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दिवालियापन समाधान प्रक्रिया : मूल्यांकन एवं सुझाव

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन –लोकनीति और अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2एवं3 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारन उत्पन्न विषय, उदारीकरण का अर्तव्यवस्था पर प्रभाव तथा औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)

चर्चा में क्यों?

दिवालियापन और शोधन अक्षमता सहिंता(Insolvency and Bankruptcy Code -IBC)में दिवालियापन की प्रक्रिया से सम्बंधित कई नए सुधार किये गए हैं, जिनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना समय की माँग है।

सहिंता से आए परिवर्तन

  • दिवालिया और शोधन अक्षमता सहिंता ने पूर्व के अशक्त दिवालियापन कानून को प्रतिस्थापित किया है, जिसने भारत में दिवालियापन प्रक्रिया में उल्लेखनीय सुधार किया है। इस सहिंता ने फर्मों या कम्पनियों के परिसमापन के बजाय निर्धारित समय सीमा के अंतर्गत कम्पनियों की समाधान प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • इस सहिंता ने निवेशकों के विश्वास में वृद्धि की है तथा घरेलू एवं विदेशी मुद्रा प्रवाह को गतिशीलता प्रदान की है।
  • इस सहिंता के प्रावधान लचीले और गतिशील दोनों हैं। इसलिये यह सहिंता अधिक प्रभावशील हो पाई है|
  • भारत के दिवालिया और शोधन अक्षमता बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board of India - IBBI) ने बाज़ार की वास्तविक समस्याओं का मूल्यांकन करते हुए विनियमन और दिवालियापन से सम्बंधित नीति निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • रिज़ॉल्विंग इन्सॉल्वेंसी इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2019 में वर्ष2018 की तुलना में रैंकिंग में 56 अंकों का सुधार आया है।
  • इस सहिंता के लागू होने से रिकवरी दर में लगभग तीन गुना वृद्धि हुई है तथा रिकवरी में लिये गए समय में भी अत्यधिक कमी आई है।

वर्तमान प्रयास

  • सरकार के बहु आयामी प्रयासों के कारण व्यवसायिक मामले बड़ी मात्रा में वाणिज्यिक अदालतों से बाहर सहिंता की समाधान प्रक्रिया के तहत सुलझाए जा रहे हैं।
  • मामूली अपराधों के लिये कारावास सहित अन्य आर्थिक दण्डों मेंनिवेशकों के लिये एक रियायत प्रदान की गई है। हालाँकि भारत सरकार छोटे अपराधों के लिये सज़ा के प्रावधानों को कम करने की दिशा में कार्य कर रही है। यह गैर इरादतन तथा भूल-चूक से हुए अपराधों के सम्बंध में अर्थदंड या कारावास के जोखिम को कम करेगा, जिससे इंस्पेक्टरराज की प्रवृति में भी कमी आएगी।
  • दिवालियापन समाधान प्रक्रिया को संस्थागत रूप प्रदान किया जाना चाहिये। यह औपचारिक अदालती प्रक्रिया के इतर मामलों को निपटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी तथा वैकल्पिक विवाद निपटान प्रणाली की दिशा में एक सराहनीय पहल साबित होगी।
  • यह सामाधान प्रक्रिया स्थायी, कुशल और मूल्यवान तरीकों से दिवालायापन प्रक्रियाओं को और अधिक सुव्यवस्थित करेगा।
  • IBC ने व्यापार सुगमता को अत्यधिक प्रोत्साहन प्रदान किया है तथा निवेशकों के विश्वास में वृद्धि की है एवं MSME क्षेत्र को सहायता प्रदान करते हुए उद्यमिता हेतु सकारात्मक व्यावसायिक पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध करवाया है। इस कानून की गतिशीलता और सशक्तता घरेलू तथा विदेशी निवेशकों के लिये भारत को आकर्षक निवेश स्थान के रूप में संदर्भित करेगी।

चुनातियाँ तथा सुझाव

  • दुर्भाग्य से भारत की अदालतों में अब भी बड़ी संख्या में मामले लम्बित हैं। वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली में भी मामलों की समाधान और समझौतों के निपटान की गति बहुत धीमी है, जिसमें कुशलता तथा तीव्रता के साथ मामलों का निपटान किया जाना चाहिये।
  • विदित है कि सहिंता से दिवालियापन की प्रक्रिया में आ रही बाधाओं में कमी आई है साथ ही अब कर्ज़ वसूली के दौरान कम्पनी का लाइसेंस, परमिट, रियायत, मंज़ूरी को समाप्त या निलम्बित नहीं किया जाता है और ना ही इनका नवीनीकरण रोका जा रहा है।
  • छिपे हुए कानूनी या वित्तीय दायित्त्वों को नए प्रबंधन के समक्ष नहीं लाए जाने सेभी संस्थागत समस्याओं में कमी आई है, जिससे लालफीताशाही एवं कॉर्पोरेट घरानों पर अनुचित देयताओं का दबाव कम हुआ है।
  • इस सहिंता में समय के साथ तथा विभिन्न पक्षों के सुझावों के आधार पर लगातार परिवर्तन किये जा रहे हैं, जिससे कानून निर्माण की प्रक्रिया में विभिन्न पक्षों के हितों का संरक्षण किया जा सके।
  • पुराने औरछिपे हुए दायित्वों को कम या समाप्त करने से विभिन्न पक्षों (कॉर्पोरेट तथा देनदारों आदि) की तो समस्याएँ कम हो जाएँगी लेकिन इसका अप्रत्यक्ष रूप से अंतिम भारतो आम जनता पर ही पड़ेगा, जिनका इस प्रकार के मामलों से कोई सम्बंध नहीं है।

निष्कर्ष

वर्तमान में सरकार को आवश्यकता है कि पुराने प्रबंधन, कम्पनी तथा नए प्रबंधन के मध्य एक स्पष्ट अंतर स्थापित किया जाए। पहले से चल रहे मुकदमे (धन शोधन, कर सम्बंधी या अन्य वित्तीय तथा आपराधिक मामले) नए प्रबंधन के कार्यों में किसी प्रकार की अड़चन पैदा ना करें।

प्री फैक्ट्स :

  • इन्सोल्वेंट वह व्यक्ति या संस्था होती है, जो अपने दायित्वों को चुकाने में असमर्थ हो।
  • दिवालिया वह व्यक्ति या संस्था होती है, जिसे ऋण या वित्तीय दायित्वों को ना चुकाने की स्थिति में कोर्ट द्वारा दिवालिया घोषित किया जाता है।
  • IBC को वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था, जिसके तहत विफल हो चुके या घटे में चल रहे व्यवसायों के लिये एक तीव्र और उचित समाधान प्रक्रिया का प्रावधान किया था।

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