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कृषि विनियामक प्रणाली की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा- महत्त्वपूर्ण सामयिक घटनाएँ एवं कृषि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : कृषि- संबंधित विषय और बाधाएँ)

संदर्भ

देशभर के किसान (मुख्यत: लघु और सीमांत) कृषि गतिविधियों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे है। इनमें कृषि आगमों (Inputs), बाज़ारव वित्त के साथ-साथ मानव संसाधन एवं सूचनाओं तक पहुँच में बाधाएँ शामिल हैं। वस्तुतः ये घटक किसानों की आय और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

इनेबलिंग दि बिज़नेस ऑफ़ एग्रीकल्चर रिपोर्ट

  • हाल ही में, विश्व बैंक ने ‘इनेबलिंग दि बिज़नेस ऑफ़ एग्रीकल्चर’ (Enabling the Business of Agriculture: EBA), 2019 रिपोर्ट प्रकाशित की। यह रिपोर्ट आठ संकेतकों पर आधारित है।ये संकेतक विश्व के 101 देशों में सरकारी विनियमन प्रणालियोंका मापन इस आधार परकरते हैं कि वे कृषि गतिविधियों के संचालन में किस सीमा तक सहायक हैं।
  • इन संकेतकों में बीजों की आपूर्ति, उर्वरक व मशीनरी का पंजीकरण, जल संरक्षण,पशुपालन, पौधों की स्वास्थ्य सुरक्षा, खाद्यान्न व्यापारऔर वित्त तक पहुँच इत्यादि शामिलहैं।
  • ये संकेतक कृषि बाज़ार एकीकरण व उद्यमिता से संबंधित हैं, जो देश में कृषि विनियमन वातावरण की सुदृढ़ता का मापदंड हैं।इस प्रकार, ई.बी.ए. भी विश्व बैंक की ‘व्यापार सुगमता रिपोर्ट’ की तरह है।

विभिन्न संकेतकों का अर्थ

  • ‘उर्वरक तथा मशीनरी पंजीकरण’से संबंधित संकेतकउर्वरक एवं कृषि मशीनरी तक पहुँच प्रदान करने वाले कानूनों व नियमों को मापता है।सिंचाई में निवेश से संबंधितउचित निर्णय लेने में सहायक नियामक प्रक्रियाओं को जल सुरक्षा संकेतक से मापा जाता है।
  • ‘पशुधन पालन’ से संबंधित संकेतक पशुपालन आगमों तक पहुँच को प्रभावित करने वाले नियमों की गुणवत्ता को प्रदर्शित करता है। सैनेटरी और फाइटोसैनेटरी मानकों (Sanitary and Phytosanitary Standards : SPSs) पर कानून के प्रभाव को पौधों की स्वास्थ्य सुरक्षा संकेतक के माध्यम से मापा जाता है। उल्लेखनीय है कि एस.पी.एस. किसी देश में उपभोक्ताओं तक सुरक्षित खाद्य पदार्थों की आपूर्ति को सुनिश्चित करने का मानक है।
  • बीजों की आपूर्ति, खाद्यान्न व्यापारव वित्त तक पहुँच जैसे संकेतकों में भारत का तुलनात्मक स्कोर अधिक है। हालाँकि, उपज में सुधार और फसल की नई किस्मों को अपनाने के लिये एक मज़बूत बीज आपूर्ति प्रणाली की आवश्यकताहै।
  • खाद्यान्न व्यापार संकेतक ‘किसानों द्वारा कृषि उत्पादों के निर्यात’ की सुविधा का आकलन करता है। वेयरहाउस प्राप्तियों (WarehouseReceipts) के उपयोग पर नियामक ढाँचे का मूल्यांकन‘वित्त तक पहुँच’संबंधी संकेतक द्वारा किया जाता है। एक मज़बूत वेयरहाउस प्राप्तिप्रणाली किसानों को कृषि में निवेश करने के लिये आवश्यक ऋण प्राप्ति में सक्षम बनाती है।

