प्रारंभिक परीक्षा
(भारतीय राज्यतंत्र एवं शासन- संविधान, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध व आतंकवाद के बीच संबंध)
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संदर्भ
14 नवंबर, 2024 को केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने जातीय हिंसा बढ़ने के कारण मणिपुर के पांच जिलों के कुछ हिस्सों में सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम (AFSPA) को पुन: लागू कर दिया गया है। इन जिलों के नाम इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, जिरीबाम, बिष्णुपुर एवं कांगपोकपी हैं। यह 31 मार्च, 2025 तक प्रभावी रहेगा। सुरक्षा स्थिति एवं जनता के विश्वास में सुधार के बाद अप्रैल 2022 में मणिपुर के कई हिस्सों से AFSPA हटा लिया गया था।
अफ्स्पा पुनः लागू करने के कारण
- जातीय हिंसा : यह निर्णय मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के बाद लिया गया है जो मई 2023 में मैतेई समुदाय (घाटी में रहने वाले) और आदिवासी कुकी-जो-ह्मार समूहों (पहाड़ियों में रहने वाले) के मध्य शुरू हुई थी।
- हताहत एवं विस्थापन : संघर्ष के कारण 240 से अधिक लोग मारे गए हैं और हज़ारों लोग विस्थापित हुए हैं। 7 नवंबर, 2024 से हालिया हिंसा शुरू हो गई है।
- विद्रोही संलिप्तता : हिंसक कृत्यों में विद्रोही समूहों की सक्रिय भागीदारी के कई मामले सामने आए हैं। फलतः सुरक्षा संकट बढ़ गया है।
- विद्रोही अपनी गतिविधियों के लिए जातीय हिंसा का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- सुरक्षा बलों के लिए चुनौतियाँ : इस कानून के अभाव में सेना को इन क्षेत्रों में ऑपरेशन करने में नागरिक सहायता (जैसे- मजिस्ट्रेट से मंजूरी) का इंतज़ार करना पड़ता था, जिससे कई बार काफी देरी हो जाती थी।
- इस कानून के फिर से लागू होने से उन्हें बिना किसी देरी के काम करने की अनुमति मिलती है।
अफ्स्पा (AFSPA) के बार में
- क्या है : AFSPA सशस्त्र बलों को अशांत घोषित क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है। इसके तहत सेना को ऐसी कार्रवाइयां करने की अनुमति प्राप्त होती हैं जो आमतौर पर उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर होती हैं, जैसे- अत्यधिक बल का प्रयोग करना, तलाशी लेना एवं गिरफ्तारी करना आदि।
- इसके लिए वारंट या अदालती आदेश जैसी सामान्य नागरिक कानूनी प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है।
- उद्देश्य : इसका मुख्य उद्देश्य उग्रवाद से निपटने और अत्यधिक अशांति से प्रभावित क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैन्य शक्तियां प्रदान करना था।
- वर्तमान में लागू : AFSPA पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में लागू है, जिनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर एवं नागालैंड शामिल हैं।
- कुछ क्षेत्रों में निरस्त :
- 1 अप्रैल, 2018 को मेघालय से और वर्ष 2015 में त्रिपुरा से हटा लिया गया है।
AFSPA द्वारा प्रदत्त शक्तियां
- सभाओं पर रोक : सेना पांच या अधिक लोगों के समूह को एकत्र होने से रोक सकती है।
- बल प्रयोग : यदि किसी पर कानून के उल्लंघन का संदेह है तो सेना चेतावनी देने के बाद बल का प्रयोग कर सकती है और गोली भी चला सकती है।
- बिना वारंट के गिरफ्तारी : यदि सेना को किसी व्यक्ति पर गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का संदेह है, तो वे उसे बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।
- बिना वारंट के तलाशी : सेना मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना किसी भी परिसर में प्रवेश कर सकती है और तलाशी ले सकती है।
- आग्नेयास्त्रों पर प्रतिबंध : सेना अशांत क्षेत्र में लोगों के हथियार रखने पर पाबंदी लगा सकती है।
- गिरफ्तार व्यक्तियों को संभालना : हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों का विवरण देने वाली रिपोर्ट के साथ निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को सौंपा जा सकता है।
अशांत क्षेत्र से तात्पर्य
- अशांत क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसे AFSPA की धारा-3 के तहत अधिसूचना द्वारा घोषित किया जाता है। वस्तुतः विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के सदस्यों के बीच मतभेदों या विवादों के कारण कोई क्षेत्र अशांत हो सकता है।
