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बेल्ट और रोड पहल तथा लद्दाख गतिरोध: एक विश्लेषण

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह तथा भारत से सम्बंधित अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

पृष्ठभूमि

चीन द्वारा लद्दाख में नवीनतम घुसपैठ के उद्देश्यों में अक्साई चिन में अपनी स्थिति को और मज़बूत करना है। कूटनीतिक तौर पर अप्रैल 2018 के वुहान अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में इसकी जड़ें खोज़ी जा सकती हैं। जिसके बाद, बीजिंग ने भारत को उलझाने और लगाम लगाने के लिये कई विकल्पों का प्रयोग किया है जिससे वो अपने मूल हितों की रक्षा कर सके। वुहान शिखर सम्मेलन के बाद चीन ने अपने पड़ोस में बीजिंग तथा नई दिल्ली के साझा हितों के प्रबंधन से सम्बंधित किसी समझौते पर पहुँचने के लिये राजनयिक ट्रैक को सक्रिय कर दिया है। यह पहल चीन द्वारा यूरेशिया केंद्रित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के लिये अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की व्यापक आकांक्षा के अनुरूप थी। साथ ही, लद्दाख व एल.ए.सी. के माध्यम से चीन अपनी सैन्य क्षमता को भी प्रदर्शित करना चाहता है जो कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में, पिछले कुछ समय से चीन द्वारा भारत के साथ बढ़ते सीमा गतिरोध का विश्लेषण आवश्यक है।

चीन की कूटनीति में बदलाव की आवश्यकता

  • चीन की कूटनीति जब हिंद-प्रशांत सिद्धांत (Indo-Pacific Doctrine) के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते सम्बंधों सहित कई कारणों से काम नहीं कर पाई, तो पाकिस्तान पर अधिक निर्भरता के साथ चीन की योजना-बी (Plan-B) ने आकार लेना शुरू कर दिया।
  • वाशिंगटन की हिंद-प्रशांत रणनीति के प्रति भारत के कथित झुकाव का मुकाबला करने के लिये बीजिंग की रणनीति में पाकिस्तान का समावेश तब हुआ, जब चीन ने अक्टूबर 2019 में पाकिस्तान के शीर्ष स्तंभों प्रधान मंत्री, सेना प्रमुख और इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के प्रमुख को आमंत्रित किया था।
  • बीजिंग में ये बैठकें भारत द्वारा कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की पृष्ठभूमि में हुईं, इस कदम की पाकिस्तान व चीन द्वारा पहले से ही स्पष्ट रूप से आलोचना की जा रही थी।
  • इन बैठकों से पूर्व भारत ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान विदेश मंत्री स्तर की हिंद-प्रशांत क्वाड (Indo-Pacific Quad) के एक सम्वाद में भाग लिया था।

गिलगिट-बाल्टिस्तान का मुद्दा

  • चीन अपने मूल हितों के मद्देनज़र यह चाहता है कि भारत गिलगिट-बाल्टिस्तान को पुन: प्राप्त करने सम्बंधी विचार को दृढ़ता से ख़ारिज कर दे क्योंकि भारत वर्ष 1994 में सर्वसम्मति से पारित एक संसदीय प्रस्ताव में कश्मीर को एकजुट करने के लक्ष्य को पूरा करने हेतु कटिबद्ध है।
  • वुहान शिखर सम्मलेन से पूर्व ही चीन ‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सी.पी.ई.सी.- CPEC) में अरबों डॉलर निवेश कर चुका है। इस गलियारे के गिलगिट-बाल्टिस्तान से गुज़रने के कारण पकिस्तान के साथ-साथ चीन के लिये भी यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • बीजिंग के दृष्टिकोण से, गिलगिट-बाल्टिस्तान पर कब्ज़ा करने का कोई भी भारतीय प्रयास बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की एक प्रमुख परियोजना सी.पी.ई.सी. (CPEC) को बर्बाद कर देगा। सी.पी.ई.सी. ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से चीन को हिंद महासागर तक पहुँच प्रदान करेगा। इस परियोजना ने शी जिनपिंग की व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा दिया है।
  • यह अमेरिका के प्रभुत्व वाले मलक्का जलडमरूमध्य पर बीजिंग की निर्भरता को कम करने में भी मदद करेगा। अमेरिका ने एशिया-धुरी सिद्धांत (Asia-Pivot Doctrine) के साथ पश्चिम एशिया और द गल्फ़ (The Gulf) से अपनी सेनाओं को एशिया-प्रशांत में स्थानांतरित करने का इरादा जताया था।
  • चीन, अक्साई चिन को लेकर भी मुखर रहा है। अक्साई चिन, तिब्बत और शिनजियांग के बीच एक आवश्यक लिंक है क्योंकि चीन का राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 219 इसी दर्रे से होकर गुजरता है। इसलिये अक्साई चिन, चीन की क्षेत्रीय एकता और एक-चीन सिद्धांत (One-China Principle) के केंद्र में है। भारतीय गृह मंत्री द्वारा अक्साई चिन को भारत में शामिल करने सम्बंधी बयान को चीन गम्भीरता से ले रहा है।
  • भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) पर बुनियादी ढाँचे के विकास से भी चीन असहज हो गया हैं क्योंकि यह खासकर अक्साई चिन पर दबाव का कारण है।

