चर्चा में क्यों
टोयोटा केंद्रीय अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला ने एक लागत प्रभावी, वृहद् एवं दक्ष कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण प्रणाली विकसित की है। यह सूर्य के प्रकाश, जल और कार्बन डाई ऑक्साइड की सहायता से महत्त्वपूर्ण कार्बन यौगिकों के निर्माण को आसान करती है। इस प्रणाली से कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण की प्रायोगिकता को बल मिलेगा और पर्यावरण संकट का समाधान हो सकेगा।
प्रमुख बिंदु
- सिद्धांत: यह नई प्रणाली कार्बन डाई ऑक्साइड को कार्बन यौगिकों में परिवर्तित करने के लिये जटिल धातु उत्प्रेरक का उपयोग कर रूपांतरण अभिक्रियाओं (Conversion Reaction) को संपन्न कराने पर आधारित है। इन अभिक्रियाओं को संपन्न कराने के लिये सैद्धांतिक न्यूनतम सीमा में विद्युत विभव का प्रयोग किया जाता है।
- शोधकर्ताओं ने फॉर्मेट का उत्पादन करने के लिये रेडॉक्स अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने हेतु इलेक्ट्रोड से जुड़े सौर सेल का प्रयोग किया है। अर्धचालक और आणविक उत्प्रेरक के साथ इलेक्ट्रोड का युग्मन न्यूनतम ऊर्जा और अपेक्षाकृत सस्ते घटकों का उपयोग करके CO₂ के अपचयन की अनुमति देता है।
- गौरतलब है कि प्रयोगशाला ने इससे पूर्व कृत्तिम पत्तियों (Leaves) का निर्माण किया था, जिसकी सौर ऊर्जा को रसायन ऊर्जा में बदलने की क्षमता 4.6% थी तथा इसका आकार 1 सेंटीमीटर से भी कम था।
- दक्षता: यह प्रणाली 10.5% की दक्षता (ηSTC) से सौर-से-रासायनिक रूपांतरण (Solar-to-Chemical Conversion) कर औद्योगिक फॉर्मेट (Industrial Formate) का उत्पादन करती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, एक वर्ग मीटर सेल के लिये पहली बार इस दक्षता स्तर को प्राप्त किया गया है। यह प्रणाली 1.2 मोल प्रति घंटे की दर से फॉर्मेट (Formate) का उत्पादन करती है।
तकनीकी की उपयोगिता
- ध्यातव्य है कि यह तकनीक औद्योगिक स्तर पर फॉर्मेट के उत्पादन का विकल्प प्रस्तुत करती है। एक अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 7 लाख टन फॉर्मेट का उपयोग परिरक्षक (Preservatives) के तौर पर मवेशियों के खाद्य परिरक्षण और चर्म प्रसंस्करण उद्योग में किया जाता है। इस प्रकार यह तकनीक फॉर्मेट के उत्पादन में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
- इसके उत्पाद (फॉर्मेट) का अन्य प्रयोग हाइड्रोजन के परिवहन में हो सकता है, अतः इसकी उपयोगिता भविष्य में हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के लिये भी है।
- यह तकनीक सांद्र CO₂ (औद्योगिक प्रति-उत्पाद) को सोखने में सक्षम है। अतः पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी यह तकनीक परिवर्तनकारी है। शोधकर्ताओं का दावा है कि यह कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण प्रणाली उस क्षेत्र विशेष के सेदार वनों से 100 गुना अधिक CO₂ का अवशोषण करती है।