जन्म :2 अप्रैल, 1909 को पंजाब के मलेरकोटला जिले में
वर्तमान में यह स्थान लाहौर में स्थित है। जन्म तिथि को लेकर विवाद है।
मृत्यु :1 अगस्त, 2001 को लखनऊ में
माता का नाम :महमूदा सुल्ताना
पिता का नाम : सर जुल्फिकार अली खान
विवाह :वर्ष 1929 में संडीला (हरदोई जिला, उत्तर प्रदेश) के ज़मींदार नवाब ऐज़ाज़ रसूल से
बचपन में इनका नाम कदसिया था।
सम्मान :सामाजिक कार्यों में योगदान के लिए वर्ष 2000 में पद्म भूषण से सम्मानित
प्रमुख लेखन : ‘पर्दा से संसद तक’ शीर्षक से आत्मकथा
इसमें रसूल ने भारतीय राजनीति और संवैधानिक क्षेत्र में एक मुस्लिम महिला के रूप में अपनी यात्रा का वर्णन किया है।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बेगम ऐज़ाज़ रसूल की भूमिका
वर्ष 1937-1952 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य
ब्रिटिश भारत में गैर-आरक्षित प्रांत से निर्वाचित बहुत कम महिला विधायकों में से एक
1937-1940 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद की उपसभापति
1950-1952 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विपक्ष की नेता
विधानसभाओं में अल्पसंख्यक आरक्षण, पर्दा प्रथा, भारत विभाजन एवं जमींदारी प्रथा जैसी सामंती प्रथाओं की प्रबल विरोधी
संविधान निर्माण में बेगम ऐज़ाज़ रसूल का योगदान
299 सदस्यीय संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला
संविधान सभा में केवल 15 महिलाएं थीं।
मुस्लिम लीग सदस्य के रूप में संयुक्त प्रांत का प्रतिनिधित्व
संविधान सभा में राष्ट्रीय भाषा, भारत के राष्ट्रमंडल का हिस्सा बने रहने, आरक्षण, संपत्ति के अधिकार और अल्पसंख्यक अधिकारों पर बहस में हस्तक्षेप
आजादी के बाद बेगम ऐज़ाज़ रसूल का योगदान
1952-1956 तक के लिए राज्य सभा सदस्य
1969-1989 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद् सदस्य
1969-1971 तक उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग की अध्यक्ष
आजादी के कुछ वर्षों बाद मुस्लिम आरक्षण के बारे में उनके विचार में परिवर्तन
विधानमंडलों और सेवाओं में मुस्लिमों के लिए आरक्षण की आवश्यकता पर रसूल के विचार, ‘सांप्रदायिक भावनाएं बढ़ने और हिंदुत्व की अवधारणा लोकप्रिय होने के कारण अब समय आ गया है कि मुस्लिमों की शैक्षिक एवं सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के बारे में नए सिरे से सोचा जाए’।
भारतीय महिलाओं के लिए हॉकी को लोकप्रिय बनाने में मजबूती से शामिल
दो दशकों तक भारतीय महिला हॉकी महासंघ की अध्यक्ष और एशियाई महिला हॉकी महासंघ की प्रमुख