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आर्कटिक वार्मिंग 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) 

संदर्भ

हाल ही में, फिनलैंड के ‘फिनिश (Finnish) मौसम विज्ञान संस्थान’ के शोधों के अनुसार, आर्कटिक क्षेत्र पृथ्वी के अन्य भागों की अपेक्षा चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है। उष्णता की यह दर आर्कटिक के यूरेशियन भाग में अधिक केंद्रित है, जहाँ रूस और नॉर्वे के उत्तर में बैरेंट्स सागर अत्यधिक तेजी से गर्म हो रहा है, जो वैश्विक औसत से सात गुना अधिक है। 

आर्कटिक प्रवर्धन (Arctic amplification)

  • वैश्विक तापन की प्रक्रिया मानवजनित कारणों या मानव गतिविधियों के कारण तीव्र हुई है और ग्रह के औसत तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। 
  • सतही वायु तापमान और शुद्ध विकिरण संतुलन में कोई भी परिवर्तन उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर बड़े परिवर्तन उत्पन्न करता है। इस घटना को ‘ध्रुवीय प्रवर्धन’ (Polar Amplification) कहा जाता है। 
  • ये परिवर्तन उत्तरी अक्षांशों पर अधिक स्पष्टतः देखे जाते हैं, जो आर्कटिक प्रवर्धन के रूप में जाने जाते हैं।

आर्कटिक प्रवर्धन के कारण

  • इस प्रवर्धन के लिये कई ग्लोबल वार्मिंग प्रेरित कारण उत्तरदायी है, जिसमें बर्फ-एल्बिडो प्रतिक्रिया, गिरावट दर प्रतिक्रिया (Lapse Rate Feedback), जल वाष्प प्रतिक्रिया और समुद्री ताप परिवहन शामिल हैं। 
  • समुद्री बर्फ में उच्च एल्बिडो (सतह द्वारा परावर्तन दर का माप) होता है, जो जल और भूमि के विपरीत अधिकांश सौर विकिरण को परावर्तित करने में सक्षम हैं। 
  • ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप आर्कटिक महासागर की समुद्री बर्फ घट रही है। समुद्री बर्फ के पिघलने से आर्कटिक महासागर सौर विकिरण को अवशोषित करने में अधिक सक्षम हो जाएगा, जिससे प्रवर्धन को बढ़ावा मिलेगा। 

पूर्व के अध्ययन 

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल ने 2019 में बदलती जलवायु में महासागर और क्रायोस्फीयर पर एक विशेष रिपोर्ट को जारी किया, जिसमें कहा गया था कि आर्कटिक सतह की वायु के तापमान में वैश्विक औसत से दोगुने से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है। 
  • मई 2021 में, आर्कटिक मॉनिटरिंग एंड असेसमेंट प्रोग्राम (AMAP) ने चेतावनी दी थी कि आर्कटिक क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में तीन गुना तेजी से गर्म हो गया है। यदि पृथ्वी दो डिग्री गर्म होती है, तो गर्मियों में समुद्री बर्फ के पूरी तरह से गायब होने की संभावना 10 गुना अधिक होगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस क्षेत्र में औसत वार्षिक तापमान में पृथ्वी के 1 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 3.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। 

आर्कटिक वार्मिंग के परिणाम 

  • आर्कटिक प्रवर्धन के कारण और परिणाम चक्रीय हैं अर्थात् जो कारण हो सकता है, वह परिणाम भी हो सकता है। 
  • ग्रीनलैंड के हिम चादर तीव्रता से पिघल रहे हैं। इन समुद्री बर्फ के संचय की दर वर्ष 2000 के बाद से उल्लेखनीय रूप से कम हुई है, जो पुरानी और मोटी बर्फ की चादरों के स्थान पर युवा और पतली बर्फ है। 
  • अंटार्कटिका के बाद ग्रीनलैंड के हिम चादर में बर्फ की दूसरी सबसे बड़ी मात्रा है, जो समुद्र के स्तर को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है। यदि बर्फ की चादर पूरी तरह से पिघल जाती है, तो समुद्र का स्तर सात मीटर तक बढ़ जाएगा, जो द्वीपीय देशों और प्रमुख तटीय शहरों के अस्तित्व को मिटा देगा। 
  • विदित है कि असामान्य गर्मी के परिणामस्वरूप ग्रीनलैंड के हिम चादरों के पिघलने की दर इस वर्ष 15 से 17 जुलाई के बीच तेज़ी से बढ़ी है। इस दौरान तीन दिनों की अवधि में कुल 18 बिलियन टन हिम चादर पिघल गए।  
  • आर्कटिक महासागर के गर्म होने, पानी का अम्लीकरण एवं लवणता के स्तर में परिवर्तन से जैव विविधता विपरीत रूप से प्रभावित हो रही है। 
  • वैश्विक तापन से वर्षण में भी वृद्धि हो रही है, जो हिरण के लिये लाइकेन की उपलब्धता और पहुँच को प्रभावित कर रही है। 
  • आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट (वह स्थल जिसका ताप लगातार दो या अधिक वर्षों तक 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहा हो) पिघल रहे हैं और बदले में कार्बन और मीथेन को मुक्त कर रहे हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिये जिम्मेदार प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में शामिल हैं। 
  • बर्फ के पिघलने के कारण लंबे समय से निष्क्रिय बैक्टीरिया और वायरस भी मुक्त होंगे, जो पर्माफ्रॉस्ट में फंस गए थे और संभावित रूप से बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण वर्ष 2016 में साइबेरिया में एंथ्रेक्स बीमारी का प्रकोप था, जिसमें लगभग दो लाख हिरणों की मौत हुई थी।

भारत पर प्रभाव 

  • हाल के वर्षों में, वैज्ञानिकों ने आर्कटिक के बदलते मौसम के संदर्भ में भारतीय उपमहाद्वीप की मानसून प्रणाली पर विचार किया है। 
  • भारतीय और नॉर्वेजियन वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा वर्ष 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि बैरेंट्स-कारा समुद्री क्षेत्र में कम समुद्री बर्फ से मानसून के उत्तरार्ध (सितंबर और अक्टूबर) में अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ हो सकती हैं। 
  • अरब सागर में गर्म तापमान के साथ संयुक्त रूप से घटती समुद्री बर्फ के कारण वायुमंडलीय परिसंचरण में परिवर्तन हो रहा है, जो नमी को बढ़ाने और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में योगदान देता है।
  • वर्ष 2014 में भारत ने मानसून जैसी उष्णकटिबंधीय प्रक्रियाओं पर आर्कटिक महासागर के प्रभावों की निगरानी के लिये कोंग्सफजॉर्डन फजॉर्ड (Kongsfjorden fjord), स्वालबार्ड में भारत की पहली अंडरवाटर वेधशाला, इंडआर्क (IndARC) को स्थापित किया गया। 
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट इन 2021’ के अनुसार, भारतीय तट के निकट समुद्र के स्तर में वैश्विक औसत दर की तुलना में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसके प्राथमिक कारणों में से एक ध्रुवीय क्षेत्रों, विशेष रूप से आर्कटिक में समुद्री बर्फ का पिघलना है। 
  • स्पष्ट है कि आर्कटिक प्रवर्धन इस विचार को आगे बढ़ाता है कि आर्कटिक में जो होता है वह केवल आर्कटिक में नहीं रहता है और दक्षिण में उष्णकटिबंधीय प्रक्रियाओं को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है।
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