- इसके अनुसार, यह कानून उन क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है जहाँ नागरिक शक्ति की सहायता में सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है।
- अशांत क्षेत्र की घोषणा : केंद्र सरकार या राज्य का राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासक पूरे राज्य या प्रदेश के कुछ हिस्से को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकता है।
- इसकी घोषणा करने के लिए आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना जारी करनी होती है।
- राज्य या केंद्र सरकार का नियंत्रण : अधिकांश मामलों में केंद्र सरकार निर्णय लेती है कि AFSPA कहां लागू होगा किंतु कुछ मामलों में स्थानीय सुरक्षा स्थितियों के आधार पर निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है।
AFSPA की पृष्ठभूमि
- सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम की उत्पत्ति ब्रिटिश काल के कानून से हुई है जिसे भारत छोड़ो आंदोलन को दबाने के लिए लाया गया था। वर्ष 1947 में इसे चार अध्यादेशों के रूप में पेश किया गया था, जिन्हें वर्ष 1948 में एक अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
- वर्तमान AFSPA वर्ष 1958 में सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) विधेयक संसद द्वारा पारित किया गया और 11 सितंबर, 1958 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया।
- यह अधिनियम पूर्वोत्तर भारत में बढ़ते उग्रवाद एवं हिंसा की प्रतिक्रिया में लाया गया था, जिनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं त्रिपुरा शामिल हैं।
- यह हिंसा प्राय: विभिन्न विद्रोही समूहों द्वारा स्वायत्तता या स्वतंत्रता की माँगों से संबंधित होती थी और उसे नियंत्रित करने के लिए स्थानीय राज्य अधिकारी संघर्ष कर रहे थे।
AFSPA संबंधी चिंताएं
- मानवाधिकार संबंधी मुद्दे : मानवाधिकार संगठनों का तर्क है कि AFSPA द्वारा सेना को बहुत अधिक शक्ति मिल जाती है और बल का अत्यधिक प्रयोग होता है।
- यह कार्यवाई प्राय: बिना किसी जवाबदेही के होती है।
- इरोम शर्मिला का विरोध : AFSPA के सबसे प्रमुख विरोधियों में से एक मणिपुर की इरोम शर्मिला थीं, जिन्होंने नवंबर 2000 में मालोम शहर में हुई एक घटना के बाद भूख हड़ताल की थी।
- शर्मिला का विरोध 16 सालों तक चला और वर्ष 2016 में समाप्त हुआ ।
- लोगों का संघर्ष : प्रभावित क्षेत्रों में कई लोगों का मानना है कि AFSPA के कारण मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जिसमें न्यायेतर हत्याएं, यातनाएं एवं गैरकानूनी हिरासत शामिल हैं।
- हालाँकि, अन्य लोगों का तर्क है कि यह कानून उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
AFSPA का प्रभाव
- कानून एवं व्यवस्था की बहाली : AFSPA सैन्य व अर्धसैनिक बलों को उग्रवाद या नागरिक अशांति से प्रभावित क्षेत्रों में निर्णायक कार्रवाई की अनुमति देता है और त्वरित सैन्य हस्तक्षेप को सक्षम करके यह हिंसक गतिविधियों पर अंकुश लगाने तथा उग्रवाद के प्रसार को रोकने में मदद करता है।
- नागरिकों के लिए सुरक्षा एवं संरक्षण में वृद्धि : सशस्त्र बलों को अभियान चलाने का अधिकार देकर AFSPA नागरिकों को विद्रोही हिंसा, जबरन वसूली एवं अन्य आपराधिक गतिविधियों से बचाने में मदद कर सकता है। यह विद्रोहियों के प्रभाव को सीमित करता है।
- उग्रवाद के खिलाफ़ निवारक : AFSPA के तहत प्रदान की गई शक्तियाँ, जैसे- बिना वारंट के गिरफ़्तारी, परिसर की तलाशी लेना और ज़रूरत पड़ने पर बल प्रयोग की क्षमता उग्रवादी समूहों के लिए एक मज़बूत निवारक के रूप में कार्य करती हैं।
- त्वरित सैन्य कार्रवाई को सक्षम बनाना : AFSPA नौकरशाही एवं कानूनी विलंब को दूर करता है जिससे सेना को संघर्षरत क्षेत्रों में तेजी से और निर्णायक रूप से कार्रवाई की अनुमति मिलती है। यह उन स्थितियों में महत्वपूर्ण है जहां खतरों को अप्रभावी करने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
- नागरिक अधिकारियों के लिए सहायता : जब सामान्य कानूनी प्रणाली अप्रभावी हो जाती है या विद्रोहियों द्वारा उस पर कब्ज़ा कर लिया जाता है, तब AFSPA सेना को नागरिक प्राधिकारियों (पुलिस एवं सरकार) की सहायता के लिए कानूनी मदद प्रदान करता है।