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कृषि संघवाद

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।)

संदर्भ

तीनों कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही वर्तमान में संविधान की भावना के अनुसार कृषि क्षेत्र में संघ और राज्यों की भूमिकाओं के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2021 में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की शुरूआत और उनकी वापसी ने कई चिंताओं को उत्पन्न किया जिनमें शामिल हैं :
    • केंद्र सरकार द्वारा चर्चा और परामर्श का अभाव।
    • किसानों को अपनी उपज बेचने और अपनी जमीन पट्टे पर देने के लिये अधिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की आवश्यकता।
    • किसानों के लिये हानिकारक कृषि के निगमीकरण के संबंध में चिंता।
  • बाजारोन्मुखी सुधारों की आवश्यकता।
  • संविधान के तहत कृषि राज्य का विषय होने के बावजूद राज्यों की भूमिका और जिम्मेदारी को स्वीकार किये बिना केंद्र सरकार के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना इन चर्चाओं की सामान्य विशेषताओं में से एक था।
  • केंद्र से किसानों और राज्यों को सब्सिडी एवं हस्तांतरण सामान्यत: तीन केंद्रीय मंत्रालयों से संबंधित हैं :
    • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय- यह प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम-किसान) को लागू करता है।
    • उर्वरक विभाग (रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय)
    • खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय)- यह विकेंद्रीकृत खरीद योजना में शामिल है।

कृषि क्षेत्र को केंद्र सरकार का समर्थन

  • केंद्र सरकार की भूमिका 
    • भोजन और खाद्यान्न की निरंतर कमी, 1960 के दशक के मध्य में कृषि सूखा, विदेशी मुद्रा संकट और भारत के लिये अन्य भू-राजनीतिक निहितार्थ जैसी स्थितियों के कारण केंद्र सरकार ने भारतीय कृषि को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
  • हरित क्रांति पर बल 
    • संघ की विस्तारित भूमिका में हरित क्रांति प्रौद्योगिकियों को अपनाने, अनुसंधान और विकास सेवाओं के माध्यम से प्रसार, नई बीज किस्मों एवं उर्वरकों जैसे आदानों का अधिक उपयोग तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसलों की खरीद जैसे उपाय शामिल थे। 
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के लागू होने के बाद इसकी आवश्यकता भी बढ़ गई।
  • कृषि/किसान क्षेत्र के लिये केंद्र सरकार की बजटीय सहायता पाँच प्रमुख माध्यम से है :
    • आउटपुट सब्सिडी : न्यूनतम कीमत और खरीद की गारंटी
    • स्टॉक सब्सिडी : बफर आवश्यकताओं के रूप में स्टॉक, विशेष रूप से गेहूं और चावल को ले जाना
    • राजकोषीय सब्सिडी : कृषि उत्पादन पर लगाए गए राज्यों के करों और शुल्कों के लिये भुगतान करना
    • उर्वरक सब्सिडी : यूरिया, डाय-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) और म्यूरेट ऑफ पोटाश (MoP) जैसे उर्वरकों के उपयोग के लिये सब्सिडी प्रदान करना
    • प्रत्यक्ष आय लाभ : पीएम-किसान योजना के तहत कृषि परिवारों को प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण प्रदान करना

सब्सिडी और नकद हस्तांतरण में असमानताएं

  • वित्त वर्ष 2019-20 में सभी सब्सिडी और हस्तांतरण लगभग  1.9 लाख करोड़ रुपए था।
    • इसमें से उर्वरक सब्सिडी (लगभग 75,000 करोड़ रुपए) तथा पीएम-किसान (60,000 करोड़ रुपए) का सर्वाधिक योगदान था।
    • लगभग 13,000 करोड़ रुपए राजकोषीय सब्सिडी के रूप में राज्य सरकार के खजाने में स्थानांतरित किया गया।
  • केंद्र सरकार की सब्सिडी और हस्तांतरण से प्रति कृषि परिवार को 18,000 से 20,000 रुपए प्रतिवर्ष का लाभ प्राप्त होता है। 
  • हालाँकि, छोटे और बड़े किसानों के मध्य बहुत बड़ी असमानता विद्यमान है। बड़े किसान अधिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं जिससे उन्हें अधिक उर्वरक सब्सिडी प्राप्त होती है। 
  • इसके अलावा, बड़े किसानों द्वारा सरकार को अधिक बिक्री के कारण वे अधिक लाभ भी प्राप्त करते हैं।

राज्यवार असमानता

  • केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त सब्सिडी एवं हस्तांतरण का सबसे बड़ा लाभार्थी उत्तरप्रदेश है जिसके बाद पंजाब, मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का स्थान हैं।
  • उत्तर प्रदेश उर्वरकों, विशेष रूप से यूरिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, और पीएम-किसान के तहत सबसे बड़ा हस्तांतरण प्राप्त करता है। जबकि तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों द्वारा पीएम-किसान  योजना को लागू ही नहीं किया गया है।
  • इन विशाल क्षेत्रीय असमानताओं के कारण ही विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे मुखर किसानों का विरोध गरीब किसानों या भारत के पूर्वी हिस्सों के किसानों के मध्य न होकर देश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से के अमीर किसानों के मध्य देखा गया।

सिफारिशें

  • राज्यों को कृषि के प्रति अपने संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व भी होनी चाहिये :
    • वे खरीद, कम भुगतान, फसल बीमा या इसके किसी भी संयोजन का कार्य कर सकते हैं लेकिन यह राज्य सरकार का दायित्व होना चाहिये और केंद्र सरकार को राज्य सरकार की पहल को वित्त नहीं देना चाहिये। यह राज्य सरकारों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
  • राज्यों को अपनी कृषि नीतियों के माध्यम से अन्य राज्यों पर बाह्य प्रभाव नहीं डालना चाहिये, जैसे :
    • अनियंत्रित बिजली और पानी की सब्सिडी जैसी राज्य सरकार की कई नीतियां ऊर्जा एवं पानी के अत्यधिक उपयोग को प्रोत्साहित करती हैं जो पड़ोसी राज्यों में जल संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करती हैं। 
    • संघ के पास ऐसी नीतियों को सीमित करने की शक्ति होनी चाहिये जिनका अन्य राज्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • केंद्र सरकार का दायित्व
    • केंद्र सरकार को उन नीतियों से बचना चाहिये जो किसानों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।
    • इन नीतियों का दीर्घकालिक उद्देश्य कृषि और उत्पादन विकल्पों को विकृत किये बिना बेहतर पोषण के लिये  केंद्र सरकार की भूमिका को सीमित करना होना चाहिये।
  • अनकूल नीति एवं विकसित तंत्र
    • केंद्र सरकार की नीतियों में अनुसंधान और विकास, बीमा एवं जोखिम लेने का समर्थन करने जैसे व्यापक-आधार वाला राष्ट्रीय सार्वजनिक लक्ष्य प्रदान करना शामिल होना चाहिये।
    • साथ ही, केंद्र सरकार के पास देश भर में किसानों को प्रभावित करने वाले प्रतिकूल कारकों का जवाब देने के लिये विकसित तंत्र होना चाहिये।
  • संविधान के सिद्धांतों को स्वीकार करते हुए केंद्र और राज्यों को भारत के 'एक बाजार' को कमजोर करने वाले कदम नहीं उठाने चाहिये।
  • न तो संघ और न ही राज्यों को ऐसे प्रतिबंध लगाने चाहिये जो देश के भीतर कृषि वस्तुओं के मुक्त प्रवाह को बाधित करते हों।
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