New
IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

बिहार के 65% आरक्षण पर रोक

संदर्भ

हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण सीमा को 50% से बढ़ाकर 65% करने की अधिसूचना को रद्द कर दिया है।

क्या है आरक्षण की 50% की सीमा 

इंद्रा साहनी वाद (1992)

  • प्रशासन में ‘दक्षता’ सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले के ऐतिहासिक फैसले में 50% की सीमा लागू की थी।
  • इस फैसले में न्यायालय ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के लिए 27% आरक्षण को बरकरार रखा और दो प्रमुख मान्यताएं स्थापित की -
    • आरक्षण के लिए अर्हता प्राप्त करने का मानदंड “सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन” होना चाहिए है;
    • इसने ऊर्ध्वाधर आरक्षण के लिए 50% की सीमा 
  • “असाधारण परिस्थितियों” में ही इस 50% की सीमा का उल्लंघन किया जा सकता है। न्यायालय ने एम.आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य, 1963, और देवदासन बनाम भारत संघ, 1964 के मामले में आरक्षण की इस सीमा का निर्धारण किया था।

अपवाद: 

  • EWS आरक्षण (2019) : केंद्रीय स्तर पर यह एकमात्र अपवाद है जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
    • नवंबर 2022 में, सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 3-2 के फैसले में EWS आरक्षण को बरकरार रखा। 
    • जिसमें कहा गया कि 50% की सीमा केवल SC/ ST और OBC आरक्षण पर लागू होती है, न कि एक अलग आरक्षण पर; जो ‘पिछड़ेपन’ के ढांचे के बाहर संचालित होता है। 
  • EWS आरक्षण की आलोचन : इसके माध्यम से 50% नियम के उल्लंघन की अनुमति देना भविष्य में अन्य उल्लंघनों का प्रवेश द्वार बन सकता है, जिसके परिणामस्वरूप विभाजन हो सकता है।
  • संविधान सभा में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के भाषण को अक्सर चेतावनी के रूप में उद्धृत किया जाता है कि “बिना किसी शर्त के आरक्षण समानता के नियम को खत्म कर सकता है”। 
  • हालांकि, एक विचार यह भी है कि आरक्षण समानता के मौलिक अधिकार की एक विशेषता है और संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। 
  • शीर्ष न्यायालय ने वर्ष 2022 के अपने फैसले में NEET में 27% OBC आरक्षण को बरकरार रखते हुए, कहा था कि “आरक्षण योग्यता के विपरीत नहीं है, बल्कि इसके वितरणात्मक परिणामों को आगे बढ़ाता है”।

अन्य राज्यों में आरक्षण

  • तमिलनाडु : वर्ष 1994 में 76वें संविधान संशोधन ने 50% सीमा का उल्लंघन करने वाले तमिलनाडु आरक्षण कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर दिया। 
    • नौवीं अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 31A के तहत न्यायिक समीक्षा से कानून को “सुरक्षित आश्रय” प्रदान करती है। 
    • इस अनुसूची में रखे गए कानूनों को संविधान के तहत संरक्षित किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के कारण चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • मराठा आरक्षण : मई 2021 में, पांच न्यायाधीशों वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सर्वसम्मति से मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र कानून को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया था। 
    • मराठा आरक्षण लागू होने से राज्य में आरक्षण 68% तक बढ़ सकता था।
  • मराठा मुद्दे के समान गुजरात में पटेलों, हरियाणा में जाटों और आंध्र प्रदेश में कापू के मामले भी हैं।

नौवीं अनुसूची के बारे में

  • भारतीय संविधान की नौवीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की सूची है, जिन्हें अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • वस्तुतः इस अनुसूची में शामिल कानूनों को भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के साथ असंगति के आधार पर अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • शंकरी प्रसाद मामले (1951) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रत्युत्तर में वर्ष 1951 में प्रथम संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया था। 
    • शंकरी प्रसाद मामले में कहा गया था कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को चुनौती दी जा सकती है यदि वे संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
  • वर्ष 1951 में प्रथम संविधान संशोधन के माध्यम से 13 कानूनों को इस अनुसूची में जोड़ा गया था।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR