New
IAS Foundation Course (Pre. + Mains) - Delhi: 20 Jan, 11:30 AM | Prayagraj: 5 Jan, 10:30 AM | Call: 9555124124

पार्टी से अलग हुए गुट पर भी दल-बदल विरोधी कानून लागू 

प्रारंभिक परीक्षा – दल-बदल विरोधी कानून
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय

सन्दर्भ 

  • महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच राजनीतिक विवाद की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि दल-बदल विरोधी कानून तब भी लागू होता है, जब कोई गुट किसी पार्टी से अलग हो जाता है।

दलदल-बदल कानून

  • वर्ष 1985 में 52 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई और इसी सूची में दल-बदल कानून को भी अन्तःस्थापित किया गया। 
  • यह कानून, संसद तथा राज्य विधानमंडल, दोनों निकायों पर लागू होता है।
  • इस कानून के माध्यम से यह प्रावधान किया गया कि दल बदल के सम्बंध में किसी सदस्य की योग्यता का निर्धारण सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा किया जाएगा और इस बारे में उसका निर्णय अंतिम होगा। 
  • वर्ष 1985 में पारित किये गए इस कानून में यह व्यवस्था की गई थी कि यदि किसी दल के एक तिहाई या उससे अधिक सदस्य अपना दल छोड़कर एक साथ दूसरे दल में जाते हैं तो वे अयोग्य नहीं माने जाएंगे। 
    • 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा एक तिहाई की पूर्व संख्या को दो तिहाई कर दिया गया अर्थात यदि कसी दल के दो तिहाई से ज़्यादा सदस्य दूसरी पार्टी में शामिल होते हैं तो उन्हें अयोग्य नहीं माना जाएगा।

महत्वपूर्ण प्रावधान 

  • इस कानून के तहत निम्न परिस्थितियों में किसी सदस्य की योग्यता समाप्त हो सकती है -
    • यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ता है।
    • यदि कोई सदस्य अपने राजनीतिक दल के दिशा-निर्देशों के विपरीत वोटिंग करता है और उसके दल के द्वारा 15 दिनों के भीतर उसे माफ़ी नहीं दी जाती है तो ऐसी स्थति में उसे अयोग्य माना जाएगा।
    • अगर चुनाव के बाद कोई निर्दलीय उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
    • यदि कोई मनोनीत सदस्य अपने मनोनयन के 6 माह के बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण करता है तो उसकी सदस्यता चली जाएगी।

दलदल-बदल कानून के तहत अपवाद

  • दल-बदल कानून के तहत कुछ ऐसी परिस्थितियों का भी ज़िक्र किया गया है, जिनके तहत दल बदलने के बावजूद भी सदस्यों की सदस्यता पर कोई संकट नहीं आता –
    • यदि किसी दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य एक साथ दल बदलने का निर्णय ले लें।
    • यदि पीठासीन अधिकारी (राज्यसभा के मामले में उपसभापति, सभापति नहीं) पार्टी द्वारा दिशा निर्देश जारी करने के बावजूद ‘वोटिंग के मामले में’ निर्दलीय व्यवहार करें तो भी उसकी सदस्यता पर कोई असर नहीं होगा।
    • इसके अलावा यदि कोई मनोनीत सदस्य अपने मनोनयन के 6 महीने के अंदर किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है तो उसकी सदस्यता बरकरार रहेगी।

सदन के अध्यक्ष के अधिकार

  • दल-बदल कानून के अंतर्गत सदस्यों की अयोग्यता संबंधी सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिये गए हैं।
  • वर्ष 1985 में पारित मूल कानून में अध्यक्ष के द्वारा लिये गए किस भी निर्णय को न्यायिक समीक्षा की परिधि से बाहर रखा गया था और न्यायलय के पास किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप का अधिकार नहीं था।
  • लेकिन वर्ष 1992 के कोहितो होलोहान बनाम जचिल्हू मामले में उच्चतम न्यायलय ने इस प्रावधान को खारिज कर दिया।
    • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि पीठासीन अधिकारी द्वारा सदस्यों की योग्यता के सम्बंध में किया गया निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा।
    • हालाँकि न्यायालय ने यह भी कहा था कि जब तक पीठासीन अधिकारी इस पर निर्णय नहीं दे देता तब तक न्यायालय इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। 

दल-बदल से संबंधित मामले

  • वर्ष 1987 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल एवं अन्य विधायकों ने दल-बदल कानून की वैधता को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
  • पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 52वें संविधान संशोधन को वैध ठहराया, लेकिन इस अधिनियम की धारा 7 के प्रावधान को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया।
    • धारा 7 में प्रावधान था कि सदस्य को अयोग्य ठहराए जाने के निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR