(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ व उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएँ और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन तथा इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव) |
संदर्भ
हाल के वर्षों में, आर्कटिक टुंड्रा की निम्न कार्बन उत्सर्जन और अधिक कार्बन अवशोषित करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ा है। एक नए विश्लेषण ने पुष्टि की है कि यह पारिस्थितिकी तंत्र अब CO2 एवं मीथेन CH4 उत्सर्जन का स्रोत बन गया है।
क्या है आर्कटिक टुंड्रा
- आर्कटिक टुंड्रा बर्फीला व वृक्षविहीन एक बायोम है जो हजारों वर्षों से अस्तित्व में है। इसने कार्बन को संग्रहीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में एक महत्वपूर्ण कारक है।
- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आर्कटिक टुंड्रा की मिट्टी में 1.6 ट्रिलियन मीट्रिक टन से अधिक कार्बन है जो पृथ्वी के वायुमंडल में वर्तमान कार्बन की मात्रा से दोगुने से भी अधिक है।
कार्बन भंडारण
- आम तौर पर पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से वायु से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करते हैं और यह कार्बन पौधों या मिट्टी में तब संबद्ध हो सकता है जब पौधे या जानवर मर जाते हैं।
- आर्कटिक टुंड्रा में ठंडी जलवायु अपघटन प्रक्रिया को मंद कर देती है जिसका अर्थ है कि मृत पौधे एवं जानवर दीर्घकाल तक मृदा में संरक्षित रहते हैं।
- पर्माफ्रॉस्ट (कम-से-कम दो वर्ष तक जमी रहने वाली मृदा परत) इस कार्बनिक पदार्थ को रोकती है, जिससे कार्बन को वायुमंडल में वापस जाने से रोका जाता है।
वर्तमान में आर्कटिक टुंड्रा से अधिक कार्बन उत्सर्जन का कारण
- बढ़ते तापमान का प्रभाव : आर्कटिक में तापमान तीव्र दर से बढ़ रहा है जो वैश्विक औसत से लगभग चार गुना अधिक है।
- वर्ष 2024 में आर्कटिक में वर्ष 1900 के बाद से दूसरी बार सबसे ज़्यादा गर्म सतही वायु का तापमान दर्ज किया गया।
- पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना : जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, जिससे संग्रहित कार्बनिक पदार्थ उत्सर्जित होते हैं।
- आमतौर पर ठंडी मृदा में सूक्ष्मजीव निष्क्रिय रहते हैं किंतु एक बार जब पर्माफ्रॉस्ट पिघल जाता है तो ये सूक्ष्मजीव सक्रिय हो जाते हैं। वे कार्बनिक पदार्थ (जैसे- मृत पौधे एवं जानवर) का अपघटन शुरू कर देते हैं जिससे कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) व मीथेन (CH4) वायुमंडल में उत्सर्जित हो जाते हैं।
जंगली आग एवं कार्बन उत्सर्जन पर उनका प्रभाव
- जंगल में आग लगने की गतिविधियों में वृद्धि : बढ़ते तापमान के अलावा आर्कटिक में जंगल में आग लगने की आवृत्ति व गंभीरता में भी वृद्धि देखी गई है।
- वर्ष 2023 में आर्कटिक में जंगल में आग लगने का सबसे खराब मौसम दर्ज किया गया और वर्ष 2024 इसके लिए दूसरा सबसे खराब मौसम था।
- जंगल की आग के प्रभाव : जंगल की आग पौधों को जलाकर और CO2 तथा अन्य गैसों को छोड़कर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रत्यक्ष योगदान देती है। इसके अलावा, जंगल की आग का धुआँ पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ करता है।
- वर्ष 2001 से 2020 के बीच आर्कटिक टुंड्रा ने जितना कार्बन अवशोषित किया था, उससे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जित करना शुरू कर दिया। यह संभवतः हज़ारों वर्षों में पहली बार है।
आर्कटिक से कार्बन उत्सर्जन के वैश्विक परिणाम
- जैसे-जैसे आर्कटिक टुंड्रा कार्बन सिंक (कार्बन को उत्सर्जित करने से अधिक अवशोषित करता है) से कार्बन उत्सर्जक (कार्बन को अवशोषित करने से ज़्यादा निष्कर्षित करता है) में बदल रहा है, इससे ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति और भी बदतर हो रही है।
- CO2 एवं मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन जलवायु संकट को बढ़ाता है, जिससे मौसम के पैटर्न में और भी अधिक बदलाव आते हैं, समुद्र का जलस्तर बढ़ता है तथा अन्य प्रतिकूल वैश्विक प्रभाव पड़ते हैं।
उत्सर्जन को उलटने की संभावना
- आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड के अनुसार, आर्कटिक टुंड्रा की कार्बन उत्सर्जन से ज़्यादा कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता को बहाल करना अभी भी संभव है। ऐसा तभी हो सकता है जब वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जाए।
- वुडवेल क्लाइमेट रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक ब्रेंडन रोजर्स इस बात पर जोर देते हैं कि आर्कटिक से कार्बन उत्सर्जन में तेजी को रोकने के लिए उत्सर्जन को कम करना बहुत जरूरी है।
प्रवृत्ति को उलटने की चुनौतियाँ
- बढ़ता उत्सर्जन : इस प्रवृत्ति को उलटने की संभावना के बावजूद, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि जारी है।
- ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन में वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में थोड़ी वृद्धि होने की आशंका है।
- सीमित प्रगति : उत्सर्जन में निरंतर वृद्धि के कारण यह संभावना नहीं है कि विश्व निकट भविष्य में आर्कटिक में तापमान वृद्धि को महत्वपूर्ण रूप से कम कर सकेगा, जिसका अर्थ है कि आर्कटिक टुंड्रा खतरनाक दरों पर वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जित करता रहेगा।