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पशु एवं मानव चिकित्सा का सह-संबंध

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित विषय)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप से संबंधित मुद्दे; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 – पर्यावरण प्रभाव का आकलन, आपदा तथा आपदा प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

  • हाल ही में, 24 अप्रैल को मनाए गए ‘विश्व पशु चिकित्सा दिवस’ के अवसर पर 'वन हेल्थ दृष्टिकोण’ के बारे में चर्चा की गई। ‘वन हेल्थ दृष्टिकोण’ के अंतर्गत जानवरों, मनुष्यों, इनके निवास स्थल तथा इनके पर्यावरण के सह-संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
  • वर्ष 1856 में आधुनिक पैथोलॉजी के जनक रुडोल्फ विर्चो ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि पशु तथा मानव चिकित्सा के बीच अनिवार्य रूप से कोई विभाजन रेखा नहीं होती है।

प्रसारण के प्रकार (Types of Transmission)

  1. ज़ूनोटिक (Zoonotic)
    • वे रोग जो जानवरों से मनुष्यों में संचरित होते हैं, ‘ज़ूनोटिक रोग’ कहलाते हैं। अनेक अध्ययनों से पता चला है कि मौजूदा और उभरते संक्रामक रोगों में से दो-तिहाई से अधिक रोग ज़ूनोटिक रोग हैं। वर्तमान में उपस्थित कोविड-19 महामारी भी चमगादड़ से मनुष्यों में फैली है।
    • हाल के वर्षों में निपाह वायरस, इबोला, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome - SARS), मध्य पूर्व श्वसन सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome - MERS) और एवियन इन्फ्लुएंजा जैसे संक्रामक रोग भी ज़ूनोटिक रोगों की श्रेणी में आते हैं।
    • उल्लेखनीय है कि इन रोगों के गंभीर प्रभाव मनुष्यों व जानवरों के साथ-साथ पर्यावरण पर भी पड़ते हैं।
  2. एंथ्रोपोज़ूनोटिक (Anthropozoonotic)
  • वे रोग जिनका संक्रमण मनुष्यों से जानवरों में होता है, ‘एंथ्रोपोज़ूनोटिक रोग’ कहलाते हैं।

भारत का 'वन हेल्थ विजन

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) तथा विश्व बैंक द्वारा समर्थित 'वन वर्ल्ड, वन हेल्थ' नामक वैश्विक पहल विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से संचालित की जा रही है। इन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO), विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) शामिल हैं।
  • इसी वैश्विक पहल से प्रेरित होकर भारत ने भी 'वन हेल्थ विजन’ शुरू करने का निर्णय लिया है।

भारत द्वारा उठाये गए कदम

  • दीर्घकालिक उद्देश्यों के मद्देनज़र भारत ने वर्ष 1980 के दशक में जूनोसस पर एक 'राष्ट्रीय स्थायी समिति' का गठन किया गया था।
  • वर्ष 2015 से पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) द्वारा विभिन्न पशु रोगों की रोकथाम के लिये अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
  • केंद्र सरकार द्वारा इन योजनाओं का वित्त पोषण सामान्य राज्यों के लिये 60:40 के अनुपात में तथा पूर्वोत्तर राज्यों के लिये 90:10 के अनुपात में किया जाएगा। जबकि सभी केंद्र शासित प्रदेशों के लिये 100% वित्त पोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा।
  • ‘राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ के तहत फुट और माउथ रोग तथा ब्रूसेलोसिस नियंत्रण के लिये सरकार ने वित्तीय मंजूरी प्रदान की है
  • इसके अलावा, ‘पशुपालन और डेयरी विभाग’ जल्द ही एक स्वास्थ्य इकाई स्थापित करने की योजना पर विचार कर रहा है।
  • वर्ष 2021 में नागपुर में एक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना के लिये केंद्र सरकार ने धनराशि स्वीकृत कर दी है। इसके अतिरिक्त सरकार ऐसे कार्यक्रमों को भी पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है, जो पशु चिकित्सकों की क्षमता निर्माण करने के लिये समर्पित हैं।
  • केंद्र सरकार राज्यों को पशु रोगों के नियंत्रण (ASCAD) के लिये पशु स्वास्थ्य निदान प्रणाली विकसित करने में भी सहायता प्रदान करेगी इसके अलावा, केंद्र सरकार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पशु रोगों के खिलाफ टीकाकरण करने में भी सहायता प्रदान कर रही है।
  • डब्ल्यू.एच.ओ. का अनुमान है कि रेबीज़ नामक जूनोटिक रोग से प्रतिवर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 6 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। भारत में मानवों में सामने आने वाले रेबीज़ के कुल मामलों में से लगभग 97% कुत्तों द्वारा फैलते हैं, इसलिये कुत्तों में रोग प्रबंधन हस्तक्षेप को महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • पशुपालन एवं डेयरी विभाग तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने संयुक्त रूप से कुत्तों के टीकाकरण की एक राष्ट्रीय कार्य योजना का निर्माण किया है ताकि कुत्तों से फैलने वाली रेबीज़ बीमारी को खत्म किया जा सके। इस पहल के अंतर्गत निरंतर बड़े पैमाने पर कुत्तों का टीकाकरण किया जा रहा है तथा जन-जागरूकता को बढाया जा रहा है।

चुनौतियाँ

  • वैज्ञानिकों का मानना है कि वन्यजीवों में लगभग 7 मिलियन विषाणु मौजूद हैं, जिनमें से अधिकांश वायरस ज़ूनोटिक संक्रमण वाले हैं। अर्थात् भविष्य में अनेक ज़ूनोटिक बीमारियाँ सामने आ सकती है, इसलिये कोविड-19 महामारी को अंतिम महामारी नहीं माना जा सकता है।
  • 'वन हेल्थ विजन’ के तहत प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों को में भी विभिन्न चुनौतियाँ उपस्थित हैं, इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
  • पशु चिकित्सा क्षेत्र में डॉक्टरों तथा स्टाफ की कमी का होना।
  • मानव स्वास्थ्य तथा पशु स्वास्थ्य संस्थानों के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान का अभाव होना।
  • खाद्य सुरक्षा के की आड़ में पशु-हत्या करना तथा खुदरा दुकानों के मध्य पर्याप्त समन्वय न होना।

आगे की राह

  • शोध व अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिये ताकि वैज्ञानिक समुदाय सभी 7 मिलियन विषाणुओं का पता लगा सके। परिणामस्वरूप समय रहते न सिर्फ उनसे होने वाले रोगों का पता लगाया जा सके, बल्कि उनका उपचार भी सुनिश्चित किया जा सके।
  • मौजूदा पशु स्वास्थ्य और रोग निगरानी प्रणालियों को समेकित करके इन समस्याओं के समाधान का प्रयास करना चाहिये।
  • पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिये एक सूचना नेटवर्क तैयार करना चाहिये तथा एक प्रभावी ‘राष्ट्रीय पशु रोग रिपोर्टिंग प्रणाली’ विकसित की जानी चाहिये।

निष्कर्ष

भारत वर्तमान में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहा है। अतः भारत को ज़ूनोटिक बीमारियों के प्रति जन-जागरूकता बढ़नी चाहिये तथा भारत को अपनी 'वन हेल्थ विजन' पहल के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये निवेश में वृद्धि करनी चाहिये, ताकि भविष्य में किसी अन्य जानलेवा ज़ूनोटिक बीमारी को पनपने से रोका जा सके।

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