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आर्मीनिया-अज़रबैजान संघर्ष

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ ; मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 2 , विषय – द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, नागोर्नो-काराबाख़ (Nagorno-Karabakh) क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच पुनः एक हिंसक संघर्ष शुरू हो गया है।
  • ध्यातव्य है कि विगत चार दशकों से भी ज़्यादा समय से मध्य एशिया में आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच क्षेत्रीय विवाद और जातीय संघर्ष चल रहा है, जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास अत्यधिक प्रभावित हुआ है।
  • ईसाई बहुल आर्मीनिया और मुस्लिम बहुल अज़रबैजान ट्रांसकॉकेशिया या दक्षिण कॉकेशिया (जॉर्जिया और आर्मीनिया के पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया की सीमा पर दक्षिणी काकेशस पर्वत के आसपास के क्षेत्र में भौगोलिक क्षेत्र) का हिस्सा हैं।

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प्रमुख बिंदु:

विवाद के कारण:

  • नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र में लगभग 95% आर्मीनियाई आबादी है और यह क्षेत्र कमोबेश उनके द्वारा ही नियंत्रित किया जाता है लेकिन इसे अंतर्राष्ट्रीय रूप से अज़रबैजान के प्रशासनिक और आधिकारिक क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • दोनों राष्ट्रों के नेताओं ने अपने निहित राजनीतिक हितों के लिये बार-बार इस मुद्दे को हवा दी है।

विवाद का इतिहास:

  • वर्ष 1920: तत्कालीन सोवियत संघ द्वाराअज़रबैजान के भीतर आर्मीनियाई बहुल नागोर्नो-काराबाख़ स्वायत्त क्षेत्र की स्थापना की गई, लेकिन सोवियत शासन की वजह से उस समय संघर्ष की नौबत नहीं आई।
  • वर्ष 1988:सोवियत शासन के कमज़ोर होने के साथ ही नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र की विधायिका ने आर्मीनिया में शामिल होने का प्रस्ताव पारित किया।
  • वर्ष 1991 में जनमत संग्रह के माध्यम से नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र की विधायिका ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया।अज़रबैजान ने कभी भी इस फैसले को नहीं माना और तब से अनवरत दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई और समय के साथ बढ़ती गई।
  • वर्ष 1994 में रूस के द्वारा मध्यस्थता के बाद संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बावजूद संघर्ष रुका नहीं।
  • दोनों देशों के बीच वर्ष 2016 में हिंसक संघर्ष बहुत तेज़ हो गया था जिसे चार दिवसीय युद्ध (Four-Day War) के रूप में भी जाना जाता है।
  • अज़रबैजान और आर्मीनियाई सैनिकों के बीच रुक-रुक कर हुए संघर्ष विराम उल्लंघन की वजह से पिछले एक दशक में सैकड़ों मौतें हुई हैं।

प्रभाव:

  • अस्थिर क्षेत्र : क्षेत्र में उत्पन्न तनाव व दोनोंदेशों के बीच सैन्य संघर्ष, दक्षिण कॉकेशस क्षेत्र को पुनः अस्थिरकर सकता है तथा अस्थिरता और ज़्यादा हानिकारक हो सकती है,विशेषकर तब जन पहले से ही कोविड-19 महामारी का कहर क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • हताहत नागरिक: इस विवादित क्षेत्र में, सैकड़ों नागरिक बस्तियाँ हैं, जिनके निवासी सीधे प्रभावित होंगे और सम्भावित रूप से विस्थापित होंगे यदि दोनों देशों के बीच किसी भी प्रकार का युद्ध छिड़ता है।
  • आर्थिक प्रभाव: यह तनाव क्षेत्र से होने वाले तेल और गैस के निर्यात को भी बाधित कर सकता है, क्योंकि अज़रबैजान, यूरोप और मध्य एशिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण तेल और गैस निर्यातक देश है। इससे वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी: रूस के अर्मेनिया के साथ घनिष्ठ सम्बंध हैं, जबकि तुर्की और अमेरिका अज़रबैजान का समर्थन करते हैंऔर ईरान में भी एक बड़ी अज़ेरी अल्पसंख्यक आबादी रहती है, जो संकट को और बढ़ा व उलझा सकती है। किसी भी प्रकार की सैन्य चहलकदमी क्षेत्र में तुर्की व रूस जैसी क्षेत्रीय शक्तियों को संघर्ष में शामिल होने के लिये प्रेरित कर सकती है।
  • रूस, इज़राइल और कई अन्य देश संयुक्त राष्ट्र द्वारा क्षेत्र में हथियारों के व्यापार पर रोक लगाए जाने के बावजूद इन दोनों देशों को शस्त्रों की आपूर्ति लगातार करा रहे हैं।

भारत पर प्रभाव:

  • भारत- आर्मीनिया: हाल के वर्षों में, भारतीय-अर्मेनियाई द्विपक्षीय सहयोग में तेज़ी देखी गई है।
  • भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति ने 2017 में येरेवन (आर्मीनिया) का दौरा किया।
  • आर्मीनिया ने मार्च 2020 में भारत से SWATHI सैन्य रडार प्रणाली खरीदी थी।
  • कई भारतीय छात्र आर्मीनियाई चिकित्सा विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं और हाल के वर्षों में आर्मीनिया में भारतीय श्रम प्रवासियों का अधिक प्रवाह देखा गया है।
  • आर्मीनिया के लियेभारत के साथ घनिष्ठ सम्बंध इसलिये भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत अज़रबैजान, पाकिस्तान और तुर्की के रणनीतिक अक्षके खिलाफ आर्मीनिया को एक संतुलन प्रदान कराता है।
  • भारत-अज़रबैजान: भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिये जहाज़, रेल और सड़क मार्ग के एक बहुविध नेटवर्क इंटरनेशनल नॉर्थ- साउथ ट्रांसपोर्ट रिडोर (INSTC) का हिस्सा है।
  • अज़रबैजान,शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का एक संवाद भागीदार है, जिसका एक सदस्य भारत भी है।
  • वर्ष 2018 में, तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री ने बाकू (अज़रबैजान) का दौरा किया था, जो कि अज़रबैजान में किसी भारतीय विदेश मंत्री की पहली द्विपक्षीय यात्रा थी।
  • भारत का ONGC-Videsh. अज़ेरी-चिराग़-गुनाश्ली(Azeri-Chirag-Gunashli - ACG) तेल क्षेत्रों और बाकू-त्बिलिसी-सेहान (Baku-Tbilisi-Ceyhan) पाइपलाइन में एक निवेशक भी है।
  • यद्यपि अज़रबैजान कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की स्थिति का समर्थन काराता है।

क्षेत्र में पाकिस्तान की भूमिका:

  • भारत ने आर्मीनिया का समर्थन किया है, जबकि पाकिस्तान ने अज़रबैजान का समर्थन किया है। तुर्की के बाद अज़रबैजान की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाला पाकिस्तान दूसरा देश था। इसके अलावा, पाकिस्तान एकमात्र ऐसा देश है जो आर्मीनिया को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं देता है और अज़रबैजान की स्थिति का पूरा समर्थन करता है।

चीन की भूमिका:

  • विगत वर्षों में चीन कॉकेशियस क्षेत्र में तेज़ी से सक्रिय हुआ है एवं यहाँ कई कार्यक्रमों का संचालन करा रहा है और आर्मीनिया के साथ आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य समझौतों पर हस्ताक्षर कर रहा है। आर्मीनिया ने भी चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भाग लेने के लिये अपनी सहमती प्रदान की है।
  • हालाँकि, चीन आर्मीनिया के प्रतिद्वंदी अज़रबैजान का सहयोगी भी है और पाकिस्तान द्वारा अज़रबैजान के समर्थन किये जाने से भी आर्मीनिया अवगत है।

आगे की राह:

  • दोनों देशों के बीच संघर्ष खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों और आस पास के देशों को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिये और आगे के किसी गतिरोध को रोकने के लिये वार्ता के राह की बात करनी चाहिये।
  • दक्षिण कॉकेशस क्षेत्र में पाकिस्तान-चीन-तुर्की का बढ़ता प्रभाव भारत के लिये चिंता का विषय है। अतः यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत दोनों देशों के साथ अपने सम्बंधों को मज़बूत रखने के प्रयास जारी रखते हुए अपने गुटनिरपेक्ष रुख को जारी रखे और क्षेत्र में शांति का आह्वान करे।
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