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एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध

संदर्भ

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस रिसर्च एंड सर्विलांस नेटवर्क (जनवरी-दिसंबर 2023) पर हाल ही में जारी आईसीएमआर (ICMR) की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि, सामान्य रोगाणु एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति बहुत अधिक प्रतिरोधी होते जा रहे हैं। एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध के खतरे को देखते हुए, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी दवा विनिर्माण से होने वाले एंटीबायोटिक प्रदूषण पर अपना पहला मार्गदर्शन प्रकाशित किया।   

एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध

  • एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रोगाणु रोगाणुरोधी दवा की मौजूदगी में भी जीवित रहने और संक्रमण फैलाने की क्षमता हासिल कर लेते हैं।
  • एएमआर को सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक) के रोगाणुरोधी एजेंट (एंटीबायोटिक्स, कवकनाशी, एंटीवायरल एजेंट और परजीवीनाशक) के प्रति प्रतिरोध के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
    • सामान्य स्थित में बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक आदि रोगाणु रोगाणुरोधी एजेंट के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • इस प्रकार से उत्पन्न ऐसे रोगाणु जो सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति पूरी तरह से प्रतिरोधी हो जाते हैं उन्हें “सुपरबग” कहा जाता है। 
  • दवा प्रतिरोध के परिणामस्वरूप, एंटीबायोटिक्स और अन्य रोगाणुरोधी दवाएं अप्रभावी हो जाती हैं और संक्रमण का इलाज करना कठिन या असंभव हो जाता है।

एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध

  • स्वाभाविक प्रतिरोध : प्राकृतिक प्रतिरोध सूक्ष्मजीवों की संरचनात्मक विशेषताओं के कारण होता है। यह रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग से जुड़ा नहीं है। इसका कोई वंशानुगत गुण नहीं है।
  • उपार्जित प्रतिरोध : सूक्ष्मजीवों की आनुवंशिक विशेषताओं में परिवर्तन के कारण उपार्जित प्रतिरोध विकसित होता है, जैसे गुणसूत्रों की संरचना में परिवर्तन। यह सूक्ष्मजीवों को पिछले रोगाणुरोधी उपचार के प्रति प्रतिरोधी बनाता है।
  • परस्पर प्रतिरोध : समान संरचना वाले एंटीबायोटिक्स के विरुद्ध रोगाणुओं में विकसित प्रतिरोध।
  • बहु-औषधि प्रतिरोध : सूक्ष्मजीवों के विरूद्ध उपयोग किए जाने वाले रोगाणुरोधी पदार्थों की एक श्रृंखला के प्रति प्रतिरोध।

क्यों बढ़ रहा है एएमआर

  • एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग : अक्सर गैर-जीवाणुजनित संक्रमण में भी एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है। स्व-चिकित्सा और ओवर-द-काउंटर एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग में कोई नियंन्त्रण नहीं है। 
    • इसके अलावा निश्चित औषधि संयोजनों ने भी भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध में वृद्धि में योगदान दिया है।
  • अपर्याप्त सुविधाएं : भारत में प्रयोगशाला नेटवर्क और चिकित्सकों को सहायता देने की क्षमता का गंभीर अभाव है।
  • कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में एंटीबायोटिक का अनुचित उपयोग : कृषि फ़ीड में एंटीबायोटिक्स मिलाने से दवा प्रतिरोध को बढ़ावा मिलता है। 
    • पोल्ट्री फार्मिंग में वृद्धि को बढ़ावा देने वाले एजेंट के रूप में कोलिस्टिन के उपयोग से भारत में कोलिस्टिन एएमआर का विकास हुआ है।
  • दवा निर्माण स्थलों के आसपास प्रदूषण : दवा उद्योगों से निकलने वाला अनुपचारित अपशिष्ट में बड़ी मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी पदार्थ मौजूद होते हैं।