भारत की स्थिति

  • कृषि प्रधान देश होने के बावज़ूद ई.बी.ए. में भारत 49वें स्थान पर है। फ्रांस, क्रोएशिया और चेक गणराज्य इस रिपोर्ट में शीर्ष तीन देशों में शामिल हैं।
  • 20 उभरते हुए देशों के समूह (Emerging Groups of 20: EG 20) में दक्षिण अफ्रीका के बाद भारत में न्यूनतम ‘अनुकूल विनियामक वातावरण’मौज़ूद है। इस समूह में तुर्की शीर्ष पर है, उसके बाद अर्जेंटीना, ब्राज़ील, रूस, मैक्सिको और चीन का स्थान है।
  • इस प्रकार, भारत कृषि क्षेत्र में अपने निकट प्रतिद्वंद्वियों, अर्थात्चीन, ब्राज़ील और रूस से पीछे है।इन तीन देशों की तुलना मेंभारत का प्रदर्शन आठ में से पाँचसंकेतकों में सबसे कमज़ोर रहा है। इनमें उर्वरक व मशीनरी पंजीकरण, जल संरक्षण, पशुपालन और पौधों की स्वास्थ्य सुरक्षा शामिल है।

प्रभाव

  • गुणवत्तापूर्ण कृषि आगमों, जैसे- उर्वरक, जल वयांत्रिकी तक अपर्याप्त पहुँच से उत्पादकता में कमी आने के साथ-साथ खाद्यान्न उत्पादन लागत एवं उत्पादन अनिश्चितता में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप, इससे किसानों की पैदावार क्षमता प्रभावित होती है।
  • साथ ही, इससे किसानों को पौधों की नई किस्मों व आय में सुधार के नए अवसरों को अपनाने में भी चुनौती का सामना करना पड़ता है।यह वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने में बाधक साबित हो सकता है। इसके अतिरिक्त, इससे कुपोषण व स्वस्थ आहार तक पहुँच की समस्या का भी सामना करना पड़ता है।
  • अवैज्ञानिक कृषि विधियों के कारण जल स्तर में गिरावट, फसल चक्र में बाधा से भूमि उर्वरकता में कमी के साथ-साथ कृषि विविधता व सतत् कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • सिंचाई प्रबंधन, कृषि उत्पादन, कीमतों व आय की अस्थिरता को कम करने, प्राकृतिक जोखिम से होने वाली क्षति के न्यूनीकरण और जोखिम युक्त व उच्च रिटर्न वाली फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये आवश्यक है।

सरकार की भूमिका

  • कृषि उत्पादन को नियंत्रित करने वाला वर्तमान संस्थागत ढाँचा प्राय: इन बाधाओं को कम करने में विफल रहा है। इसके लिये एक उपयुक्त विनियमन प्रणाली की आवश्यकता है।
  • इस संबंध में सरकार कानून और नियम बनाकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जो कृषि आगमों में वृद्धि, उत्पादन लागत में कमी, कृषि बाज़ारों व मूल्य श्रृंखला में कृषकों की भागीदारी में वृद्धि,प्रतिस्पर्धा एवं कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित करें।
  • वैश्विक कृषि मूल्य श्रृंखला तक पहुँच प्राप्त करने की दृष्टि सेएस.पी.एस. पर एक मज़बूत नियामक ढाँचे की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये, ‘राष्ट्रीय कृषि स्वास्थ्य सेवा’की सक्रिय भागीदारी के कारण पेरू विश्व में शतावरी (Asparagus) केप्रमुख निर्यातकों में से एक बन गया है।

निष्कर्ष

  • ई.बी.ए. के परिणामों से पता चलता है कि भारत की स्थिति अपने निकट प्रतियोगियों की तुलना में प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों के संबंध में कमज़ोर है।विगत पाँच दशकों से वैश्विक कृषि की नियति तय कर रहे उच्च आय वाले देशों की तरह अब विश्व कृषि व खाद्य उत्पादन का भविष्य चीन, भारत, ब्राज़ील और इंडोनेशिया जैसे मध्यम आय वाले देशों पर निर्भर होने की उम्मीद है।
  • इस अवसर का अधिकतम लाभ उठाने के लिये भारत को एक कृषि विनियामक प्रणाली की आवश्यकता है,जो कृषि गतिविधियों के संचालन को आसान बनाए, ताकि किसानों की उत्पादकता, प्रतिस्पर्धात्मकता और आय में सुधार हो सके।
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