चर्चा में क्यों
हाल ही में, केरल के त्रिशूर जिले में एंथ्रेक्स रोग की पुष्टि हुई है, जो जीवाणु से होने वाला एक संक्रामक रोग है।
क्या है एंथ्रेक्स रोग
- एंथ्रेक्स को मैलिग्नेंट पस्ट्यूल या वूलसॉर्टर रोग (Malignant Pustule or Woolsorter’s Disease) के रूप में भी जाना जाता है।
- यह एक दुर्लभ परंतु गंभीर बीमारी है। यह बेसिलस एंथ्रेसीस नामक जीवाणु के कारण होती है, जो प्राकृतिक रूप से मिट्टी में पाया जाता है।
- यह एक जूनोटिक रोग है अर्थात् यह प्राकृतिक रूप से जानवरों से मनुष्यों में संचरित होता है। इसके व्यक्ति-से-व्यक्ति में संचरण के उदाहरण नगण्य हैं।
पशुओं में एंथ्रेक्स का प्रसार
- जानवर श्वास लेते समय, दूषित मिट्टी, पौधों (चारा) या पानी के माध्यम से संक्रमित हो सकते हैं।
- मांसाहारी जानवर दूषित मांस खाने से संक्रमित हो जाते हैं। हालाँकि, मक्खियाँ भी इस बीमारी के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- इसके बीजाणु दशकों तक मिट्टी में बने रह सकते हैं, जो वायु के संपर्क में आने पर पुन: फैल जाते हैं।
मनुष्यों में एंथ्रेक्स का संक्रमण
- विदित है कि मनुष्य द्वारा श्वास लेने, दूषित भोजन या दूषित पानी पीने, त्वचा में खरोंच लगने से इसके जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे व्यक्ति संक्रमित हो जाता है।
- हालाँकि, संक्रमित जानवरों का कच्चा या अधपका मांस खाने से मनुष्य जठरांत्र (Gastrointestinal) एंथ्रेक्स का शिकार हो सकते हैं।
- किसान और पशु-चिकित्सक आदि में इस बीमारी के प्रसार का अधिक खतरा रहता है।
एंथ्रेक्स के लक्षण
- मृत्यु से पहले तेज बुखार का आना इसका सामान्य लक्षण है।
- प्रायः वन्यजीवों में मुंह, नाक, कान, गुदा से रक्त स्राव के साथ-साथ सूजन और रक्त का थक्का न बनना।
- मनुष्यों में त्वचा संबंधी एंथ्रेक्स से खुजली हो सकती हैं, जिसमें काले धब्बे के साथ-साथ दर्द रहित त्वचा संबंधी घाव और सूजन की संभावना।
- अन्तः श्वसन एंथ्रेक्स में बुखार व ठंड लगना, श्वास लेने में परेशानी होना, खाँसी एवं मतली (Nausea) के लक्षण।
- यह बीमारी का सबसे घातक रूप है, जिसमें दो से तीन दिनों में मृत्यु भी संभव।
- जठरांत्र एंथ्रेक्स में मतली व उल्टी (रक्त के साथ) आना, गर्दन में सूजन, पेट दर्द और दस्त आदि के लक्षण।
उपचार
- संक्रमण के प्रारंभ में पेनिसिलिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन, डॉक्सीसाइक्लिन जैसी एंटीबायोटिक दवाएँ प्रभावी।
- पशुओं का टीकाकरण।
- मनुष्यों द्वारा भी सीमित मात्रा में टीके का प्रयोग।