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बेस एडिटिंग तकनीक

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।)

संदर्भ 

हाल ही में, ब्रिटेन के डॉक्टरों/वैज्ञानिकों ने बेस एडिटिंग तकनीक के माध्यम से एक विशेष प्रकार के रक्त कैंसर ‘टी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया’(T-Cell Acute Lymphoblastic Leukemia,T-ALL) का सफलतापूर्वक उपचार किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • ब्रिटेन की 13 वर्षीय एलिसा बेस एडिटिंग के माध्यम से कैंसर का उपचार प्राप्त करने वाली विश्व की पहली व्यक्ति बन गई है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा इस प्रायोगिक उपचार को अब तक की सबसे परिष्कृत ‘कोशिका अभियांत्रिकी’ (Cell Engineering) के रूप में वर्णित किया गया है।    

टी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (T-ALL)

  • यह एक प्रकार का रक्त कैंसर है, जो अस्थि मज्जा में स्टेम कोशिकाओं को प्रभावित करता है। ये स्टेम कोशिकाएँ विशेष प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) का उत्पादन करती हैं, जिन्हें टी- लिम्फोसाइट्स (T- Lymphocytes) या टी-कोशिकाएँ (T-Cells) कहा जाता है। 
    • टी-कोशिकाएँ शरीर की संक्रमित कोशिकाओं को मारकर, अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को सक्रिय करती हैं। इस प्रकार, ये कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को विनियमित करके शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
  • इस रोग में कम से कम 20% डब्ल्यू.बी.सी. असामान्य हो जाती हैं। ये असामान्य कोशिकाएँ अस्थि मज्जा में जमा होकर स्वस्थ्य डब्ल्यू.बी.सी. को बाहर कर देती हैं और इस प्रकार ये कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करती हैं।    
  • यह अस्वस्थ्य कोशिकाएँ शरीर के अन्य भागों जैसे- यकृत, प्लीहा और लिम्फ नोड्स में भी जमा हो सकती हैं।
  • यह रोग बच्चों और वयस्कों दोनों में पाया जाता है, किंतु इसकी संभावनाएं उम्र बढ़ने के साथ कम हो जाती हैं। 

शिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल थेरेपी (Chimeric Antigen Receptor T-cell (CAR-T) therapy) 

  • इस थेरेपी को कोशिका आधारित जीन थेरेपी के रूप में जाना जाता है। इसमें टी-कोशिकाओं को प्रयोगशाला में संशोधित कर के कैंसर से लड़ने के लिये उपयोग किया जाता है ताकि वे कैंसर कोशिकाओं को खोज सकें और नष्ट कर सकें। इन संशोधित कोशिकाओं को सी.ए.आर.-टी. कोशिकाओं के रूप में जाना जाता है।
  • विदित है कि इस उपचार को प्राप्त करने के 5 वर्ष पश्चात् बच्चों के जीवित रहने की दर 85% से अधिक है।  

सी.ए.आर. टी-सेल थेरेपी की चुनौतियाँ

  • इस उपचार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि सी.ए.आर.-टी. कोशिकाओं को बनाने के लिये पर्याप्त स्वस्थ टी-कोशिकाएँ प्राप्त करना असंभव होता है।
  • इसके अतिरिक्त, दाता द्वारा प्रदान की गई स्वस्थ टी-कोशिकाएँ उस रोगी के शरीर की प्रत्येक कोशिका पर हमला कर सकती हैं, जिससे उपचार प्रतिकूल हो जाता है।

बेस एडिटिंग तकनीक

  • ब्रिटेन के डॉक्टरों ने एलिसा के रक्त कैंसर के उपचार में सी.ए.आर. टी-सेल थेरेपी से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों के समाधान के रूप में बेस एडिटिंग नामक तकनीक का प्रयोग किया है।
  • इस तकनीक द्वारा डी.एन.ए. के अरबों नाइट्रोजनी बेस (Nitrogenous Bases) में परिवर्तन किया जा सकता है।

नाइट्रोजनी बेस (Nitrogenous Bases)

  • डी.एन.ए. में चार प्रकार के बेस- एडेनिन (A), साइटोसिन (C), गुआनिन (G) और थाइमिन (T) होते हैं, जो आनुवंशिक निर्देशों को बनाते है। विदित है कि डी.एन.ए. के अरबों बेस शरीर के लिये निर्देश पुस्तिका का कार्य करते हैं।  
  • आनुवंशिक कोड के एक सटीक हिस्से को ज़ूम करके बेस की आणविक संरचना और आनुवंशिक निर्देशों को बदलने की तकनीक को बेस एडिटिंग कहते है। 
  • इस तकनीक का उपयोग एक नए प्रकार के स्वस्थ टी-कोशिकाओं को संशोधित करने के लिये किया गया है, जो रोगी की कैंसरग्रस्त टी-कोशिकाओं को खोजने और मारने में सक्षम होगी। ये कोशिकाएँ स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला नहीं करेगी।
  • बेस एडिटिंग के अंतर्गत सबसे पहले टी-कोशिकाओं के लक्ष्यीकरण तंत्र को अवरुद्ध किया गया ताकि ये कोशिकाएँ रोगी के शरीर पर हमला न करें। इसके पश्चात् सी.डी.7 (Cluster of Differentiation 7) नामक एक रासायनिक मार्कर को हटाया गया, जो सभी टी-कोशिकाओं पर होता है। 

सी.डी.7 (Cluster of Differentiation 7) एंटीजन

  • सी.डी.7 एंटीजन कोशिका की सतह पर उपस्थित एक प्रकार का प्रोटीन है। यह प्रोटीन थाइमोसाइट्स और परिपक्व टी-कोशिकाओं पर पाया जाता है। 
  • यह एंटीजन प्रारंभिक लिम्फोइड विकास के दौरान टी-कोशिका इंटरैक्शन और टी-कोशिका /बी-कोशिका इंटरैक्शन में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह टी-लिम्फोसाइट वंश की कोशिकाओं पर प्रकट होने वाले सबसे शुरुआती एंटीजन में से एक है। यह एंटीजन टी-कोशिका एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया का सबसे विश्वसनीय क्लिनिकल मार्कर है।

genetic-manipulation

आगे की राह 

  • आनुवंशिक हेरफेर (Genetic Manipulation) विज्ञान का एक बहुत तेजी से उभरने वाला क्षेत्र है, जिसमें कई तरह की बीमारियों के उपचार की क्षमता है। बेस-एडिटिंग तकनीक से न केवल ल्यूकेमिया का उपचार किया जा सकता है बल्कि अन्य आनुवंशिक विकारों को भी दूर किया जा सकता हैं।
  • विदित है कि वर्तमान में सिकल-सेल रक्ताल्पता रोग, उच्च कोलेस्ट्रॉल और रक्त विकार बीटा-थैलेसीमिया में बेस एडिटिंग के परीक्षण किये जा रहे हैं।
  • यह तकनीक  चिकित्सीय मानव जीन-एडिटिंग के युग का हिस्सा बनने के लिये तैयार है, क्योंकि विज्ञान अब हमारे जीनोम को नियंत्रित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
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