भारत की समृद्ध साहित्यिक परंपरा और मराठी भाषा की कालातीत प्रासंगिकता का उत्सव मनाने के लिए 98वां अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन 21 से 23 फरवरी तक विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है।
इस प्रतिष्ठित सम्मेलन का उद्घाटन श्री नरेंद्र मोदी ने 21 फरवरी को किया|
यह आयोजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि 71 वर्षों के बाद यह सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है।
इस सम्मेलन के दौरान पैनल चर्चाएँ, पुस्तक प्रदर्शनियाँ, सांस्कृतिक कार्यक्रम और साहित्यकारों के संवाद सत्र आयोजित किए जाएँगे।
इस ऐतिहासिक आयोजन का एक विशेष आकर्षण पुणे से दिल्ली तक की प्रतीकात्मक साहित्यिक ट्रेन यात्रा होगी, जिसमें 1,200 प्रतिभागी शामिल होंगे।
यह यात्रा साहित्य की एकीकृत भावना को दर्शाएगी और मराठी भाषा एवं साहित्य के प्रति उत्साह को और भी बढ़ाएगी।
यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूकता बढ़ाने और साहित्यिक संवाद को नए आयाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत का कार्यक्रम :-
हाल ही में मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह सम्मेलन मराठी साहित्य की प्रासंगिकता और इसके समसामयिक संवाद में भूमिका पर केंद्रित होगा, जिसमें भाषा संरक्षण, अनुवाद की भूमिका और साहित्यिक कार्यों के डिजिटलीकरण जैसे विषयों पर चर्चा होगी।
प्रारंभिक मराठी साहित्य (13वीं शताब्दी तक)
मराठी भाषा का इतिहास वैदिक संस्कृत (तीसरी शताब्दी) से जुड़ा है, लेकिन लिखित साहित्य 13वीं शताब्दी में विकसित हुआ।
यदुवंशी शासकों ने मराठी भाषा और साहित्य को प्रोत्साहन दिया।
प्रारंभिक साहित्य धार्मिक और दार्शनिक था, जिसमें भक्ति, आयुर्वेद, ज्योतिष, पुराण, वेदांत आदि शामिल थे।
भक्ति आंदोलन और धार्मिक साहित्य (13वीं-17वीं शताब्दी)
भास्करभट्ट ने मराठी में भजन लिखे।
ज्ञानेश्वर ने “ज्ञानेश्वरी” नामक भगवद गीता पर भाष्य लिखा (9000 दोहे)।
नामदेव ने मराठी और हिंदी में भजन और छंद लिखे।
संत एकनाथ ने अभंग लिखे और रामायण-भागवत पर टिप्पणी की।
समर्थ रामदास और तुकाराम ने भक्ति आंदोलन के दौरान साहित्य सृजन किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज और पेशवाओं की वीरता पर गाथागीत लिखे गए।
ब्रिटिश काल और आधुनिक मराठी साहित्य (18वीं-20वीं शताब्दी)
ब्रिटिश शासन में प्रिंट मीडिया के आगमन से मराठी साहित्य सशक्त हुआ।
केशवसुत और गोविंदराजन ने रोमांटिक और विक्टोरियन शैली की कविताएँ लिखीं।
उपन्यास, नाटक (संगीत नाट्य), सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर साहित्य का विकास हुआ।
प्रश्न - 98वां अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन कहाँ आयोजित किया जा रहा है ?