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धन शोधन मामले में जमानत और ट्विन टेस्ट

संदर्भ 

  • धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री को ट्रायल कोर्ट द्वारा हाल ही में जमानत दिए जाने के एक दिन बाद ही, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी।
  • गौरतलब है कि, प्रवर्तन निदेशालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को इस आधार पर चुनौती दिया था कि, ट्रायल कोर्ट ने PMLA के तहत जमानत देने के लिए आवश्यक ‘ट्विन टेस्ट’ (दोहरे परीक्षण) का पालन नहीं किया है।

PMLA के बारे में 

  • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) भारत सरकार द्वारा धन शोधन से निपटने के लिए बनाए गए कानूनी ढांचे का मूल है।
    • इस कानून के तहत अधिसूचित नियम 1 जुलाई, 2005 से लागू हुए।
  • PMLA के प्रावधानों को लागू करने के लिए वित्तीय आसूचना इकाई - भारत (FIU-IND) और प्रवर्तन निदेशालय को अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं के तहत अनन्य और समवर्ती शक्तियां प्रदान की गई हैं।
  • उद्देश्य:
    • धन शोधन को रोकना और नियंत्रित करना
    • आपराधिक तरीकों से प्राप्त धन द्वारा बनाई गई संपत्ति को जब्त करना और अधिग्रहण करना
    • इसके अलावा, भारत में धन शोधन से जुड़े किसी अन्य मुद्दे से निपटने के लिए।

PMLA की धारा 45 और ट्विन टेस्ट के बारे में 

  • PMLA की धारा 45 : यह धारा जमानत से संबंधित है और इसके अनुसार, कोई भी अदालत PMLA कानून के तहत अपराधों के लिए जमानत नहीं दे सकती है। 
    • हालांकि, इसमें कुछ अपवादों का भी उल्लेख किया गया है, जिसके अंतर्गत जमानत दिया जा सकता है। वस्तुतः PMLA के तहत जमानत नियम नहीं बल्कि अपवाद है।
  • जमानत की शर्त : PMLA की धारा 45 के अनुसार, किसी भी आरोपी व्यक्ति को तब तक जमानत नहीं दी जाएगी, जब तक;
    • सभी जमानत आवेदनों में सरकारी अभियोजक को सुनने और जमानत का विरोध करने का अवसर दिया गया है, और 
    • जब आवेदन का विरोध किया जाता है, तो अदालत को यह विश्वास होना चाहिए कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आरोपी अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर बाहर रहने के दौरान उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
  • यह प्रावधान सभी जमानत आवेदनों में सरकारी अभियोजक को सुनना अनिवार्य बनाता है, और जब अभियोजक जमानत का विरोध करता है, तो अदालत को ट्विन टेस्ट लागू करना आवश्यक होता है।
  • ट्विन टेस्ट : धारा 45 में जमानत के लिए निर्धारित दो शर्तों के बारे में बताया गया है;
    • पहला; अभियुक्त को अदालत में यह साबित करना होगा कि वह प्रथम दृष्टया अपराध के लिए निर्दोष है। 
    • दूसरा; न्यायाधीश को यह विश्वास दिलाना होगा कि, वह जमानत पर रहते हुए कोई अपराध नहीं करेगा।
  • गौरतलब है कि, सबूत का भार पूरी तरह से जेल में बंद आरोपियों पर है, जो अक्सर राज्य की ताकत से लड़ने में अक्षम हो जाते हैं।
  • ये दोनों शर्तें किसी आरोपी के लिए PMLA के तहत जमानत पाना लगभग असंभव बना देती हैं।

समरूप प्रावधान वाले अन्य कानून

गंभीर अपराधों से निपटने वाले कई अन्य कानूनों में भी इसी तरह के प्रावधान हैं – जैसे, 

  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 36AC, 
  • स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 37, तथा 
  • गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम, 1967 की धारा 43D(5)।
  • इसके अलावा, UAPA के अध्याय IV (आतंकवादी गतिविधियों के लिए सजा) और VI (आतंकवादी संगठन) के तहत दंडनीय अपराध का आरोपी कोई भी व्यक्ति जमानत पर या अपने स्वयं के बांड पर रिहा नहीं किया जाएगा। 

