(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत का इतिहास; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: विषय- महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं सम्बद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय , सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: विषय- सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय)
- हाल ही में, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने युवा महिलाओं में होने वाले कुपोषण पर ध्यान देने और सही उम्र में उनका विवाह सुनिश्चित करने के लिये एक पैनल की घोषणा की थी।
- यदि हम सामजिक विकास पर नज़र डाले तो पाएँगे कि महिलाओं का विवाह शीघ्र कर देने व फिर उनके शीघ्र गर्भ धारण करने की वजह से वे अक्सर कई तरह की व्याधियों से ग्रसित हो जाती हैं।
- वर्तमान में, नियमों के अनुसार भारत में पुरुषों केविवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है और महिलाओं के लिये 18 वर्ष है।
पृष्ठभूमि:
- सर्वप्रथम, वर्ष 1860 में जब भारतीय दंड संहिता (IPC) का अधिनियमन हुआ तब 10 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ किसी भी प्रकार के शारीरिक सम्बंध या यौनाचार को अपराध घोषित कर दिया गया था।
- वर्ष 1927 में एक विधेयक के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने 12 वर्ष से कम आयु की किसी लड़की के साथ विवाह को अमान्य घोषित कर दिया था।
- वर्ष 1929 में, बाल विवाह निरोधक अधिनियम के द्वारा महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 14 और 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई। इस कानून के लिये आवाज़ मुखर करने वाले, आर्य समाजी डॉ. हरविलास सारदा के नाम पार इस अधिनियम को सारदा अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है।
- यद्यपि सारदा अधिनियम भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान सुषुप्तावस्था में ही रहा, क्योंकि हिंदू व मुस्लिम दोनों धर्मों के साम्प्रदायिक लोग इसके समर्थन में नहीं थे और अंग्रेज़ उस समय उनसे नाराज़गी नहीं मोल लेना चाहते थे। इसके अलावा रियासतों में भी इस कानून को पालन करनेअथवा पालन नकरने को लेकर छूट दे दी गई थी।
- इसके बाद वर्ष 1949 में एक संशोधन के माध्यम से महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी गई।
- वर्ष 1978 में इस अधिनियम में पुनः एक संशोधन किया गया और महिलाओं तथा पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को क्रमशः 18 वर्ष और 21 वर्ष कर दिया गया।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (धारा 5 (iii))और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के द्वारा भी महिलाओं और पुरुषों की विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 और 21 वर्ष ही निर्धारित की गई है।
कम उम्र में विवाह:
- आँकड़े बताते हैं कि भारत में अधिकांश महिलाएँ 21 वर्ष की आयु के बाद विवाह करती हैं।
- आँकड़ों(चार्ट-1) से पता चलता है कि भारत में विवाह के समय महिलाओं की औसत आयु 22.1 वर्ष हैऔर लगभग सभी राज्यों में यह 21 वर्ष से अधिक ही है। हालाँकि इसका अर्थ यह नहीं है कि बाल विवाह अब रुक गए हैं।
- नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey: NFHS-4) में पाया गया कि 20-24 आयु वर्ग (चार्ट-2) की लगभग 26.8% महिलाओं का विवाह वयस्कता (18 वर्ष) से पहले हुआ था।
विवाह के उम्र से स्वास्थ्य कैसे सम्बंधित है?
- डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कहना है और अध्ययन में भीयह पाया गया है कि शीघ्र विवाह को रोकने से मातृ मृत्यु दर (maternal mortality ratio) और शिशु मृत्यु दर (infant mortality ratio) में कमी आ सकती है।
- वर्तमान में, मातृ मृत्यु दर (जन्म लेने वाले प्रत्येक 100,000 बच्चों पर मातृ मृत्यु की संख्या) 145 है।
- भारत के शिशु मृत्यु दर(IMR) के आँकड़ों को देखने से पता चलता है कि एक वर्ष में पैदा होने वाले प्रत्येक 1,000 बच्चों में से 30 बच्चों की मृत्यु एक वर्ष की आयु से पहले हो जाती है।
- अध्ययन में यह भी पाया गया है कि युवा माताओं को एनीमिया होने की आशंका अधिक होती है। भारत में प्रजनन आयुवर्ग (15-49 वर्ष) की आधी से अधिक महिलाएँ एनीमिक हैं।
- कम आयु में विवाह करने से अवांछित गर्भधारण की सम्भावनाभी बनी रहती है साथ ही यौन संचारित रोगों का डर भी बना रहता है।
क्या भारतीय समाज में शीघ्र विवाह किये जाने को रोका जा सकता है?
- भारतीय समाज में गरीबी, अशिक्षा और आर्थिक स्रोतों तक सीमित पहुँच और सुरक्षा सम्बंधी चिंताएँ,शीघ्र विवाह किये जाने के सम्भावित ज्ञात कारण हैं।
- अतः विभिन्न कानूनविदों ने यह स्पष्ट किया है कि यदि जल्दी विवाह किये जाने के मुख्य कारणों को सम्बोधित नहीं किया जाता है, तो विवाह की आयु बढ़ाए जाने के लिये नए कानून का कोई औचित्य नहीं होगा और मात्रयह कानून इसे रोकने के लिये पर्याप्त नहीं होगा।
- कई लोग यह तर्क भी देते हैं कि देर से विवाह करने से आगे कई प्रकार की दिक्कतें आ सकती हैं। खासकर परिवार बढ़ाने के सिलसिले में कुछ परेशानियाँ आ सकती हैं। हालाँकि मनोवैज्ञानिकों औरडॉक्टरों का कहना है कि मेडिकल साइंस के विकास के साथ अब ऐसी आशंकाएँ बहुत कम हो गई हैं।
आँकड़े क्या बताते हैं?
- आँकड़े (चार्ट-5) बताते हैं कि सबसे गरीब 20% महिलाओं का विवाहसबसे अमीर 20% महिलाओं की अपेक्षा बहुत कम उम्र में हो जाता है।
- स्कूली शिक्षा न प्राप्त कर पाने वाली महिलाओं के विवाह की औसत आयु 17.6 थी, जो कि कक्षा 12 (चार्ट-6) तक शिक्षित महिलाओं के विवाह की औसत आयु से बहुत कम थी।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 15-18 वर्ष की लगभग 40% लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं।
- इनमें से लगभग 65% लड़कियाँ गैर-पारिश्रमिक कार्यों में लगी हुई हैं।
- इसीलिये विशेषज्ञों का मानना है कि विवाह की आधिकारिक उम्र में फेरबदल करने से गरीब, कम पढ़ी-लिखी और दमित महिलाओं के साथ भेदभाव हो सकता है।
आगे की राह:
- विवाह के लिये महिलाओं और पुरुषों की न्यूनतम आयु अलग-अलग होने का कोई भी कानूनी या सामाजिक तर्क नहीं दिखता है,बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार) का स्पष्ट उल्लंघन है। अतः इस विभेद तथा इसके मूल कारणों को ख़त्म करने के बारे में सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिये।
- वर्ष 2018 में विधि आयोग ने इस विभेद को रूढ़िवादिता को बढ़ावा देने वाला एक कारक माना था। इससे जुड़े विधि आयोग के परामर्शों पर सरकार को ध्यान देना चाहिये।
- पूर्व में विभिन्न उदाहरण ऐसे मिलते हैं जिनमें इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ सामने आई हैं, सरकार को चिकित्सकीय पहलुओं को ध्यान में रखकर भी एक समावेशी सोच के तहत इस पक्षपाती उम्र सीमा पर पुनर्विचार करना चाहिये।