(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा – सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)
संदर्भ
हाल ही में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे जीन की पहचान की है जो पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण को विनियमित कर, उन्हें हरा रहने में सहायता प्रदान करता है।
क्रियाविधि की पृष्ठभूमि
- समान्यतः पौधों में क्लोरोफिल का संश्लेषण एक लम्बी और बहु-चरणीय प्रक्रिया होती है।
- जब मृदा के नीचे किसी पौधे का अंकुरण होता है तो उसे अपने विकास के लिये क्लोरोफिल के संश्लेषण की आवश्यकता होती है।
- अँधेरे में क्लोरोफिल के त्वरित संश्लेषण को सुगम बनाने के लिये पौधे क्लोरोफिल के अग्रगामी के रूप में 'प्रोटोक्लोरोफिलाइड' (Protochlorophyllide) का निर्माण करते हैं, जो पौधे पर नीली रोशनी डालने पर लाल हो जाता है। दुसरे शब्दों में प्रोटोक्लोरोफिलाइड को हम क्लोरोफिल के जैवसंश्लेषण में एक मध्यवर्ती भी कह सकते हैं।
- जब पौधा अंकुरण के पश्चात मृदा से निकलकर बाहर आता है, प्रकाश-निर्भर एंजाइम प्रोटोक्लोरोफिलाइड को क्लोरोफिल में बदल देते हैं।
BBX11 की क्रियाविधि
- क्लोरोफिल में परिवर्तित होने के लिये यह आवश्यक है कि प्रोटोक्लोरोफिलाइड की मात्रा उपलब्ध एंजाइमों की संख्या के आनुपातिक हो। यदि मुक्त प्रोटोक्लोरोफिलाइड की मात्रा अनुपात से अधिक होती है, तो प्रकाश के सम्पर्क में आने पर ये फ़ोटोब्लीचिंग कारक अणुओं में परिवर्तित हो जाते हैं तथा यदि मुक्त प्रोटोक्लोरोफिलाइड की मात्रा अनुपात से कम होती है तो पौधे ढंग से हरे नहीं हो पाते और सूर्य का प्रकाश ग्रहण करने में भी असमर्थ हो जाते हैं।
- इस प्रकार, पौधे द्वारा संश्लेषित प्रोटोक्लोरोफिलाइड की मात्रा को विनियमित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और 'बी.बी.एक्स. 11' जीन, प्रोटोक्लोरोफिलाइड के स्तरों को विनियमित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अनुसंधान के लाभ
- उपरोक्त अनुसंधान, भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में कृषि क्षेत्र के लिये प्रभावी हो सकता है और तेज़ी से बदलती एवं विषम जलवायु परिस्थितियों में पौधों की वृद्धि के अनुकूलन में सहायक हो सकता है।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान विषम जलवायु परिस्थितियों के कारण, भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र में, कई राज्यों में किसानों को फसलों की पैदावार में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है एवं विगत कुछ वर्षों से महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या से जुड़ी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।
- गंभीर सूखा, उच्च तापमान आदि फसल की विफलता के कुछ प्रमुख कारण हैं।
- शोधकर्ताओं का मानना है कि इन तनावपूर्ण परिस्थितियों में यह अनुसंधान पौधों की वृद्धि से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने में सहायक होगा।