(प्रारम्भिक परीक्षा : पर्यावरण पारिस्थितिकी, राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 : विषय - आपदा और आपदा प्रबंधन, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
- हाल ही में,असम के तिनसुकिया ज़िले के बागजान के एक कुँए में एक दरार से गैस रिसाव की घटना सामने आई।
- बागजान कुआँ,तिनसुकिया जिले में एक गैस-उत्पादक कुआँ है, और डिब्रू-साइखोवा नेशनल पार्क से 900 मीटर की दूरी पर स्थित है।
- यह कुआँ वर्ष 2006 से ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) द्वारा शोधित किया जा रहा। विदित है कि प्राकृतिक गैस प्रोपेन, मीथेन, प्रोपलीन और अन्य गैसों का मिश्रण है।
प्रमुख बिंदु :
- गैस रिसाव:
- बागजान में गैस कुँए में रख-रखाव का कार्य चल रहा था, जिसके लिये इसे अस्थाई रूप से बंद कर दिया गया था। ब्लोआउट प्रीवेंटर (BOP), जो दरारों से होने वाले रिसाव को रोकता है,को भी हटा दिया गया था।
- हालांकि, रखरखाव के दौरान गैस कुँए से बाहर निकलने लगी थी। विस्फोट के पीछे का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है।
- सम्भावित कारण :
- यह रिसाव लापरवाही, खराब बनावट, खराब रखरखाव या रख रखाव के उपकरणों के पुराने होने आदि के कारण हो सकता है।
- कभी-कभी,कुँए में दबाव-संतुलन में गड़बड़ी की वजह से अचानक झटका भी लग सकता है, जिसकी वजह से हो सकता है रिसाव हुआ हो।
- उठाए गए कदम :
- अधिकारियों ने ब्लोआउट या दरार को नियंत्रित करने के लियेकुँए के पास डंगोरी नदी पर पाइपलाइनों के माध्यम से एक अस्थायी जलाशय बनाया है। क्योंकि ऐसे रिसाव को नियंत्रित करने के लिये, भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है ताकि गैस में आग न लगे।
- दरारों से हो रहे ऐसे रिसाव का नियंत्रण दो कारकों पर निर्भर करता है: जलाशय का आकार और जिसदबाव पर गैस बह रही है। इनदोनों कारकों को ध्यान में रखकर रिसाव रोकने के लियेजलाशय की उपयोगिता पर कार्य किया जा रहा है।
- चुनौतियाँ: बागजान में गैस रिसाव अभी भी नियंत्रण में नहीं आयाहै और यहाँ लगातार रिसाव हो रहा है।
- सीमित स्थान होने की वजह से और खुले स्थान की अनुपलब्धता की वजह से कार्यबल को बी.ओ.पी. के प्लेसमेंट में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
- बी.ओ.पी. प्लेसमेंट जोखिम का काम है क्योंकि बागजान गैस काकुँआ है और ऐसे कुओं में किसी भी समय आग पकड़ने का डर रहता है।
प्रभाव:
- 5 किमी के दायरे में गैस हवा के साथ रिस रही है साथ ही कंडेंसेट (गैस के संघनित अवशेष) भी बांस, चाय बागानों, केले के पेड़ तथा सुपारी आदी के पेड़ों पर गिर रहे हैं।
- यद्यपि यह कुआँ पार्क के ईको सेंसिटिव (पारिस्थितिकीय रूप से सम्वेदनशील क्षेत्र) ज़ोन के बाहर है फिर भी ऐसी खबरें आ रहीं हैं कि कंडेनसेट डिब्रू-साइखोवा नेशनल पार्क और मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड में भी गिर रहा है।
- गैस रिसाव से गंगाडॉल्फिन और कई प्रकार की मछलियों की मौत भी हुई है। पक्षियों की संख्या में भी कमी आई है क्योंकि वे उड़ गए हैं।
- प्रभाव का आकलन:ओ.आई.एल. नेपर्यावरण की सुरक्षा के लिये औरस्थलीय व जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर रिसाव के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का आकलन करने के लिये हेतु राष्ट्रीय प्रत्यायन शिक्षण और प्रशिक्षण बोर्ड (National Accreditation Board for Education and Training - NABET) की सहायता ले रहा है।
- NABET भारतीय गुणवत्ता परिषद् (Quality Council of India) का एक घटक बोर्ड है।
- यह शैक्षिक संगठनों, व्यावसायिक प्रशिक्षण संगठनों और कौशल प्रमाणन निकायों को मान्यता प्रदान करता है।
डिब्रू-साइखोवा नेशनल पार्क (Dibru-Saikhowa National Park) :
- डिब्रू-साइखोवाअसम में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान होने के साथ ही एक बायोस्फीयर रिज़र्व भीहै।
- यह दुनिया के 19 जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक है।
- डिब्रू-साइखोवा के वन प्रकार में अर्ध-सदाबहार वन, पर्णपाती वन, चित्तीदार और दलदली वन और आर्द्र सदाबहार वनों के समूह शामिल हैं।
- यह उत्तर-पूर्वी भारत का सबसे बड़ा दलदली जंगल (swamp forest) है।
- यह बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा अधिसूचित एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (Important Bird Area-IBA) है। यह दुर्लभ सफेद पंखों वाली वुड डक्स (white-winged wood ducks) के साथ-साथ जंगली घोड़ों (feral horses) के लियेभी बहुत प्रसिद्ध है।
मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड (Maguri-Motapung Wetland):
- मगुरी मोटापुंग बील, डिब्रू-साइकोवा नेशनल पार्क से 10 किमी और डिब्रू-साइखोवा बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।
- इस वेटलैंड का नाम "मगुर" से बना है जो कैटफ़िश ('क्लैरियस बैट्रैचस या मांगुर मछली) के लिये स्थानीय शब्दहै।
- यह भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा अधिसूचित एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र है।
(स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस)