गुजरात के कच्छ में स्थित बेला गाँव की पारंपरिक शिल्प कला बेला ब्लॉक प्रिंटिंग पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
बेला ब्लाक प्रिंटिंग के बारे में
- क्या है : कपड़ों पर बोल्ड एवं सटीक डिजाइन के साथ प्रदर्शित की जाने वाली एक पारंपरिक और दीर्घकालिक व सम्मानित कपड़ा कला
- ऐतिहासिक विरासत : गुजरात के कच्छ जिला में इस कला रूप का समृद्ध इतिहास
- अविभाजित भारत में कच्छ और वर्तमान पाकिस्तान में सिंध के बीच बेला का अत्यधिक व्यापार होता था।
- संबंधित समुदाय : इस शिल्प में महारत के लिए खत्री समुदाय प्रसिद्ध
- प्रिंटिंग तकनीक : इस तकनीक में प्रतिरोधी प्रिंटिंग का समावेश
- प्रतिरोधी प्रतिरोधी में कपड़े के विशिष्ट क्षेत्रों को डाई का प्रतिरोध करने के लिए मिट्टी या फिटकरी जैसे पदार्थों से उपचारित किया जाता है, जिसके बाद जटिल पैटर्न और डिज़ाइन बनाए जाते हैं।
- प्राकृतिक रंग संयोजन : आकर्षक रंग संयोजनों और ग्राफिक रूपांकनों के लिए प्रसिद्ध
- इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले रंग पूर्णतया प्राकृतिक एवं वनस्पति स्रोतों से निर्मित होते हैं।
- विशेषताएँ : हाथी व घोड़े जैसे रूपांकनों को दर्शाने के साथ रेखाओं का व्यापक उपयोग
- लुप्तप्राय शिल्प : बेला को हस्तशिल्प विकास आयुक्त कार्यालय से लुप्तप्राय शिल्प के रूप में मान्यता प्राप्त
- हस्तशिल्प विकास आयुक्त कार्यालय एक राष्ट्रीय एजेंसी है, जो भारतीय हस्तशिल्प की उन्नति, संवर्द्धन एवं निर्यात के लिए समर्पित है।
- यह भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करती है।
इसे भी जानिए!
- गुजरात के कच्छ क्षेत्र के 'कच्छ अजरख' के पारंपरिक कारीगरों को भौगोलिक संकेतक (GI Tag) प्रमाण पत्र प्रदान किया है।
- अजरख कपड़े पर रंगाई की एक शिल्पकला है। गुजरात के सिंध एवं कच्छ और बाड़मेर क्षेत्रों में इसका विशेष सांस्कृतिक महत्त्व है।
- रबारी, मालधारी एवं अहीर जैसे खानाबदोश पशुपालक व कृषि समुदाय अजरख मुद्रित कपड़े को पगड़ी, लुंगी या स्टोल के रूप में पहनते हैं।
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