चर्चा में क्यों
हाल ही में, अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने मेस अयनाक में स्थित प्राचीन बामियान बुद्ध की मूर्तियों की सुरक्षा करने की बात कही है।
प्रमुख बिंदु
- तालिबान सरकार का यह निर्णय मेस अयनाक में स्थित तांबे की खदानों में चीन के निवेश को आकर्षित करने से प्रेरित है।
- तालिबान सरकार का यह निर्णय पूर्ववर्ती शासन की उस धारणा के विपरीत है जब तालिबानियों ने बामियान बुद्ध सहित कई बुद्ध मूर्तियों को नष्ट कर दिया था।
बामियान बुद्ध
- बलुआ पत्थर की चट्टानों से उकेरी गई बामियान बुद्ध की मूर्तियाँ 5 वीं शताब्दी की हैं। यहाँ कभी विश्व की सबसे ऊँची बुद्ध की खड़ी मुद्रा में प्रतिमाएँ थीं। इन मूर्तियों में गुप्त, ससैनियन और हेलेनिस्टिक कलात्मक शैलियों का संगम देखा जा सकता है।
- इनमें प्रतिमाओं में से दो महत्त्वपूर्ण प्रतिमाएँ थीं- ‘साल्सल’ (ऊँचाई- 55 मीटर) और ‘शमामा’ (ऊँचाई- 38 मीटर) । ये दोनों स्थानीय भाषा के शब्द हैं, जिसमें क्रमशः साल्सल से आशय है ‘प्रकाश ब्रह्माण्ड के माध्यम से चमकता है’ और शमामा से आशय है ‘रानी माँ’।
- बामियान घाटी, हिंदू कुश पहाड़ों में और बामियान नदी के किनारे स्थित है। यह प्रारंभिक रेशम मार्गों का एक प्रमुख स्थान था, जो वाणिज्यिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के केंद्र के रूप में उभरा।
- यूनेस्को के अनुसार, बामियान का उदय मध्य एशिया में बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ निकटता से जुड़ा था। पहली शताब्दी ईस्वी की शुरुआत में कुषाण नामक एक अर्ध-खानाबदोश जनजाति बैक्ट्रिया से बाहर निकली, जिन्होंने चीन, भारत और रोम के बीच मध्यस्थ की भूमिका को निभाया। ऐसा करने में उन्होंने एक समन्वित संस्कृति को बढ़ावा दिया, जो बामियान में पाई जाने वाली उल्लेखनीय सांस्कृतिक विरासत में परिलक्षित होता है।
- विदित है कि तालिबान ने इन मूर्तियों को अपनी संस्कृति के विरुद्ध मानते हुए बड़े स्तर पर नष्ट कर दिया था।
विश्व धरोहर में शामिल
वर्ष 2003 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थलों की सूची में बामियान बुद्धों के अवशेषों को शामिल किया। यह प्रस्तावित किया गया कि मूर्तियों को उन टुकड़ों के साथ फिर से बनाया जाना चाहिये, जो अभी भी उपलब्ध हैं।