(प्रारम्भिक परीक्षा: भारत की राजव्यवस्था; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र: 2, विषय-केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।)
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act - FRA), 2006 को संशोधित करते हुए एक अधिसूचना जारी की है, जो आदिवासी और अन्य पारम्परिक रूप से वन-आवास वाले परिवारों को आस पड़ोस के वन क्षेत्रों में घर बनाने में सक्षम बनाएगी।
एफ.आर.ए, 2006 :
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारम्परिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, [The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act] भारत में वन कानून का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- इसे वन अधिकार अधिनियम, जनजातीय अधिकार अधिनियम, जनजातीय विधेयक और जनजातीय भूमि अधिनियम भी कहा जाता है।
- औपनिवेशिक युग में, अंग्रेज़ों ने अपनी आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये प्रचुर मात्रा में वन सम्पदा का दोहन किया था।यद्यपि भारतीय वन अधिनियम, 1927 जैसे क़ानूनों के तहत वन से जुड़े अधिकारों और उनको फॉलो करने की कोशिश की गई थीलेकिन इनका पालन बमुश्किल ही हो पाया था।
- परिणामस्वरूप, आदिवासी और वन-निवासी समुदाय, जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के साथ सामंजस्य बिठाते हुए जंगलों के भीतर रह रहे थे, वे जंगलों में असुरक्षित तरीके से रहते रहे और स्वतंत्रता के बाद भी वे हाशिये पर ही रहे, सरकारों का उनकी तरफ विशेष ध्यान गया नहीं।
- बाद में वन और वन-निवासी समुदायों के बीच सहजीवी सम्बंध को राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में मान्यता मिली।
- एफ.आर.ए, 2006 को हमेशा से सामाजिक रूप से हाशियेपर रहे सामाजिक-आर्थिक वर्ग की सुरक्षा के लिये लागू किया गया था और उनके जीवन व आजीविका के अधिकार के साथ पर्यावरण के अधिकार को भी संतुलित किया गया।
राज्यपाल को क्या अधिकार है?
- राजभवन द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, राज्यपाल ने संविधान की अनुसूची -5 के अनुच्छेद - 5 के उप-अनुच्छेद (1) के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए अधिसूचना जारी की है।
- राज्य में PESA के नियमों ने गाँवों के रूप में कई बस्तियों को मान्यता दी है, लेकिन घर बनाने के लिये भूमि देने का कोई प्रावधान नहीं है।
कदम का महत्त्व:
- इस निर्णय से राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारम्परिक वन-निवासी परिवारों को बड़ी राहत मिलने की सम्भावना है।
- शहरी क्षेत्रों में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में (राजस्व भूमि पर) निवासियों को घर बनाने के लिये कानूनी ज़मीन मिलती है, लेकिन आदिवासी गाँवों (वन भूमि पर) के पास घरों के निर्माण के लिये कोई कानूनी स्थान उपलब्ध नहीं होता है।
- इस कदम का उद्देश्य उन्हें अपने मूल गाँवों के बाहर वन-निवासी परिवारों के प्रवास को रोकना है और उन्हें अपने पड़ोस में ही गाँव की भूमि को वन भूमि के रूप में विस्तारित करके आवास क्षेत्र प्रदान करना है।
प्रारम्भिक परीक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण तथ्य:
संविधान की पाँचवी अनुसूची:
- यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरमके अलावा किसी भी राज्य में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों के साथ-साथ अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण से सम्बंधित है।
- संविधान के अनुच्छेद 244 (1) में, अनुसूचित क्षेत्रों का मतलब ऐसे क्षेत्रों से है, जिनके बारे में राष्ट्रपति अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का आदेश देता है।
- भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची के अंतर्गत अनुच्छेद 244 (1) के पैराग्राफ 6(1) के अनुसार, ‘अनुसूचित क्षेत्र’ का अर्थ ऐसे क्षेत्रों से है, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति अपने आदेश से अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।
- संविधान की अनुसूची 5 के पैराग्राफ 6/(2) के अनुसार राष्ट्रपति कभी भी किसी राज्य के राज्यपाल से सलाह लेने के बाद उस राज्य में किसी अनुसूचित क्षेत्र में वृद्धि का आदेश दे सकते हैं, किसी राज्य और राज्यों के सम्बंध में इस पैराग्राफ के अंतर्गत जारी आदेश व आदेशों को राज्य के राज्यपाल की सलाह से निरस्त कर सकते हैं एवं अनुसूचित क्षेत्रों को पुनः परिभाषित करने के लिये नया आदेश दे सकते हैं।
- अनुसूचित क्षेत्रों को पहली बार वर्ष 1950 में अधिसूचित किया गया था। बाद में वर्ष 1981 में राजस्थान राज्य के लिये अनुसूचित क्षेत्रों को निर्दिष्ट करते हुए संवैधानिक आदेश जारी किये गए थे।
अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने के लिये मानदंड:
पाँचवीं अनुसूची के तहत किसी भी क्षेत्र को "अनुसूचित क्षेत्र" के रूप में घोषित करने के लिये निम्नलिखित मानदंड होने चाहियें:
- जनजातीय आबादी की प्रधानता।
- क्षेत्र की सघनता और उचित आकार।
- एक व्यवहार्य प्रशासनिक इकाई जैसे-ज़िला, ब्लॉक या तालुका।
- पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन।