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एशिया-प्रशांत क्षेत्र: प्लास्टिक प्रदूषण तथा सम्बंधित मुद्दे

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन सम्बंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा में क्यों?

एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण मानवीय गतिविधियों और संसाधनों की माँग में अस्थाई रूप से कमी के कारण समुद्री पर्यावरण मेंसुधार हुआ है।

पृष्ठभूमि

हालिया वर्षों में समुद्री प्रदूषण, अत्यधिक मत्स्यन तथा बढ़ते जलवायु परिवर्तन के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र के महासागरों में प्रदूषण का स्तर अत्यधिक बढ़ा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र रणनीतिक, आर्थिक व पर्यावरणीय समेत कई मामलों में अत्यधिक समृद्ध है। यह क्षेत्र भौगोलिक गतिविधियों के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। अनेक वर्षों से एशिया-प्रशांत क्षेत्र ने जलीय व समुद्री पारिस्थितिकी को समृद्ध बनाया है। यह क्षेत्र विशेष रूप से तटीय समुदायों के लिये भोजन, उनकी आजीविका और पहचान के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रहा है। मानवीय गतिविधियों के कारण समुद्री पर्यावरण पर बढ़ता दबाव प्रगति के साथ-साथ जीवन के लिये भी खतरनाक है।

चिंता का कारण

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में पिछली एक सदी से भी कम समय में, जलवायु परिवर्तन और गैर-धारणीय तरीकों से संसाधनों के प्रबंधन के कारण पारिस्थितिकी प्रणालियों को नुकसान पहुँचा है। इन कारणों से जैव विविधता को भी क्षति पहुँची है।
  • इस क्षेत्र में ओवरफिशिंग (अत्यधिक मात्रा में मछली पकड़ना) में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जिससे मछलियों के स्टॉक में कमी आने से खाद्य प्रणाली भी सुभेद्य अवस्था में पहुँच गई है।
  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र की नदियाँ समुद्र में अत्यधिक मात्रा में प्लास्टिक अपशिष्ट ले जाती हैं, जिससे समुद्र में प्रदूषण बढ़ता है। हालाँकि कोविड-19 महामारी के कारण काफी हद तक प्रदूषण कम हुआ है, परंतु यह एक अस्थाई समाधान है।
  • एशिया-प्रशांत देश दुनिया के शीर्ष प्लास्टिक प्रदूषकों में शामिल हैं। विश्वभर के महासागरों में छोड़े जाने वाले 95 % प्लास्टिक कचरे के लिये ज़िम्मेदार दस में से आठ नदियाँ एशिया में स्थित हैं।
  • अत: रिकवरी के प्रयासों को वास्तविक स्वरूप प्रदान किये जाने की आवश्यकता है और इन प्रयासों में सततता का समावेश किया जाना भी ज़रूरी है।

पर्याप्त आँकड़ों की अनुपलब्धता

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये आर्थिक और सामाजिक आयोग द्वारा ‘बदलती परिस्थितियाँ: एशिया और प्रशांत में सतत् महासागरों के लिये क्षेत्रीय प्रयासों में तेज़ी’ (Changing Sails: Accelerating Regional Actions for Sustainable Oceans in Asia and the Pacific) नामक थीम से जारी की गई रिपोर्ट, आँकड़ों की कमी के बारे में बताती है।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) संख्या 14, ‘जल के नीचे जीवन’ (Life Below Water) से सम्बंधित है। इस लक्ष्य में सतत् विकास के लिये महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग शामिल है। एस.डी.जी. लक्ष्य 14 के लिये निर्धारित दस लक्ष्यों में से केवल दो के लिये ही आँकड़ें उपलब्ध हैं। साथ ही, आँकड़ों में बहुत असमानता भी है।
  • आँकड़ा संकलन की कार्यविधियों तथा राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणालियों में कई सीमाओं व बाधाओं के कारण देशों के मध्य सूचना व जानकारी का अंतराल असमान स्तर पर बना हुआ हैं।
  • महासागरों की विशालता और इसकी चुनौतियाँ यह दर्शाते हैं कि व्यापक और सहयोगी समाधान की आवश्यकता है। सीमापार महासागरीय प्रबंधन और महासागर से सम्बंधित डाटा को आपस में लिंक करना (जोड़ना) इस क्षेत्र में देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग के लिये आवश्यक है।
  • मज़बूत राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणालियों के माध्यम से महासागर के आँकड़ों का उपयोग करना देशों के लिये काफी लाभदायक है। यह विभिन्न देशों को महासागरों की प्रवृतियों की निगरानी करने, विभिन्न स्थितियों में समय पर प्रतिक्रियाएँ देने और अस्पष्टता को कम करने के लिये एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगा।
  • महासागरीय लेखा साझेदारी (OAP) के माध्यम से एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये आर्थिक एवं सामाजिक आयोग महासागरीय डाटा के सामंजस्य और नियमित बातचीत के लिये एक आधार प्रदान करने हेतु देशों के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।

