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कालानमक चावल

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - कालानमक चावल, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र: 3 - आर्थिक विकास, मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न)

चर्चा में क्यों

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने इस खरीफ सीजन में किसानों को कालानमक चावल की दो नई किस्मों पूसा नरेंद्र कालानमक 1638 और पूसा नरेंद्र कालानमक 1652 को उत्पादन के लिए उपलब्ध कराया है।

कालानमक चावल

  • कालानमक चावल बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाली चावल का किस्म है। काले रंग की भूसी के कारण इसका नाम 'कालानमक' चावल पड़ गया।
  • कालानमक चावल के उत्पादन का इतिहास 600 ईसा पूर्व या बुद्ध काल से संबंधित है।
  • यह चावल मूल रूप से उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार एक जिला एक उत्पाद (One District, One Product) के तहत कालानमक चावल के उत्पादन को बढ़ावा दे रही है।
    • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2021 में सिद्धार्थ नगर जिले में कालानमक चावल महोत्सव’ (Kalanamak Rice Festival) का भी आयोजन किया गया था।
  • भारत सरकार द्वारा 2013 में कालानमक चावल को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग प्रदान किया गया था।
  • भारत सरकार ने 2013 में समाज के कमजोर वर्गों की पोषण की स्थिति में सुधार के लिए न्यूट्री-फार्म योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों वाली खाद्य फसलों को बढ़ावा देना है।
  • कालानमक चावल इस योजना के लिए चुनी गयी न्यूट्री-फसलों में से एक है।
  • यूनाइटेड नेशन्स के फूड एंड एग्रिकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ने विश्व में चावल की महत्वपूर्ण किस्मों पर लिखी अपनी किताब स्पेशियलिटी राइसेस ऑफ द वर्ल्ड (Speciality rices of the world) में कालानमक चावल का उल्लेख किया है।

कालानमक चावल के लाभ

  • कालानमक चावल आयरन और जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होता है,जिसके कारण यह पोषक तत्वों की कमी से होने वाली बीमारियों को रोकता है।
  • कालानमक चावल का नियमित सेवन करने से अल्जाइमर रोग से भी बचाव होता है।
  • इसमें प्रोटीन की मात्रा 11 प्रतिशत होती है, जो आम चावल की किस्मों की तुलना में लगभग दोगुनी  है।
  • इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम(49% से 52%) होता है, जो इसे अपेक्षाकृत शुगर फ्री और मधुमेह रोगियों के लिए उपयुक्त बनाता है।
  • इसमें एंथोसाइनिन जैसे एंटीऑक्सीडेंट भी पाये जाते हैं, जो दिल की बीमारी को रोकने में उपयोगी होते है।
  • यह ब्लड प्रेशर और ब्लड से जुड़ी समस्याओं को नियंत्रित करने में भी सहायक है।
  • धान की इस विशेष किस्म को बिना उर्वरकों और कीटनाशकों की मदद सेउगाया जाता है, जिसके कारण यह जैविक खेती के लिए भी उपयुक्त है।

पारंपरिक किस्म की समस्याऐं

  • इस चावल की पारंपरिक किस्म की कम पैदावार का एक महत्वपूर्ण कारण इसका 'लॉजिंग'का शिकार होना है।
    • लॉजिंग एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पौधे का शीर्ष अनाज बनने के कारण भारी हो जाता है, तना कमजोर हो जाता है, और पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।

कालानमक चावल की नई किस्में

  • लॉजिंग की समस्या का समाधान करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कालानमक चावल की दो बौनी किस्मों पूसा नरेंद्र कालानमक 1638 और पूसा नरेंद्र कालानमक 1652 का विकास किया है।
  • इन नई किस्मों के विकास के लिए कालानमक चावल को धान की बिंदली मटंत 68 और पूसा बासमती 1176 किस्म के साथ संयोजित किया गया।
  • जहां पुरानी किस्म के पौधे की लंबाई 140 सेंटीमीटर है, वहीं नई किस्म के पौधों की लंबाई 95-100 सेंटीमीटर के बीच है।
    • लंबाई कम होने के कारण नई किस्में लॉजिंग से कम प्रभावित होती है।
  • नई नस्ल की सुगंध भी अधिक होती है, और पोषण संबंधी गुण भी उत्कृष्ट होते हैं।
  • कालानमक चावल की नई किस्मों की उत्पादन क्षमता परंपरागत किस्मों से लगभग दोगुनी है।
    • कालानमक की परंपरागत किस्म की उत्पादकता 5 टन प्रति हेक्टेयर है, वहीं नई किस्मों की उत्पादकता 4.5-5 टन प्रति हेक्टेयर है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई)

  • आईएआरआई भारत का कृषि अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार के लिए राष्ट्रीय संस्थान है।
  • इसे आमतौर पर पूसा संस्थान के रूप में जाना जाता है।
  • इसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा वित्त पोषित और प्रशासित किया जाता है।
    • आईसीएआर एक स्वायत्त निकाय है जो भारत में कृषि शिक्षा और अनुसंधान के समन्वय के लिए जिम्मेदार है।
    • यह कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, कृषि मंत्रालय को रिपोर्ट करता है, और केंद्रीय कृषि मंत्री इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  • आईएआरआई भारत में हरित क्रांति के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए अग्रणी संस्थान था।
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