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चुनाव चिह्नों का आवंटन 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 :  विवाद निवारण तंत्र, संस्थान एवं प्रमुख निकाय, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ)

संदर्भ 

हाल ही में, शिवसेना के दो गुटों के बीच चुनाव चिह्न और पार्टी के नाम को लेकर विवाद हो गया। भारत निर्वाचन आयोग ने विवाद का समाधान न होने तक शिवसेना का आधिकारिक चुनाव चिह्न (धनुष-वाण) सील कर दिया है। साथ ही, उप-चुनावों के लिये शिवसेना के दोनों गुटों को नया चुनाव चिह्न और पार्टी नाम भी आवंटित कर दिया है। विदित है कि शिवसेना महाराष्ट्र का एक राजनीतिक दल है।

चनाव चिह्न

  • चुनाव चिह्न किसी राजनीतिक दल को आवंटित एक मानक प्रतीक (Standard Symbol) है जिनका प्रयोग दलों द्वारा किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में चुनाव चिह्न के साथ उम्मीदवारों के नाम भी अंकित होते हैं।
  • इसे मुख्यतः निरक्षर लोगों द्वारा मतदान की सुविधा के लिये प्रस्तुत किया गया था। इन्हें निरक्षर लोगों के लिये मतदान की सुविधा के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया था।

लाभ 

  • राजनीतिक दलों का पंजीकरण निर्वाचन आयोग करता है और निर्धारित शर्तों को पूरा करने के बाद उन्हें राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान करता है। अन्य दलों को केवल पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल घोषित किया जाता है।
  • मान्यता प्राप्त दलों को कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं, जैसे- दलों को चिह्नों का आवंटन, टेलीविज़न एवं रेडियो पर राजनीतिक प्रसारण के लिये समय का प्रावधान तथा मतदाता सूची तक पहुँच आदि।

चुनाव चिह्न आवंटन प्रक्रिया

  • निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के तहत चुनाव आयोग किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव चिह्न का आवंटन करता है।
    • वर्ष 1968 से पूर्व निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव संचालन नियम, 1961 के तहत अधिसूचना और कार्यकारी आदेश जारी किया जाता था।
  • राष्ट्रीय दलों को पूरे देश और क्षेत्रीय दलों को पूरे राज्य में प्रयोग करने के लिये एक चुनाव चिह्न आवंटित किया जाता है जो उस दल का आधिकारिक चुनाव चिह्न होता है।
  • चुनाव चिह्न दो प्रकार के होते हैं- आरक्षित (रिजर्व) चुनाव चिह्न और स्वतंत्र (फ्री) चुनाव चिह्न।
    • आरक्षित चुनाव चिह्न वे प्रतीक होते हैं, जो किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल या क्षेत्रीय दल के लिये आरक्षित होते हैं। देशभर में इन चुनाव चिह्नों पर संबंधित पार्टी का एकाधिकार रहता है।
    • इसके अतिरिक्त निर्वाचन आयोग के पास स्वतंत्र चिह्नों की भी सूची होती है। किसी भी नए दल या निर्दलीय उम्मीदवार को इनमें से चुनाव चिह्न आवंटित किया जा सकता है।
  • हालांकि, यदि कोई दल अपना चुनाव चिह्न स्वयं निर्वाचन आयोग को प्रस्तावित करता है और यदि वह प्रतीक किसी अन्य दल का चुनाव चिह्न नहीं है तो वह प्रतीक उस दल को आवंटित किया जा सकता है।

अन्य प्रावधान

  • यदि क्षेत्रीय दल किसी दूसरे राज्य में अपने उम्मीदवार उतारती है और उस राज्य में वही चुनाव चिह्न किसी अन्य दल को पहले से ही आवंटित है, तो दूसरे राज्य की क्षेत्रीय दल को दूसरा चिह्न आवंटित किया जाएगा।
    • उदाहरण के लिये महाराष्ट्र में शिवसेना और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक ही चुनाव चिह्न धनुष-बाण आवंटित है। इन दलों को एक-दूसरे राज्य में अलग-अलग चुनाव चिह्न आवंटित किये जाएंगे।  
  • इसके अतिरिक्त पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद किसी भी राजनीतिक दल को पशु-पक्षियों वाला चुनाव चिह्न नहीं आवंटित किया जा सकता है। वर्तमान में प्राय: निर्जीव वस्तुओं को ही चुनाव चिह्न के रूप में आवंटित किया जाता है।

शिवसेना के दोनों गुटों को आवंटित चुनाव चिह्न 

  • शिवसेना (शिंदे गुट) को ‘ढाल एवं तलवार’ चुनाव चिह्न और बालासाहबंची शिवसेना नाम आवंटित किया गया है।
  • शिवसेना (उद्धव गुट) को ‘मशाल’ चुनाव चिह्न और उद्धव बालासाहेब ठाकरे नाम आवंटित किया गया है। 

चनाव चिह्न को लेकर मतभेद और आयोग की शक्तियां 

  • निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 15 में किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के अलग-अलग या प्रतिद्वंद्वी समूहों के संबंध में आयोग की शक्ति का उल्लेख किया गया है और इस मामले में आयोग के निर्णय ऐसे सभी प्रतिद्वंद्वी समूहों पर बाध्यकारी होंगे।
  • यह नियम सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों से संबंधित विवादों पर लागू होता है। पंजीकृत परंतु गैर-मान्यता प्राप्त दलों में विभाजन के मामले में चुनाव आयोग प्राय: आपसी मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या न्यायालय में जाने की सलाह देता है।
  • उल्लेखनीय है कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29क के तहत किया जाता है।
  • आयोग द्वारा जारी किये गए राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिये 13(ii)(ई) दिशानिर्देशों के अनुसार :
    • दल को अपने पंजीकरण के पांच वर्ष के भीतर निर्वाचन आयोग द्वारा संचालित चुनाव में हिस्सा लेना चाहिये और उसके बाद उसे चुनाव में हिस्सा लेना जारी रखना चाहिये।
    • यदि दल लगातार छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ती है, तो दल को पंजीकृत दलों की सूची से हटा दिया जाएगा।

चुनाव चिह्न आवंटन को लेकर ऐतिहासिक विवाद

  • वर्ष 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद विवाद उत्पन्न हो गया। निर्वाचन आयोग ने अलग-अलग समूहों का समर्थन करने वाले सांसदों एवं विधायकों द्वारा प्राप्त मत के 3 राज्यों में 4% से अधिक हो जाने पर दूसरे गुट को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के रूप में मान्यता प्रदान की।
  • वर्ष 1969 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) के विभाजन के बाद कांग्रेस (ओ) के लिये चुनाव चिह्न चरखा और इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को गाय एवं बछड़ा चुनाव चिह्न आवंटित किया गया। साथ ही, मूल चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ को फ्रीज कर दिया गया।
    • अंततः 1978 में एक अन्य विभाजन के बाद इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को हाथ का पंजा चुनाव चिह्न आवंटित किया गया। 
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