भारत द्वारा हवाई पट्टियों का पुनरुत्थान

  • वर्ष 2008 तक, भारत ने दौलत बेग ओल्डी (डी.बी.ओ.) और फुक चे (Fukche) के हवाई क्षेत्रों को पुन: सक्रिय कर दिया था। ये हवाई क्षेत्र लद्दाख के लिये मुख्य हवाई सहायता केंद्र के रूप में लेह पर निर्भरता को कम करता है। इसके एक वर्ष बाद ही न्योमा (Nyoma) एयरफील्ड को भी पुन: शुरू कर दिया गया था।
  • डी.बी.ओ. काराकोरम दर्रे के माध्यम से पुराने लेह-तारिम बेसिन व्यापार मार्ग पर स्थित है। यह अक्साई चिन से केवल नौ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में है। एक पूर्व राजनयिक के अनुसार, यह इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत का चीन के शिनजियांग प्रांत के साथ भौतिक रूप से लिंक डी.बी.ओ. रूट के माध्यम से किया गया है।
  • विमानन क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के पुनरुद्धार ने एल.ए.सी. तक सैनिक व सैन्य आपूर्तियों को तीव्र गति से पहुँचाने में भारत की क्षमता में वृद्धि की है।
  • भारत द्वारा सड़क निर्माण गतिविधियों जैसे की लगभग 250 किमी. लम्बी दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डी.एस.डी.बी.ओ.) सड़क की मजबूती के कारण अक्साई चिन से सम्बंधित मुद्दों पर दबाव बढ़ गया है। यह सड़क एल.ए.सी. के साथ भारत की कनेक्टिविटी की रीढ़ है।

2+1 फ़ॉर्मूला

  • वुहान सम्मलेन के बाद भारत और चीन ने क्षेत्र में संयुक्त रूप से कार्य करने की ओर अफ़गान राजनयिकों को प्रशिक्षण देने का एक छोटा सा कदम उठाया। इस अफ़गान पहल के तुरंत बाद, चीन ने क्षेत्र में एक भागीदार के रूप में भारत के साथ समन्वित दृष्टिकोण विकसित करना शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत ‘2+1 दृष्टिकोण’ को ज़ारी रखते हुए नेपाल के साथ की गई।
  • नये ‘2+1 फ़ॉर्मूला’ के तहत भारत और चीन दोनों देश किसी तीसरे देश के साथ एक सामान्य दृष्टिकोण का समन्वय करना चाहते हैं। यह फ़ॉर्मूला नेपाल के प्रधान मंत्री के.पी. ओली द्वारा जून 2018 में चीन की यात्रा के दौरान पुनः प्रकाश में आया।
  • चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि वह नेपाल में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये नेपाल के अनुरोध पर विचार करने हेतु तैयार हैं परंतु चीन ने स्पष्ट कर दिया कि वह नेपाल में जीरो-सम (Zero-sum) दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने में कोई रुचि नहीं रखता हैं।
  • ‘2+1 फ़ॉर्मूला’ बाद में ‘चीन-भारत प्लस मैकेनिज्म’ में बदल गया जिसने म्यांमार के रोहिंग्या और ईरान के परमाणु समझौते के मुद्दे पर दोनों देशों द्वारा दी गई प्रतिक्रिया को निर्देशित किया था।
  • इसके अलावा, चीन बी.आर.आई. को सफल बनाने के लिये भारत को इसमें शामिल करने के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान के मध्य गतिरोध को भी समाप्त करना चाहता है। जून 2019 में एस.सी.ओ. (SCO) के बिश्केक सम्मलेन के दौरान चीन ने कश्मीर मुद्दे को हल करने और शांति स्थापित करने का भी प्रस्ताव दिया था।
  • पिछले वर्ष कश्मीर की स्थिति में परिवर्तन के बाद चीन ने प्लान-बी पर कार्य करना शुरू कर दिया। जिसके तहत एल.ए.सी. के पार लद्दाख पर ध्यान केंद्रित किया गया और इसकी परिणति नवीनतम घुसपैठ के रूप में हुई।

अक्साई चिन पर भारत का दावा

  • भारत ने आमतौर पर हमेशा से अक्साई चिन पर अपना दावा किया है, परंतु कश्मीर का विशेष दर्जा हटाये जाने के बाद अक्साई चिन के मुद्दे पर चीन ने नये सिरे से विश्लेषण करना शुरू कर दिया।
  • चीन ने इस मुद्दे को विदेश मंत्रालय के सामने उठाया। भारत ने एल.ए.सी. (LAC) में किसी प्रकार के बदलाव तथा किसी अतिरिक्त क्षेत्र के दावे को इंकार कर दिया था, परंतु चीन भारत के आगामी क़दमों को लेकर पूरी तरह से सचेत रहना चाहता है।

निष्कर्ष

पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन लद्दाख में सैन्य दबाव डालकर कई संदेश देना चाहता है। वह अक्साई चिन तथा गिलगिट-बाल्टिस्तान के मुद्दे पर नई दिल्ली पर दबाव बनाना चाहता है। साथ ही ‘2+1 फ़ॉर्मूले’ के दृष्टिकोण के तहत नेपाल, भूटान तथा अफ़गानिस्तान आदि देशों में अपनी स्थिति को मज़बूत करना चाहता है। इसके अलावा, हिंद-प्रशांत सिद्धांत के तहत ट्रम्प प्रशासन के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव पर अंकुश लगाना चाहता है। सी.पी.ई.सी. (CPEC) के साथ-साथ गिलगिट-बाल्टिस्तान का रणनीतिक रूप से अत्याधिक महत्त्व होने के कारण ही हालिया वर्षों में पाकिस्तान और चीन के द्वारा इस क्षेत्र के अवसंरचना में भारी निवेश किया जा रहा है। दियामर-बाशा जैसे बाँध इसका नवीनतम उदाहरण है।

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