एएमआर से जुड़ी चुनौतियां

  • रोगाणुरोधी दवाओं के अत्यधिक उपयोग से प्रतिरोधी या अत्यधिक प्रतिरोधी सुपरबग्स का निर्माण हो सकता है, जो अस्पतालों में, पीने के पानी या सीवरों के माध्यम से मरीजों में फैल सकते हैं।
  • इन रोगाणुओं के कारण होने वाले संक्रमण आमतौर पर निर्धारित एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक नहीं होते है।
  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ने के कारण साधारण संक्रमणों का इलाज करना मुश्किल हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, ई. कोलाई, क्लेबसिएला, एसिनेटोबैक्टर, स्टैफिलोकोकस ऑरियस, एंटरोकोकस जैसे बैक्टीरिया नवीनतम पीढ़ी की एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधी हो गए हैं।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग ने उनमें से कुछ दवाओं को बेकार या सीमित उपयोग में ला दिया है।
    •  डायरिया की आम दवा नॉरफ्लोक्सासिन अप्रभावी होती जा रही है।

एएमआर को रोकने की दिशा में प्रयास 

  • कृषि में एंटीबायोटिक उपयोग पर प्रतिबंध : भारत सरकार ने कृषि में स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ पोल्ट्री फार्मिंग में विकास संवर्धन के लिए ‘कोलिस्टिन’ के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाया है।
  • राष्ट्रीय एएमआर नियंत्रण कार्यक्रम : भारत में एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस से निपटने के लिए, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2017 में एएमआर पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपी-एएमआर) शुरू की थी। 
    • यह कार्य योजना, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एएमआर पर वैश्विक कार्य योजना के अनुरूप है।
  • एएमआर निगरानी नेटवर्क : आईसीएमआर ने देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के रुझान और पैटर्न को जानने तथा साक्ष्य जुटाने के लिए तृतीयक देखभाल अस्पतालों (निजी और सरकारी दोनों) को शामिल करते हुए एएमआर निगरानी और अनुसंधान नेटवर्क (एएमआरएसएन) की स्थापना की है। 
  • रेड लाइन अभियान : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का “रेड लाइन अभियान” के अंतर्गत डॉक्टर के पर्चे के बिना एंटीबायोटिक दवाओं सहित लाल रेखा से चिह्नित दवाओं का उपयोग को हतोत्साहित किया जाता है।
  • ऑपरेशन AMRITH : संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए रोगाणुरोधी प्रतिरोध हस्तक्षेप : ऑपरेशन अमृत (Antimicrobial Resistance Intervention for Total Health : AMRITH) सूची H1 नियम को लागू करता है, जिसके तहत किसी भी वर्ग के एंटीबायोटिक्स को प्राप्त करने के लिए डॉक्टर के लिखित परामर्श को अनिवार्य किया गया है। 

क्या किया जाना चाहिए

  • डॉक्टरों को, जहाँ भी संभव हो, निदान परीक्षणों पर जोर देना चाहिए जो उन्हें व्यापक स्पेक्ट्रम वाले एंटीबायोटिक्स के बजाय संक्रमण के लिए विशिष्ट एंटीबायोटिक्स लिखने में मदद कर सकते हैं।
  • स्वच्छता संबंधी प्रथाओं को अपनाकर, सफाई व्यवस्था में सुधार करके तथा लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रेरित करके संक्रमण की रोकथाम करना।
    • उदाहरण के लिए, बुजुर्गों के लिए न्यूमोकोकल वैक्सीन या इन्फ्लूएंजा वैक्सीन निमोनिया की घटनाओं को कम कर सकती है।
  • हाल ही में जारी किए गए विनिर्माण से एंटीबायोटिक प्रदूषण पर डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देश एंटीबायोटिक विनिर्माण सुविधाओं के लिए अपशिष्ट जल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
  • एंटीबायोटिक निर्माण से निकलने वाला फार्मास्युटिकल कचरा नए दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के उद्भव में सहायक हो सकता है, जो वैश्विक स्तर पर फैल सकता है और हमारे स्वास्थ्य के लिए ख़तरा बन सकता है। एंटीबायोटिक उत्पादन से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने से इन जीवनरक्षक दवाओं को सभी के लिए प्रभावी बनाए रखने में मदद मिलती है।
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