एशिया और प्रशांत के लिये आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP)

ई.एस.सी.ए.पी. संयुक्त राष्ट्र का क्षेत्रीय केंद्र है। इसका उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समावेशी और सतत् विकास प्राप्त करने के लिये देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। सतत् विकास के लिये ‘2030 एजेंडा’ का कार्यान्वयन तथा एस.डी.जी. लक्ष्यों को प्राप्त करना इसकी प्राथमिकताओं में से एक है। यह 53 सदस्य राज्यों और 9 सहयोगी सदस्यों के साथ सबसे बड़ा क्षेत्रीय अंतर-सरकारी मंच है। भारत वर्ष 1947 से ई.एस.सी.ए.पी. का सदस्य है।

प्लास्टिक व अन्य प्रदूषण का स्तर

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक प्लास्टिक की लगभग आधी मात्रा का उत्पादन तथा लगभग 38 % प्लास्टिक की खपत (Consume) करता है।
  • प्लास्टिक का उत्पादन समुद्र को दोहरी क्षति पहुँचाते हैं; एक तरफ़ तो प्लास्टिक का उत्पादन कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करता है, जो महासागरों द्वारा अवशोषित किया जाता है। दूसरी ओर, प्लास्टिक उत्पाद महासागरों में प्रदूषण के रूप में प्रवेश करते हैं।
  • मनुष्यों द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग 30% महासागरों द्वारा अवशोषित किया जाता है। साथ ही, औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से समुद्र के अम्लीकरण में लगभग 26% की वृद्धि देखी गई है। इस सदी के अंत तक अम्लीकरण में 100 से 150 % वृद्धि की सम्भावना है, जिसका समुद्री जीवन पर गम्भीर परिणाम होगा।
  • समुद्री प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुँच रहा है। समुद्री प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा भूमि-आधारित स्रोतों से आता है। समुद्र के प्रत्येक वर्ग किलोमीटर में प्लास्टिक कचरे के औसतन 13,000 टुकड़े पाए जाते हैं।
  • इस चुनौती से निपटने के लिये प्रभावी राष्ट्रीय नीतियों व उत्पादन चक्रों पर पुनर्विचार किये जाने की ज़रूरत है।

अत्यधिक मत्स्ययन का प्रभाव

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े मछली उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसका कारण अत्यधिक दोहन है।
  • असतत् स्तर पर मछलियों के स्टॉक का प्रतिशत वर्ष 1974 में 10% था जो वर्ष 2015 में लगभग तीन गुना अर्थात् 33% हो गया है।
  • इस समस्या से निपटने के लिये मछली के स्टॉक का पूरा डाटा बनाना, मछली पकड़ने की अवैध गतिविधि को रोकना और समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण करना प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिये।
  • समुद्री सम्पर्क (Maritime Connectivity) का अभाव
  • समुद्री सम्पर्क में अंतराल को कम करना क्षेत्रीय परिवहन सम्पर्क सहयोग प्रयासों के केंद्र बिंदु में होना चाहिये।
  • ग्रीन शिपिंग की ओर मार्ग प्रशस्त करने के लिये शिपिंग समुदाय के साथ काम करना चाहिये। इसके लिये सतत् शिपिंग नीतियों को लागू करना आवश्यक है।

प्रमुख तथ्य

  • लगभग 40% महासागरीय क्षेत्र प्रदूषण, अत्यधिक मत्स्ययन, तटीय आवासों की क्षति और अन्य मानवीय गतिविधियों से अत्यधिक प्रभावित हैं।
  • 3 अरब (3 बिलियन) से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिये समुद्री और तटीय जैव विविधता पर निर्भर हैं।
  • समुद्री, तटीय संसाधनों व उत्पादों का बाजार मूल्य अनुमानत: 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है, जो कि वैश्विक जी.डी.पी. का लगभग 5% है।

आगे की राह

वास्तविक परिणाम प्राप्त करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और मानकों का प्रयोग राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के मानकों को लागू करने के लिये ई.एस.सी.ए.पी. सदस्य देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। महासागरों का तापमान, धारायें तथा लवणता वैश्विक प्रणालियों को चलाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, जो पृथ्वी को जीवों के रहने योग्य बनाते हैं। इस महत्त्वपूर्ण संसाधन का प्रबंधन मानवता के लिये आवश्यक है। इसके लिये विश्व को हरित नौ-परिवहन, न्यून कार्बन उत्सर्जन, नियंत्रित मत्स्यन और जलीय कृषि जैसी सतत् प्रणालियों को अपनाना होगा। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के माध्यम से संरक्षण और समुद्र आधारित संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ाने से महासागरों में प्रदूषण के स्तर कम किया जा सकता है।

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