New
IAS Foundation Course (Prelims + Mains): Delhi & Prayagraj | Call: 9555124124

अर्मेनियाई जनसंहार: ऐतिहासिक एवं वर्तमान परिदृश्य

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2: विश्व युद्ध, राष्ट्रीय सीमाओं का पुनः सीमांकन।)

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2020 अर्मेनियाई जनसंहार की 105वीं वर्षगाँठ है।

पृष्ठभूमि

'अर्मेनियाई जनसंहार' शब्द के प्रयोग को लेकर तुर्की ने कई बार विरोध किया है। इस घटना और शब्द का प्रयोग कई बार रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर भी किया गया है। पिछले वर्ष दिसम्बर में अमेरिकी सीनेट ने इस घटना को 'अर्मेनियाई जनसंहार' स्वीकारने के सम्बंध में प्रस्ताव पारित किया था। इससे पूर्व जर्मनी, फ्रांस व अन्य यूरोपीय देश भी इसे जनसंहार करार दे चुकें हैं। इसे जर्मनी द्वारा यहूदियों की हत्या के बाद विश्व का सबसे बड़ा जनसंहार माना जाता है। कुछ दावों के अनुसार,  इसमें लगभग 50 % अर्मेनियाई नागरिक  मारे गए थे। अर्मेनिया सितम्बर, 1991 में पूर्व सोवियत यूनियन से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।

अर्मेनियाई जनसंहार: एक नज़र में

  • अर्मेनियाई जनसंहार को 20 वीं सदी का पहला नरसंहार कहा जाता है। यह ऑटोमन साम्राज्य द्वारा एक ऑपरेशन के तहत योजनाबद्ध रूप से  वर्ष 1915 से 1917 के मध्य किया गया। इसमें बड़े पैमाने पर अर्मेनियाई लोगों के मौत का उल्लेख है।
  • इस जनसंहार के दौरान लगभग 1.5 मिलियन ईसाई अल्पसंख्यकों की मृत्यु हो गई थी। तुर्की लगातार इससे इंकार करता रहा है। अर्मेनियाई प्रवासी 24 अप्रैल को इस जनसंहार को स्मृति दिवस के रूप में याद करते हैं।

अर्मेनियाई जनसंहार का कारण

  • अर्मेनियाई जनसंहार  प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उत्पन्न हुई परिस्थितियों का प्रत्यक्ष परिणाम था। यद्यपि अर्मेनियाई लोगों को एशिया माइनर में हमेशा भेदभाव, उत्पीड़न और अत्याचार का सामना करना पड़ा है। इसमें वर्ष 1908 के आसपास और बढ़ोत्तरी हो गई। उनको अधिक कर देने के लिये मजबूर किया गया।
  • अर्मेनियाई एक शिक्षित और धनी समुदाय थे। ऑटोमन साम्राज्य में अर्मेनियाई ईसाई धर्म का पालन करते थे। धार्मिक सम्बद्धता के कारण ये रूस से समानता रखते थे। तुर्की के खलीफा को आशंका थी कि अर्मेनियाई ऑटोमन साम्राज्य की तुलना में रूस के प्रति अधिक निष्ठा रखते हैं।
  • वर्ष 1894 से 1896 के मध्य हमीदी नरसंहार (Hamidian massacres) को इससे सम्बंधित पहला राज्य समर्थित नरसंहार (State-sanctioned Pogrom) कहा जाता है। यह अर्मेनियाई लोगों के प्रति निरंतर शत्रुता का परिणाम था। 'पोग्रम' (Pogrom) एक विशेष जाति-समूह का संगठित नरसंहार कहलाता है। हमीदियन नरसंहार को अर्मेनियाई जनसंहार की एक प्रस्तावना माना जाता है। परंतु खलीफा अब्दुल हामिद-II को नरसंहार के लिये उत्तरदाई नहीं ठहराया गया था।

युवा तुर्क

  • तुर्की में वर्ष 1908 में एक राजनीतिक सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन में बुद्धिजीवी और क्रांतिकारी शामिल थे। ये स्वयं को युवा तुर्क कहते थे।
  • ये लोग संवैधानिक सरकार के पक्षधर थे। इसके लिये राजशाही को उखाड़ फेंकने के प्रयास में युवा तुर्कों ने अब्दुल हामिद II के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया। जब राजशाही को उखाड़ फेंका गया, तब अर्मेनियाई लोगों को यह मानना था कि उन्हें  राज्य में समानता का मौका मिल सकता है।
  • कुछ समय बाद युवा तुर्कों की राजनीतिक विचारधारा बदलते ही वे अर्मेनियाई लोगों के प्रति कम सहिष्णु हो गए। रूस-तुर्की युद्ध के अलावा बाल्कन और रूस में संघर्ष ने अर्मेनियाई लोगों के विरुद्ध असहिष्णुता व शत्रुता को और बढ़ा दिया।

प्रथम विश्वयुद्ध के समय की घटनाएँ

  • नवम्बर 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद ऑटोमन तुर्कों ने जर्मनी की ओर से युद्ध में भाग लिया। रूस की ओर से ऑटोमन तुर्कों के विरुद्ध लड़ने के लिये अर्मेनियाई लोगों ने स्वैच्छिक रूप से संगठित होकर बटालियन बनाई। इसके परिणाम स्वरूप ऑटोमन तुर्क पूर्वी मोर्चों के साथ लगी सीमा क्षेत्रों से अर्मेनियाई लोगों को बड़े पैमाने पर हटाने के अभियान में संलग्न हो गए।
  • 24 अप्रैल 1915 को ऑटोमन तुर्की सरकार ने आधिकारिक रूप से कई अर्मेनियाई बुद्धिजीवियों को मार दिया। यह अर्मेनियाई जनसंहार की एक प्रकार से शुरुआत थी।
  • इस कारण से अर्मेनियाई लोगों को सीरिया और अरब के रेगिस्तान में जाने के लिये मजबूर होना पड़ा। कई दिनों की यात्रा के कारण बहुत से अर्मेनियाई लोगों की मृत्यु  हो गई। इतिहास में इस घटना को 'डेथ मार्च' या मौत की यात्रा भी कहा जाता है।
  • इराक और सीरिया में उन्होंने क्रूरता का सामना किया। बहुत बड़ी संख्या में अर्मेनियाई गाँवों को जला दिया गया। इसके अलावा, कई लोगों को काला सागर में मरने के लिये मजबूर किया गया।
  • अर्मेनियाई जनसंहार से सम्बंधित कई दस्तावेज और सबूत युद्ध के अंत से कुछ वर्ष पूर्व और बाद में नष्ट कर दिये गए। इसके अलावा, कई अर्मेनियाई लोगों को विस्थापन का भी सामना करना पड़ा। बाद में ये शरणार्थियों के रूप में विश्व के विभिन्न देशों में जाने के लिये मजबूर हुए।
  • अर्मेनियाई जनसंहार के दौरान इस क्षेत्र में तैनात राजनयिकों ने व्यक्तिगत डायरी और आधिकारिक रिकॉर्ड में घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया था। विस्थापित अर्मेनियाई लोगों को उस सम्पत्ति को पुनः प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी गई।

अर्मेनियाई जनसंहार के सम्बंध में तुर्की का तर्क

  • तुर्की ने कई बार 'अर्मेनियाई जनसंहार' पद के प्रयोग को अस्वीकार किया है। वर्ष 2007 में तत्कालीन तुर्की के प्रधानमंत्री ने इस घटना और जनसंहार के लिये अन्य पदों, जैसे- 'इवेंट ऑफ 1915' या '1915 ओलायलर' (Olaylari- एक तुर्की शब्द, जिसका अर्थ होता है घटनाक्रम) के प्रयोग के लिये कहा।
  • तुर्की में कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा इसके बारे में खुलकर विचार व्यक्त किये गए, परंतु उन्हें या तो गिरफ्तार कर लिया गया या मार दिया गया या वे हिंसा के शिकार हो गए।
  • वर्ष 2020 तक 32 देशों और संसदों ने औपचारिक रूप से इसे अर्मेनियाई जनसंहार के रूप में स्वीकार कर लिया है। केवल तुर्की और अजरबैजान खुले तौर पर इस घटना से इंकार करते हैं।
  • इसके अलावा भारत सहित कई देशों ने आधिकारिक रूप से इस घटना को अर्मेनियाई जनसंहार के रूप में स्वीकार नहीं किया है।
  • तुर्की ने अमेरिका सहित अन्य देशों को इतिहास के राजनीतिकरण का आरोप  लगाते हुए इसे द्विपक्षीय सम्बंधों को प्रभावित करने वाला बताया है। यद्यपि तुर्की यह मानता है कि इस दौरान काफी संख्या में अर्मेनियाई मारे गए परंतु जनसंहार शब्द के  प्रयोग को अस्वीकार करता है। तुर्की के अनुसार, मारे गए लोगों की संख्या बताए गए लोगों से काफी कम थी। साथ ही युद्ध काल के दौरान दोनों पक्षों के लोग मारे गए थे।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR