(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, उत्तर-पश्चिम भारत के शुष्क इलाकों में हाई-रिज़ॉल्यूशन मानचित्रण और प्रबंधन के लिये केंद्रीय भूजल बोर्ड, जल शक्ति मंत्रालय और एन.जी.आर.आई. (NGRI), हैदराबाद के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं।
कार्यक्रम में शामिल क्षेत्र
- जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम के अंतर्गत राजस्थान, गुजरात और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में यह कार्य किया जाएगा।
- परियोजना के पहले चरण में लगभग 1 लाख वर्ग किमी. का क्षेत्र कवर किया जाएगा। इसमें पश्चिमी राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों (बीकानेर, चुरू, गंगानगर, जालौर, पाली, जैसलमेर, जोधपुर और सीकर ज़िले के कुछ हिस्से) को कवर किया जाएगा।
- साथ ही, गुजरात के शुष्क क्षेत्रों (राजकोट, जामनगर, मोरबी, सुरेंद्रनगर और देवभूमि द्वारका ज़िलों) के साथ-साथ हरियाणा के कुछ क्षेत्रों (कुरुक्षेत्र और यमुनानगर ज़िलों) को भी इसके अंतर्गत शामिल किया जाएगा।
अध्ययन के लक्ष्य
- अध्ययन के प्रमुख लक्ष्यों में हेलीबोर्न (Heliborne) भू-भौतिकीय अध्ययनों का उपयोग करके हाई-रिज़ॉल्यूशन जलभृत मानचित्रण (Aquifer Mapping) और कृत्रिम तरीके से पुनर्भरण (Artificial Recharge) करने के लिये स्थलों की पहचान करना शामिल है।
- साथ ही, 3-डी भू-भौतिकीय मॉडल, क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर तलों का भू-भौतिकीय विषयगत मानचित्रण (Thematic Maps), डी-सैचुरेटेड और सैचुरेटेड जलभृतों के सीमांकन के साथ-साथ प्रमुख जलभृतों की जियोमेट्री तैयार की जाएगी।
- इसके अतिरिक्त, अपेक्षाकृत ताज़े एवं खारे जलक्षेत्रों के साथ जलभृत प्रणाली और कृत्रिम या प्रबंधित जलभृत पुनर्भरण के माध्यम से भूजल निकासी तथा जल संरक्षण के लिये उपयुक्त स्थलों का चयन भी शामिल है।
भूजल और जलभृत (Ground Water and Aquifer)
- चट्टानों तथा मिट्टी से रिसकर भूमि के नीचे जमा होने वाले जल को ‘भूजल’ कहते हैं। जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत कहा जाता है।
- दूसरे शब्दों में जलभृत पृथ्वी की सतह के नीचे स्थित उस संरचना को कहा जाता है, जिसमें मुलायम चट्टानों, छोटे-छोटे पत्थरों, चिकनी मिट्टी और गाद के भीतर सूक्ष्मकणों के रूप में जल भरा रहता है। सतह में जिस गहराई पर पानी मिलता है, उसे जल-स्तर (Water-level) कहते हैं। मूलतः स्वच्छ भूजल वाटर-टेबल के नीचे स्थित जलभृत में ही पाया जाता है।
- जलभृतों में जिन स्थानों पर जल भरता है, वे संतृप्त क्षेत्र कहलाते हैं।
- भूजल का अतिदोहन उस परिस्थिति को कहते हैं जब एक समयावधि के बाद जलभृतों की औसत निकासी दर, औसत पुनर्भरण की दर से अधिक होती है।
- भारत में सतही जल की अपेक्षा भूजल की उपलब्धता कम है। फिर भी भूजल की विकेंद्रित उपलब्धता के कारण इसका दोहन आसानी से किया जा सकता है। भारत की कृषि व पेयजल आपूर्ति में इसकी हिस्सेदारी बहुत अधिक है।
भूजल स्तर में गिरावट के कारण
- इसका मुख्य कारण, कृषि के लिये भूजल की बढ़ती माँग और अधिकांश क्षेत्रों में भूजल उपलब्धता पर ध्यान दिये बिना फसलों का पैटर्न निर्धारित करना।
- भूजल स्त्रोतों में बढ़ता प्रदूषण और प्रदूषण को नियंत्रित करने एवं भूजल पुनर्भरण के लिये सरकारों द्वारा किसी प्रभावी कार्यक्रम को लागू न किया जाना।
- भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन पर शांता कुमार की अध्यक्षता वाली समिति ने पाया कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा में प्रभावी मूल्य समर्थन केवल धान और गेहूँ पर दिया गया, जो कि जल-गहन फसलें हैं। ये फसलें काफी हद तक भूजल पर निर्भर होती हैं।
भूजल स्तर में सुधार के लिये सुझाव
- भूजल के अतिदोहन की समस्या से निपटने के लिये कृषि में माँग प्रबंधन का प्रयोग किया जाना चाहिये। इससे कृषि में भूजल पर निर्भरता कम होगी।
- भूजल निकासी, मानसूनी वर्षा और जल-स्तर के अनुसार क्षेत्र-विशेष के लिये फसलों का चयन।
- ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीकों को अपनाना, ताकि वाष्पीकरण और कृषि में जल के उपयोग को कम किया जा सके।
- विनियामक उपायों के माध्यम से भूजल के प्रयोग को नियंत्रित करना जैसे, सिंचाई के लिये कुओं की गहराई को निर्धारित करना, कुओं के बीच न्यूनतम दूरी को तय करना।
- राष्ट्रीय जल प्रारूप विधयेक, 2013 के अनुसार, सिंचाई के लिये विद्युत् के प्रयोग को विनियमित करके भूजल दोहन को कम किया जा सकता है। साथ ही, राष्ट्रीय जल नीति, 2020 में भी सुझाव दिया गया है कि भूजल निकासी के लिये दी जाने वाली विद्युत सब्सिडी पर पुनर्विचार किया जाना चाहिये।
जल और विधान
- वर्तमान में भारतीय सुखाचार अधिनियम, 1882 प्रत्येक भू-स्वामी को ज़मीन के भीतर या उसकी सतह पर मौजूद जल को एकत्रित तथा निस्तारित करने का अधिकार देता है। ऐसी स्थिति में भूजल निकासी को विनियमित करना कठिन हो जाता है।
- वर्तमान में जल संबंधी विषयों को राज्य सूची में रखा गया है। वर्ष 2012 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जल नीति को रेखांकित किया जिसमें पानी की मांग के प्रबंधन, उपभोग क्षमता, बुनियादी और मूल्य संबंधी सिद्धांतों को पेश किया था। राष्ट्रीय जल नीति के सुझावों के मद्देनज़र वर्ष 2013 में सरकार ने राष्ट्रीय जल प्रारूप विधेयक का मसौदा प्रकाशित किया। इसका उद्देश्य राज्य सरकारों के लिये रूपरेखा तैयार करना था।
जल और संस्थागत संरचना
- जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय देश में जल संरक्षण व प्रबंधन के लिये उत्तरदाई है। वहीं, ग्रामीण विकास मंत्रालय भूजल प्रबंधन से संबंधित कुछ कार्यक्रमों व योजनाओं का क्रियान्वयन करता है।
- इसके अतिरिक्त पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय प्रदूषण (विशेष रूप से जल प्रदूषण तथा भूजल संदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) के लिये आंशिक रूप से उत्तरदाई है।
जल प्रबंधन में केंद्रीय संस्थानों की भूमिका
- केंद्रीय जल आयोग- राज्य सरकारों के सहयोग से जल संसाधनों के संरक्षण, समन्वय और जल की गुणवत्ता का निरीक्षण।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड- भूजल संसाधनों का सतत् प्रबंधन, निरीक्षण, कार्यान्वयन और आकलन।
- केंद्रीय भूजल प्राधिकरण- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अनुसार भूजल संसाधनों के विकास व प्रबंधन का विनियमन एवं नियंत्रण।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड- जल (प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण) अधिनियम, 1974 का क्रियान्वयन।