ट्विन टेस्ट को कानूनी चुनौतियाँ

  • निकेश ताराचंद शाह बनाम भारत संघ : वर्ष 2017 सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में दो जजों की बेंच ने ट्विन टेस्ट के आधार पर जमानत के प्रावधान को इस आधार पर असंवैधानिक करार दिया क्योंकि जमानत की शर्तें उचित वर्गीकरण के परीक्षण में विफल रहीं।
    • गौरतलब है कि, उचित वर्गीकरण समानता के अधिकार की एक विशेषता है, जो एक मौलिक अधिकार है।
  • वित्त अधिनियम, 2018 द्वारा ट्विन टेस्ट की वापसी : निकेश ताराचंद शाह बनाम भारत संघ के फैसले के बावजूद, संसद ने वित्त अधिनियम, 2018 के माध्यम से ट्विन टेस्ट प्रावधानों को फिर से पेश किया।
    • सरकार के इस प्रयास को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिस पर वर्ष 2022 में विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ के रूप में सुनवाई हुई।
    • तीन न्यायाधीशों की पीठ ने निकेश ताराचंद शाह बनाम भारत संघ के फैसले को मानने से इनकार कर दिया।

विशेषज्ञों द्वारा आलोचना

  • कानूनी विशेषज्ञों ने मनी लॉन्ड्रिंग को कड़े आतंकवाद विरोधी और नशीले पदार्थों के कानूनों के समान मानने के तर्क की आलोचना की है।
  • मनी लॉन्ड्रिंग के लिए अधिकतम सजा केवल सात साल है, या अगर इसमें नशीले पदार्थ शामिल हैं तो दस साल की सजा है।
  • जबकि, आतंकवाद विरोधी कानूनों में आजीवन कारावास और यहाँ तक कि, मृत्युदंड तक के प्रावधान हैं। 

सरकार का पक्ष

  • सरकार का तर्क है कि मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल लोग प्रभावशाली, बुद्धिमान और साधन संपन्न हैं।
  • इनके द्वारा अपराध पूर्व नियोजित किया जाता है, जिससे जांच एजेंसियों के लिए सबूतों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • सरकार ने इस आधार पर कठिन जमानत शर्तों का बचाव किया है कि अपराध "उन्नत तकनीक की मदद से किया गया था ताकि लेनदेन को छुपाया जा सके"।

कानून की वर्तमान स्थिति

  • जमानत शर्तों के संशोधन को चुनौती : विजय मदनलाल चौधरी फैसले में जमानत पर संशोधन के लिए एक बड़ी चुनौती यह है कि क्या इन संशोधनों को धन विधेयक मार्ग से पारित किया जा सकता है।
    • सुप्रीम कोर्ट की एक उच्च पीठ द्वारा यह समीक्षा की जानी है कि, क्या कुछ कानून, जैसे आधार अधिनियम, ट्रिब्यूनल सदस्यों की सेवा शर्तें आदि को धन विधेयक के रूप में पारित किया जा सकता है।
    • हालांकि, उस मुद्दे पर अभी तक बेंच का गठन नहीं हुआ है। 
  • फैसले की वर्तमान वैधता और अनुप्रयोग : सुप्रीम कोर्ट अपने विजय मदनलाल चौधरी फैसले की समीक्षा करने के लिए सहमत हो गया है, लेकिन ट्विन टेस्ट अभी भी वैध कानून है क्योंकि फैसले पर कोई रोक नहीं है।
    • फैसले के अनुसार, ट्विन टेस्ट को मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों की सुनवाई करने वाली सभी विशेष अदालतों और साथ ही संवैधानिक अदालतों द्वारा सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
    • यह नियमित जमानत और अग्रिम जमानत दोनों के लिए समान रूप से लागू होगा।

वैकल्पिक जमानत राहत 

  • अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 436A के तहत लाभ मिल सकता है। 
  • इसके तहत वह विचाराधीन कैदी के रूप में अधिकतम सजा की आधी अवधि पूरी करने के बाद जमानत का हकदार होता है।
  • इसका मतलब यह है कि अधिकांश मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में, यदि प्रवर्तन निदेशालय साढ़े तीन साल के भीतर सुनवाई पूरी नहीं कर पाता है, तो आरोपी ट्विन टेस्ट के बावजूद जमानत का हकदार है।
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