संदर्भ
‘ट्रैफिक’ और ‘डब्ल्यू.एफ.एफ.-इंडिया’ ने उल्लू की प्रजातियों के लिये आम खतरों को उजागर करने और पक्षियों की सुरक्षा के लिये आईडी कार्ड लॉन्च किये हैं।
अस्तित्व का संकट
- उल्लू सबसे रहस्यमयी जंगली जीवों में से एक है। रात्रि के समय सक्रिय रहने वाले यह पक्षी प्रायः भारत में विभिन्न अंधविश्वासों और उनसे जुड़ी वर्जनाओं के कारण अवैध वन्यजीव व्यापार का शिकार हुए हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र में विशाल भूमिका के बावजूद इस लुप्तप्राय पक्षी का बड़ी संख्या में उपयोग स्थानीय रहस्यवादी चिकित्सकों द्वारा प्रचलित कई अनुष्ठानों में बलिदान व अन्य कारणों से होता है।
- रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 2019 के बाद से पूरे भारत में उल्लुओं के अवैध शिकार और तस्करी से संबंधित ज़ब्ती की कम से कम 20 घटनाएँ सामने आई हैं।
टैगिंग
- आम खतरों को उजागर करने और उल्लुओं की प्रभावी पहचान के लिये ट्रैफिक और डब्ल्यू.एफ.एफ.-इंडिया ने इस पहचान उपकरण (Identification Tool) को लॉन्च किया है।
- यह आईडी कार्ड कानून प्रवर्तन अधिकारियों को अवैध व्यापार में प्रयुक्त 16 उल्लू प्रजातियों की सही पहचान करने में सक्षम बनाता है। आईडी कार्ड पूरे भारत में अंग्रेजी और हिंदी में वन्यजीव कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निःशुल्क वितरित किये जाएँगे।
- आईडी कार्ड एक डाउनलोड करने योग्य पुस्तिका के रूप में होता है, जिसमें उल्लू के चित्र, प्रत्येक प्रजाति की प्रमुख विशेषताएँ, आकार की तुलना होती है।
- आईडी उपकरण प्रजातियों की क़ानूनी स्थिति, आवास और वितरण से संबंधित आवश्यक जानकारी प्रदान करता है।
- यह प्रजातियों के स्तर पर उल्लुओं की पहचान करने और आम खतरों को उजागर करने के लिये मूल्यवान सुझाव भी प्रदान करते हैं।
- विदित है कि प्रमुख वन्यजीव प्रजातियों को टैग करने का उद्देश्य इन्हें पुनर्प्राप्त करने की रणनीति तैयार करना, उन्हें एक सुरक्षित आवास प्रदान करना तथा अवैध शिकार और अवैध व्यापार के खतरों से बचाना होता है।
‘ट्रैफिक’ की स्थापना वर्ष 1976 में ‘डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ.’ और ‘आई.यू.सी.एन.’ (IUCN) द्वारा वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क के रूप में की गई थी, ताकि वन्यजीव व्यापार पर निर्णय लेने की सूचना देने के लिये डाटा संग्रह, विश्लेषण और सिफारिशों का प्रावधान किया जा सके।
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टैगिंग में शामिल उल्लू की प्रजातियाँ
- एशियाई बार्ड उल्लू, बार्न उल्लू, ब्राउन फिश उल्लू, ब्राउन हॉक उल्लू, ब्राउन वुड-उल्लू, कॉलर उल्लू, कॉलर स्कॉप्स-उल्लू, डस्की ईगल उल्लू, ईस्टर्न ग्रास-उल्लू, जंगल उल्लू, मोटल वुड-उल्लू, ओरिएंटल स्कॉप्स-उल्लू, रॉक ईगल-उल्लू, स्पॉट-बेलिड ईगल-उल्लू, स्पॉटेड उल्लू और टैनी फिश-उल्लू।
संरक्षण हेतु विधिक प्रावधान
- भारत में उल्लुओं की लगभग 36 प्रजातियाँ हैं, जो सभी ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972’ के तहत संरक्षित हैं।
- ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972’ के प्रावधानों के अनुसार, उल्लू का शिकार, व्यापार या उपयोग करने का कोई अन्य रूप एक दंडनीय अपराध है।
- भारत में पाई जाने वाली सभी उल्लू प्रजातियों को वन्य जीवों और वनस्पतियों की ‘लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ (CITES) के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जो उनके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है।
उल्लुओं के संरक्षण का महत्त्व
- उल्लू कृंतकों की आबादी पर नियंत्रण रखकर कृषि उत्पादकता में वृद्धि करते हैं।
- ये हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं।
- इनके संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली तथा जैव विविधता को समर्थित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
जब तक उल्लुओं की तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक इनकी आबादी खतरे में रहेगी। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये उल्लू और अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये पर्याप्त संरक्षण और सुरक्षा के प्रयास अति महत्त्वपूर्ण हैं।