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अपराजिता विधेयक

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय, संसद और राज्य विधायिका)

संदर्भ 

  • कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार एवं हत्या के के बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा ने बलात्कार के मामले में अनिवार्य मृत्युदंड का प्रावधान करने वाला ‘अपराजिता’ विधेयक पारित किया है।
  • इससे पहले आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र विधानसभा ने भी आपराधिक कानूनों में संशोधन करके बलात्कार के लिए मृत्युदंड का कानून पारित किया था। हालंकि, इनमें से किसी भी विधेयक को अभी तक राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं प्राप्त हुई है।

अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024 

  • प्रस्तावित विधेयक बलात्कार के सभी मामलों में अधिकतम सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान करता है तथा बलात्कार के मामलों की जांच एवं सुनवाई के तरीके में बदलाव करता है।  
  • इन परिवर्तनों को प्रभावी करने के लिए यह विधेयक भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता (BNSS) और राज्य में बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POCSO) के प्रावधानों में संशोधन करता है।

अपराजिता विधेयक के प्रमुख प्रावधान

BNS की विभिन्न धाराओं में परिवर्तन 

  • धारा 64 : यह धारा बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा एवं ऐसे गंभीर मामलों में सजा का प्रावधान करती है जिसमें लोक सेवक, सशस्त्र बलों के सदस्य द्वारा, सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार की घटनाएँ आदि शामिल हैं। इन दोनों ही स्थितियों में यह धारा अधिकतम सजा के रूप में ‘आजीवन कारावास’ का प्रावधान करती है।
    • परिवर्तन : प्रस्तावित अपराजिता विधेयक में ‘मृत्यु दण्ड’ को भी जोड़ दिया गया है।
  • धारा 66 : यह धारा बलात्कार से पीड़िता की मृत्यु या उसे लगातार क्षीण अवस्था (Vegetative State) में पहुंचाने के लिए न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास के साथ आजीवन कारावास या मृत्यु दंड का प्रावधान करती है। 
    • परिवर्तन : अपराजिता विधेयक में मृत्यु दंड को छोड़कर सभी दंडों का उल्लेख हटा दिया गया है, जिससे ऐसे मामलों में मृत्यु दंड अनिवार्य हो गया है।
  • धारा 70 : यह धारा ‘सामूहिक बलात्कार’ के ऐसे मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान करती है जहां पीड़िता 18 वर्ष से कम आयु की है किंतु इससे अधिक आयु की महिलाओं के मामले में अधिकतम सजा आजीवन कारावास है।
    • परिवर्तन : अपराजिता विधेयक इसमें संशोधन करके 18 वर्ष से अधिक आयु की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए भी मृत्युदंड का प्रावधान करता है।
  • धारा 71 : यह धारा बार-बार अपराध करने वालों के लिए दंड का प्रावधान करती है। ऐसा कोई व्यक्ति जिसे पहले से ही धारा 64, धारा 65, धारा 66 या धारा 70 में से किसी धारा के तहत दोषी पाया गया हो और बाद में उक्त धाराओं में से किसी के तहत दोबारा दोषी पाया जाता है, तो उसके लिए आजीवन कारावास का प्रावधान है।
    • परिवर्तन : अपराजिता विधेयक धारा 70 के अंतर्गत साधारण ‘आजीवन कारावास’ की सजा को ‘आजीवन कठोर कारावास’ से प्रतिस्थापित करता है।
  • धारा 72 व 73 : अपराजिता विधेयक धारा 72 के तहत बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने एवं धारा 73 के तहत बलात्कार के मामलों में न्यायिक कार्यवाही से संबंधित जानकारी प्रकाशित करने के लिए जेल की अवधि में भी वृद्धि करता है।

अन्य परिवर्तन व प्रावधान 

  • एसिड अटैक संबंधी मामले : अपराजिता विधेयक BNS की धारा124 के अंतर्गत एसिड अटैक मामले में हल्के दंड (आजीवन कारावास से कम अवधि एवं जुर्माना) को हटाकर ‘आजीवन कठोर कारावास’ को एकमात्र दंड के रूप प्रावधान करता है।
  • पोक्सो अधिनियम में मृत्युदंड : यह विधेयक पोक्सो अधिनियम की धारा 4 (Penetrative Sexual Assault)में संशोधन करके आजीवन कारावास को मृत्युदंड से प्रतिस्थापित करता है। 
  • टास्क फोर्स व विशेष न्यायालय : अपराजिता विधेयक में बलात्कार के मामलों की जांच, सुनवाई एवं सख्त समय-सीमा के भीतर निर्णय देने के स्पष्ट उद्देश्य से विशेष संस्थाओं का प्रावधान है।
    • विधेयक में बलात्कार के मामलों में जांच या सुनवाई को शीघ्र पूरा करने के उद्देश्य से प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालय स्थापित करने तथा एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने के लिए BNSS में क्रमशः धारा 29ए एवं 29बी शामिल की गई है।
    • प्रस्तावित विधेयक के तहत राज्य सरकार द्वारा बलात्कार के मामलों की जांच के लिए प्रत्येक जिले में एक विशेष अपराजिता टास्क फोर्स गठित की जाएगी। 
  • इस विधेयक में प्रासंगिक BNS और पोक्सो अपराधों की जांच पूरी करने के लिए BNSS की धारा 193 के तहत दिए गए समय को दो महीने से घटाकर 21 दिन कर दिया गया है (जिसे 15 दिनों तक और बढ़ाया जा सकता है)।
  • विधेयक में BNSS की धारा 346 में भी संशोधन करके आरोप-पत्र दाखिल होने के बाद सुनवाई पूरी करने के लिए दिए जाने वाले समय को दो महीने से घटाकर 30 दिन कर दिया गया है।

अन्य राज्यों के विधेयक 

आंध्र प्रदेश : दिशा बिल

  • दिसंबर 2019 में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने सर्वसम्मति से आंध्र प्रदेश दिशा अधिनियम- ‘आपराधिक कानून (आंध्र प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2019’ और ‘आंध्र प्रदेश दिशा (महिलाओं और बच्चों के खिलाफ निर्दिष्ट अपराधों के लिए विशेष न्यायालय) विधेयक, 2019’ पारित किया।
  • इस विधेयक द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) एवं दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) में संशोधन किया गया।
  • बलात्कार के लिए मृत्युदंड : दिशा विधेयक में 16 वर्ष से कम आयु की नाबालिग के साथ बलात्कार (आईपीसी धारा 376), सामूहिक बलात्कार (धारा 376डी) और बार-बार अपराध करने वालों ( धारा 376ई ) के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है।
  • अपराजिता की तरह दिशा में भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों की जांच और सुनवाई के लिए हर जिले में ‘विशेष पुलिस दल’ तथा ‘विशेष अदालतों’ के गठन का प्रावधान है तथा ऐसे मामलों की जांच व सुनवाई के लिए कम समय-सीमा निर्धारित की है।
  • दिशा विधेयक में एक ‘महिला एवं बाल अपराधी रजिस्ट्री’ का भी प्रस्ताव है, जिसमें महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में ‘संलिप्त’ लोगों का पूरा विवरण रखा जाएगा तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उपलब्ध कराया जाएगा।

महाराष्ट्र : शक्ति विधेयक

  • वर्ष 2020 में महाराष्ट्र विधानसभा ने शक्ति आपराधिक कानून (महाराष्ट्र संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया। शक्ति विधेयक ने भी बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान किया और जांच व मुकदमे के लिए कम समयसीमा प्रदान की।\
  • वेब प्लेटफॉर्म पर दायित्त्व : शक्ति विधेयक में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में ‘ऐसे किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या इंटरनेट या मोबाइल टेलीफोनी डाटा प्रदाता सहित किसी भी मध्यस्थ या संरक्षक को एक महीने तक के कारावास की सजा का प्रावधान है, जो अनुरोध के अनुसार जांच अधिकारी के साथ दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड सहित कोई भी डाटा साझा करने में विफल रहता है’।
  • मृत्युदंड : विधेयक में ‘जघन्य’ एसिड हमले के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान है, जहां ‘पर्याप्त निर्णायक साक्ष्य मौजूद हैं और परिस्थितियां अनुकरणीय दंड की मांग करती हैं’।
  • पोक्सो एक्ट : अपराजिता की तरह शक्ति विधेयक ने भी पोक्सो एक्ट में संशोधन कर यौन उत्पीड़न (धारा 4) के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान किया है। 

राष्ट्रपति की स्वीकृति की अनिवार्यता 

संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची में ऐसे विषय सूचीबद्ध हैं जिन पर केंद्र एवं राज्य दोनों कानून पारित कर सकते हैं। आपराधिक कानून एवं आपराधिक प्रक्रिया समवर्ती सूची में प्रविष्टि 1 व 2 हैं।

  • चूंकि तीनों विधेयकों (अपराजिता, दिशा एवं शक्ति) के प्रस्तावित प्रावधान संसद द्वारा अधिनियमित मूल आपराधिक कानूनों के साथ असंगत या ‘विरोधाभासी’ हो जाते हैं। 
  • अनुच्छेद 254 के अंतर्गत समवर्ती सूची में शामिल विषयों से संबंधित केंद्रीय कानूनों (जैसे- बी.एन.एस., बी.एन.एस.एस. और पी.ओ.सी.एस.ओ.) में राज्य संशोधनों को लागू होने के लिए राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है। 
  • ये विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बिना राज्यों द्वारा ‘विरोध की सीमा तक’ पारित कानून अमान्य हो जाएंगे।
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