क्या है : यह अपनी तरह का पहला स्वचालित जैव-चिकित्सा अपशिष्ट रूपांतरण रिग (Rig) है जो रक्त, मूत्र, थूक एवं प्रयोगशाला डिस्पोजेबल जैसे रोगजनक जैव-चिकित्सा अपशिष्टों को कीटाणुरहित कर सकता है।
इस रिग को ही ‘सृजनम’ Sṛjanam) नाम दिया गया है। किसी निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए लगाए गए उपकरण, यंत्र या मशीनरी को रिग कहते हैं।
विकास :वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय अंतःविषयक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Council of Scientific and Industrial Research and National Institute for Interdisciplinary Science and Technology : CSIR-NIIST) द्वारा
क्षमता :400 किलोग्राम की दैनिक क्षमता
प्रमुख विशेषताएँ : यह उपकरण 30 मिनट में 10 किलो जैव-कचरे को जैव-खाद में बदल सकता है जिससे पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है।
इस तकनीक के संदर्भ में किए गए अध्ययनों के अनुसार उपचारित सामग्री वर्मीकम्पोस्ट जैसे जैविक उर्वरकों की तुलना में अधिक सुरक्षित है।
भारत में बायोमेडिकल अपशिष्ट की स्थिति
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रतिदिन 743 टन जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उत्पन्न होता है जो इसके सुरक्षित एवं उचित निपटान के संदर्भ में एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, देश के अस्पतालों में प्रतिदिन रोगजनक जैव-चिकित्सा अपशिष्ट की मात्रा प्रति बिस्तर 0.5-0.75 किलोग्राम है। इससे सर्वाधिक खतरा नर्सिंग स्टाफ को होता है।
बायोमेडिकल कचरे को अनुचित तरीके से अलग करना, खुले में फेंकना एवं जलाना गंभीर स्वास्थ्य खतरों को जन्म देता है जिसमें कैंसरकारी तत्व और पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन शामिल है।