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जमानत (Bail)

भारत में जमानत के प्रकार

  • नियमित जमानत (Regular Bail):
    • पहले से ही गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में मौजूद व्यक्ति को दी जाने वाली जमानत।
  • अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail):
    • गैर-जमानती अपराध में गिरफ्तारी की आशंका होने पर, पहले से एहतियात के रूप में दी जाने वाली जमानत।
  • अंतरिम जमानत (Interim Bail):
    • नियमित या अग्रिम जमानत पर सुनवाई से पहले अस्थायी रूप से दी जाने वाली जमानत।
  • डिफ़ॉल्ट जमानत (Default Bail):
    • जब पुलिस निर्धारित अवधि के भीतर आरोप-पत्र दायर करने में विफल रहती है, तो व्यक्ति को दोषसिद्धि के अभाव में जमानत पर रिहा किया जाता है।

भारत में जमानत के लिए कानूनी प्रावधान:

  • सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
    • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करना, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
  • जमानत से संबंधित कानूनी प्रावधान:
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 479 में जमानत योग्य अपराधों में जमानत देने से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
    • यदि किसी आरोपी ने जांच या सुनवाई के दौरान अधिकतम कारावास की आधी अवधि हिरासत में बिता ली है, तो उसे न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा किया जाएगा।
    • पहली बार अपराध करने वाले आरोपी ने निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि की एक-तिहाई अवधि हिरासत में बिता ली हो, तो उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है।
    • POCSO एक्ट, 2012 और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 जैसे विशेष कानूनों में भी जमानत देने से संबंधित प्रावधान किए गए हैं।
  • जमानत से संबंधित प्रमुख उपाय:
  • प्ली बार्गेनिंग (Plea Bargaining):
    • अभियोजन शुरू होने से पहले, अभियोजन पक्ष और प्रतिवादी के बीच समझौते का प्रावधान।
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 290 में इसे समयबद्ध किया गया है, और आरोप तय होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर आवेदन किया जा सकता है।
    • यह केवल सात वर्ष तक के कारावास वाले अपराधों पर लागू होता है, लेकिन महिलाओं, बच्चों के खिलाफ अपराधों और सामाजिक-आर्थिक अपराधों पर लागू नहीं होता।
  • ई-प्रिज़न सॉफ्टवेयर:
    • यह राज्य की न्यायिक और प्रशासनिक प्राधिकरणों को कैदियों से संबंधित डेटा को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने में मदद करता है।
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