(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3, भारतीय अर्थव्यवस्था, विकास, आर्थिक संवृद्धि एवं मुद्रास्फीति से संबंधित मुद्दे)
संदर्भ
वर्तमान में ‘वैश्विक आर्थिक चक्र’ असामान्य प्रतीत हो रहा है, क्योंकि यह कोविड-19 महामारी से प्रेरित है। वस्तुतः महामारी की परिस्थिति के मद्देनज़र विश्व के लगभग सभी केंद्रीय बैंकों, यथा- आर.बी.आई., यू.एस. फेडरल बैंक, यूरोपीय केंद्रीय बैंक, बैंक ऑफ़ इंग्लैंड आदि ने लचीली मौद्रिक नीति अपनाने के संकेत दिये हैं।
आर्थिक रिकवरी और वैश्विक परिदृश्य
- विभिन्न सर्वेक्षणों से स्पष्ट हुआ है कि वर्ष 2021 की प्रथम छमाही में विश्व के अधिकांश देशों की आर्थिक रिकवरी की गति घटी है। भारत के संदर्भ में आर.बी.आई. ने माना कि कुछ बाहरी कारक, जो पिछले कुछ माह से अर्थव्यवस्था की समग्र मांग को प्रेरित कर रहे थे, किन्हीं कारणों से आर्थिक रिकवरी की गति को कम कर सकते हैं। इन बाहरी कारकों में प्रमुख हैं– निर्यात, वित्तीय बाज़ार की अस्थिरता, आयातित मुद्रास्फीति इत्यादि।
- चीन की नीति विश्व की ‘सतत् आर्थिक रिकवरी’ में बाधा उत्पन्न कर सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित प्राधिकारी अर्थव्यवस्था में कुछ संरचनात्मक बदलाव करने व रियल एस्टेट क्षेत्र को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसका उद्देश्य अल्पकालिक संवृद्धि को नज़रंदाज़ करते हुए मध्यकालिक क्षमता निर्माण करना तथा असमानता व वित्तीय जोखिम कम करना है।
- इस बीच, यदि संवृद्धि दर में अचानक तीव्र गिरावट होती है, तो इसमें सुधार के लिये विभिन्न आर्थिक उत्प्रेरक दिये जाने की आवश्यकता होगी।
भारत की स्थिति
- यद्यपि भारत की ‘संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिशीलता’ (Growth-Inflation Dynamics) में सुधार हो रहा है, तथापि इसके समक्ष अभी भी कई जोखिम मौजूद हैं।
- भारत में भी अर्थव्यवस्था की रिकवरी निरंतर जारी है, लेकिन इसकी गति संतोषजनक नहीं है। यहाँ यह तय कर पाना मुश्किल है कि रिकवरी की गति में बाधा आपूर्ति पक्ष की ओर से उत्पन्न हो रही है या मांग पक्ष की ओर से।
- भारत में आर्थिक रिकवरी की गति में कमी के निम्नलिखित प्रमुख कारण माने गए हैं–
- यात्री वाहनों की बिक्री में कमी आना
- उत्पादन शृंखला का बाधित होना
- विद्युत उपभोग में कमी आना
- कोयला आपूर्ति अपर्याप्त होना इत्यादि।
- इसके अलावा, कुछ ऐसे कारक भी हैं, जो भारत की आर्थिक रिकवरी की गति बढ़ाने की ओर संकेत करते हैं–
- ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-टिकाऊ वस्तुओं की मांग कमोबेश बेहतर रही।
- त्योहारों के समय उपभोक्ता मांग बढ़ने से ऋण की मांग में भी वृद्धि हुई।
- कोविड-19 के पश्चात् अर्थव्यवस्था के खुलने से संपर्क सेवाओं, यथा– पर्यटन, मनोरंजन, यात्रा आदि में बढ़ोतरी देखी गई।
- रियल एस्टेट क्षेत्र भी इस दिशा में बेहतर कार्य कर रहा है। ‘आवासीय रियल एस्टेट क्षेत्र’ द्वारा गृह ऋण की ब्याज दरों में कमी, स्टांप शुल्क व पंजीकरण शुल्क में कटौती जैसे प्रगतिशील कदम उठाए गए हैं, जबकि सूचना प्रौद्योगिकी, डाटा सेंटर, ई-कॉमर्स आदि क्षेत्रों में बढ़ी मांग के कारण ‘वाणिज्यिक रियल एस्टेट क्षेत्र’ भी पुनर्जीवित हो रहा है।
- केंद्र सरकार के पास बड़ी मात्रा में अव्ययित (Unspent) नकद राशि शेष है, जिसका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से पूंजीगत व्यय और खपत, दोनों को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है।
महँगाई की स्थिति
- वर्तमान में विश्व की लगभग सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ उच्च महँगाई का सामना कर रही हैं। ‘यू.एस. पर्सनल कंज़प्शन एक्स्पेंडीचर’ के एक सर्वेक्षण के अनुसार, यू.एस. व लगभग समस्त यूरोप में अभी महँगाई की दर 4% से भी अधिक है।
- इसके लिये ‘कच्चे तेल की कीमतें’ चिंता का प्रमुख विषय बना हुआ है, जो हाल ही में करीब $85 प्रति बैरल थीं। इसके अलावा प्राकृतिक गैस, खनिजों, धातुओं, अयस्कों, कुछ चयनित खाद्य पदार्थों आदि की कीमतों में भी काफी उछाल देखा गया था।
- ऐसे में, अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने कहा है कि आपूर्ति पक्ष की ओर से उपजी यह अव्यवस्था निराशाजनक है। अतः अब यह चिंता बढ़ने लगी है कि कहीं यह स्थिति वैश्विक अर्थव्यवस्था को ‘अपस्फीति’ (Stagflation) की ओर न ले जाए।
- उल्लेखनीय है कि ‘अपस्फीति’ से आशय एक ऐसी आर्थिक दशा से है, जब महँगाई में वृद्धि के साथ बेरोज़गारी में भी वृद्धि होती है तथा संवृद्धि दर नहीं बढ़ती है। ‘अपस्फीति’ की स्थिति 1970 के दशक में उभरे पहले ‘तेल संकट’ के दौर में भी उत्पन्न हुई थी। उस समय अमेरिका में महँगाई दर 11.5% तथा बेरोज़गारी दर 9% पहुँच गई थी।
- ध्यातव्य है कि आर.बी.आई. की ‘मौद्रिक नीति समिति’ (MPC) ने ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) के आधार पर भारत में महँगाई का लक्ष्य 4 (+/-2)% यानी 2% से 6% के मध्य निर्धारित किया है।
- कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था इस लक्ष्य से विचलित हो गई थी, लेकिन वर्तमान रुझान दर्शाते हैं कि भारत वर्ष 2023 या इससे कुछ अधिक अवधि तक मुद्रास्फीति का निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लेगा।
महँगाई का लक्ष्य प्राप्त करने में बाधाएँ
खाद्य पदार्थों की कीमतें बेशक अभी नियंत्रण में हैं, लेकिन कच्चे तेल, खनिज, धातुओं आदि की बढ़ती कीमत व आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं के चलते इनमें अत्यधिक वृद्धि होने का जोखिम बना हुआ है।
निष्कर्ष
वैसे तो भारत में संवृद्धि व महँगाई के मिश्रित संकेत प्राप्त हुए हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी नीतियाँ सभी भावी संकटों से निपटने के लिये तैयार हैं।