चर्चा में क्यों
हाल ही में, संसंद की एक संयुक्त समिति ने जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 पर अपनी अनुशंसा रिपोर्ट संसद को सौंपी है।
प्रमुख बिंदु
- विगत वर्ष संसद में पेश करने के बाद इस विधेयक को जैवविविधता से संबंधित विभिन्न चिंताओं के कारण संसद की संयुक्त समिति को सौप दिया गया था।
- जैव विविधता अभिसमय, 1992 की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये भारत में जैव विविधता अधिनियम, 2002 को अधिनियमित किया गया था। इसके तीन मुख्य कार्य थे-
- जैव विविधता का संरक्षण
- जैव विविधता का सतत उपयोग
- जैव विविधता से होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित करना।
- यह संशोधन विधेयक भारतीय चिकित्सा प्रणाली, बीज, उद्योग और अनुसंधान क्षेत्र आदि के प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त की गई अनेक चिंताओं के कारण पेश किया गया था।
प्रस्तावित संशोधन
- प्रस्तावित संशोधनों में भारतीय कंपनियों को विदेशी शेयर रखने, कृषि स्रोतों से कच्चा माल प्राप्त करने और समुदायों को लाभ देने के लिये संहिताबद्ध ज्ञान की अनिवार्यता से छूट प्रदान करने का प्रावधान है।
- संहिताबद्ध ज्ञान की अनिवार्यता के बिना आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) उद्योग को समुदाय के साथ लाभ साझा करने से छूट मिल जाएगी।
- संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 तथा पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी व पारंपरिक ज्ञान डिजिटल भंडार में परिभाषित एवं सूचीबद्ध किया गया है।
- नए कानून के अंतर्गत अब भारतीय संस्थाओं को केवल राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण में पंजीकरण करना अनिवार्य होगा और पेटेंट का आवेदन करने के लिये अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- साथ ही, जैव विविधता तक पहुंचने के लिये कानूनों का उल्लंघन करने वालों को अपराध मुक्त करने का प्रावधान है। इसमें हकीमों (यूनानी चिकित्सक), वैद्यों (आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सक), पंजीकृत चिकित्सकों आदि को उल्लंघन की सीमाओं से मुक्त कर दिया गया है।
- हालाँकि, विशेषज्ञों ने इन संशोधनों को जैव विविधता अभिसमय की भावना के विपरीत और उद्योग क्षेत्र के अनुकूल बताया है।