एकतरफा व्यापार, बढ़ते कर्ज, स्थानीय व्यवसायों के साथ प्रतिस्पर्धा और अधिक राजनीतिक तथा सामाजिक आर्थिक अंतर्संबंध बढ़ती नकारात्मक धारणा के साथ जटिल होते जा रहे हैं।
- कभी-कभी यह प्रतीत होता है कि चीन से स्थानांतरित कौशल और अफ्रीका में ज़मीनी हकीकत के मध्य अंतर है।
- कुछ मामलों में, चीन में सिखाई जाने वाली तकनीक स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त, सहायक संसाधनों के अभाव के कारण सीखी गई तकनीक को लागू करने में भी असमर्थता होती है।
- मंदारिन-भाषी (चीन की भाषा) प्रबंधकों द्वारा चलाए जा रहे बड़े वाणिज्यिक फार्म और स्थानीय बाज़ारों में छोटे पैमाने पर चीनी किसानों की उपस्थिति ‘सामाजिक-सांस्कृतिक तनाव’ को बढ़ावा देती है।
भारत के संबंध में महत्त्वपूर्ण तथ्य
- ‘भारत-अफ्रीका कृषि सहयोग’ में वर्तमान में संस्थागत और व्यक्तिगत क्षमता निर्माण पहल शामिल है, जैसे- मलावी में भारत-अफ्रीका कृषि और ग्रामीण विकास संस्थान, सॉफ्ट लोन का विस्तार, मशीनरी की आपूर्ति, कृषि भूमि का अधिग्रहण और अफ्रीकी कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में भारतीय उद्यमियों की उपस्थिति।
- भारतीय किसानों ने अफ्रीका में व्यावसायिक खेती के लिये 6 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि खरीदी है।
- केरल सरकार ने कच्चे काजू की भारी आवश्यकता को पूरा करने के लिये अफ्रीकी देशों से प्रति वर्ष 8 लाख टन कच्चे काजू को आयात करने पर निर्णय लिया है। केरल की कच्चे काजू की उत्पादन क्षमता वर्तमान में 0.83 लाख टन तक सीमित है।
- साथ ही, केरल सरकार द्वारा ‘अफ्रीका-कोल्लम काजू’ को संयुक्त स्वामित्व वाला ब्राण्ड बनाने का भी प्रस्ताव है।
चीन के नकारात्मक पहलुओं से भारत के लिये सबक
- भारत के द्वारा कौशल विकास की माँग के नेतृत्व में देश-विशिष्ट और स्थानीयकृत पाठ्यक्रम को तैयार करने की ओर ध्यान देना चाहिये।
- भारत को अफ़्रीकी रणनीति में जनता से जनता के मध्य संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- हालाँकि, भारत को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि अफ्रीका के लिये रणनीति बनाते समय वहाँ कि स्थानीय एजेंसियों को भी अवसर प्रदान करे, क्योंकि वहाँ की एजेंसियों का मानना है कि निवेशित देश अक्सर उनकी अनदेखी करते हैं।
आगे की राह
- अन्य राज्य सरकारों और नागरिक सामाज़िक संगठनों को केरल सरकार की तरह अवसरों की पहचान करने और सीधे निवेश को प्रोत्साहित करने पर विचार करना चाहिये।
- भारतीय उद्योगों को अफ्रीका में कृषि-व्यापार शृंखला को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा सकती है।
- भारत की स्टार्टअप्स कंपनियाँ अफ्रीका में अपना स्टार्टअप्स स्थापित कर वहाँ के लोगों को रोज़गार तथा अफ्रीकी अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकती हैं।
- अफ्रीकी कृषि-तकनीकी क्षेत्र में नवीन और विघटनकारी प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी शक्ति स्पष्ट हुई है। साथ ही, महाद्वीप में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र ने वर्ष 2016 और वर्ष 2018 के मध्य 110% की वृद्धि दर्ज की है।
- गौरतलब है कि, पिछले एक साल में महामारी के बावजूद, इस क्षेत्र में निवेश में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई है।
- भारत को अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिये कृषि क्षेत्र में मौजूदा ‘क्षमता निर्माण पहलों’ के प्रभाव का व्यापक मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
चीनी मॉडल यदि अफ्रीका में सफल होता है तो उसे दक्षिणी विश्व के लिये एक प्रतिकृति के रूप में पेश किया जा सकता है। इस लिहाज से भारत ने अफ्रीकी प्राथमिकताओं के अनुरूप विकास साझेदारी को रेखांकित करने के लिये लगातार अच्छे अवसरों को प्रोत्साहन दिया है। इसलिये, यह प्रासंगिक है कि भारत सामूहिक रूप से अफ्रीका के साथ एक अद्वितीय आधुनिक साझेदारी तैयार करे।