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ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन

प्रारंभिक परीक्षा

(अंतर्राष्ट्रीय संस्थान)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन-3 : समुद्र पारिस्थितिकी संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

तमिलनाडु जल संसाधन विभाग (WRD) ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को सूचित किया है कि उसने कामराजार बंदरगाह से 160 करोड़ रुपए की मांग की हैं ताकि बंदरगाह के पास तट पर विदेशज सीपियों (Invasive Mussel) को हटाने में मदद मिल सके। 

संबंधित प्रमुख बिंदु 

  • यह माइटेला स्ट्रिगाटा (Mytella strigata) नामक सीपियों के प्रसार से संबंधित है, जिसे ‘चारु सीपी’ (Charru Mussel) भी कहते हैं। 
  • यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाता है और मछुआरों की नावों की आवाजाही में बाधक बनता है। इससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है। 
  • WRD के अनुसार, तमिलनाडु के एन्नोर में स्थित कामराजार बंदरगाह द्वारा जलयानों से आने वाले ब्लॅास्ट वॉटर के विनियमिन का अभाव आक्रामक प्रजातियों के प्रसार का मुख्य कारण है।

क्या है ब्लॅास्ट वाटर (Ballast Water)

  • ब्लॅास्ट वाटर समुद्री जहाजों (जलयानों) में भरकर लाया जाने वाला समुद्री जल है, जिसका उपयोग जहाज के स्थायित्व व संतुलन के लिए किया जाता है। 
  • एक पारितंत्र से दूसरे पारितंत्र में जाने के कारण यह जल पर्यावरण एवं जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा भी उत्पन्न कर सकता है।
  • ब्लॅास्ट वाटर में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव, पौधे व छोटे समुद्री जीव होते हैं। जब ये एक समुद्री क्षेत्र से दूसरे समुद्री क्षेत्र में ले जाए जाते हैं तो स्थानीय पारितंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। 
  • इन जीवों में कुछ आक्रामक व विदेशज प्रजातियाँ भी हो सकती हैं, जो नए पर्यावरण में तेजी से फैलकर वहां की स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
  • ब्लॅास्ट वाटर आक्रामक प्रजातियों को दूसरे देशों में ले जाता है जो पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करते हैं। इसलिए, भारत में वैश्विक शिपिंग ने ब्लॅास्ट पानी के निर्वहन को विनियमित करने की मांग की है।

ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन की आवश्यकता

  • ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि यह समुद्री पर्यावरण के लिए खतरा बन सकते हैं। 
  • यह अनुमान है कि दुनिया भर में वार्षिक 5 बिलियन टन तक ब्लॅास्ट वॉटर स्थानांतरित होता है और लगभग 10,000 अवांछित प्रजातियाँ प्रतिदिन जलयानों के ब्लॅास्ट टैंक में ले जाई जाती हैं। 
  • इसलिए, ब्लॅास्ट वॉटर को व्यापक रूप से एक प्रमुख पर्यावरणीय खतरा माना जाता है क्योंकि यह संवेदनशील समुद्री पारितंत्र को खतरे में डालता है और समुद्री जीवन को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचा सकता है।
  • हाल ही में, भारत में वैज्ञानिकों ने ब्लॅास्ट वाटर से आने वाली लगभग 30 आक्रामक प्रजातियों को दर्ज किया है और सबसे ज़्यादा नुकसानदायक प्रजातियों में ‘चारु सीपी’ है। 
  • केरल विश्वविद्यालय में जलीय जीव विज्ञान एवं मत्स्य पालन विभाग के अनुसार, तमिलनाडु की पुलिकट झील में केरल की अष्टमुडी झील की तरह चारु सीपी ने लगभग सभी अन्य प्रजातियों का स्थान ले लिया है। 
  • चारु सीपी की जीवित रहने और अंडा देने की दर बहुत अधिक है। यद्यपि यह समुद्री मूल का जीव है किंतु यह ताजे पानी में भी जीवित रह सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) का प्रयास

  • ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन को नियमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने वर्ष 2004 में ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन अभिसमय (BWM Convention) को अपनायायह अभिसमय वैश्विक स्तर पर वर्ष 2017 से लागू हुआ। 
  • इसका उद्देश्य जलयान ब्लॅास्ट वाटर को पर्यावरण अनुकूल तरीके से प्रबंधित करना और समुद्री जीवन व पर्यावरण को खतरे से बचाने के लिए जलयानों को अपने ब्लॅास्ट वाटर को विशेष तकनीकों से स्वच्छ करना है।
  • BWM अभिसमय लागू होने पर 400 सकल रजिस्टर टन भार (Gross Register Tonnage : GRT) और उससे अधिक के सभी जलयानों को जहाज पर एक स्वीकृत ब्लॅास्ट वाटर उपचार प्रणाली फिट करना आवश्यक होगा। साथ ही, जलयानों को समुद्री प्रशासन द्वारा अनुमोदित एक जलयान विशिष्ट BWM योजना की आवश्यकता होगी जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय BWM प्रमाण-पत्र जारी करके सत्यापित किया जाएगा।

ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन तकनीकें

  • ब्लॅास्ट वाटर विनिमय : इस प्रक्रिया में जलयान द्वारा समुद्र के गहरे जल में अपने ब्लॅास्ट वाटर का आदान-प्रदान करना शामिल है, जिससे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले सूक्ष्मजीव व अन्य जीव गहरे समुद्र में जाने से वहां जीवित नहीं रह सकते हैं।
  • ब्लॅास्ट वाटर उपचार प्रणालियाँ : इन प्रणालियों में ब्लॅास्ट वाटर को जैविक व रासायनिक तरीकों से साफ किया जाता है। इसमें फ़िल्ट्रेशन, यूवी विकिरण और क्लोरीनीकरण जैसी तकनीकें शामिल हैं, जो पानी में मौजूद जीवों को नष्ट करने या उन्हें निष्क्रिय करने के लिए उपयोग की जाती हैं।
  • निक्षेप प्रबंधन : ब्लॅास्ट टैंक के तल पर जमा होने वाले निक्षेप को नियंत्रित व प्रबंधित करना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनमें भी आक्रामक प्रजातियाँ हो सकती हैं।

ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन के लिए भारतीय प्रावधान 

  • भारत ने वर्ष 2015 में BWM अभिसमय को स्वीकार किया और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मई 2015 में मर्चेंट शिपिंग (संशोधन) विधेयक, 2015 को पेश करने को मंजूरी दी। 
  • विधेयक में अभिसमय में निहित नियमों के उल्लंघन या अनुपालन न करने पर जुर्माने का प्रावधान है और बंदरगाहों पर अतिरिक्त सुविधाओं का उपयोग करने वाले जहाजों से शुल्क लेने का प्रावधान है। 
  • इसके अलावा, भारत के प्रादेशिक जल में चलने वाले 400 जी.आर.टी. से कम के भारतीय जहाजों को अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणपत्र के बजाए भारतीय ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन प्रमाण-पत्र जारी किया जाएगा और उन्हें भारतीय जल में अभिसमय के तहत सभी नियमों का पालन करना होगा।
  • भारत ने BWM पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए भारतीय बंदरगाहों पर आने वाले जहाजों पर BWM अभिसमय को लागू करने की कोई बाध्यता नहीं है। 
  • यद्यपि पेट्रोलियम के रिसाव (निष्कर्षण) से संबंधित अन्य नियम भारतीय बंदरगाहों पर लागू होते हैं किंतु अन्य देशों से आने वाले ब्लॅास्ट वाटर के निष्कर्षण पर जाँच या विनियमन नहीं होता है।

स्थानीय स्तर पर पहल

  • भारतीय बंदरगाहों ने भी ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन के प्रति अपने प्रयासों को तेज किया है। कुछ प्रमुख बंदरगाहों पर आधुनिक ब्लॅास्ट वाटर उपचार प्रणालियों की स्थापना की गई है। 
  • समुद्री पर्यावरण के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, ताकि जलयान स्वामी व संचालक ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन के नियमों का पालन कर सके।

ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन प्रणाली की चुनौतियाँ 

  • सभी जलयानों पर ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन प्रणाली को लागू करना महंगा व तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। 
  • विभिन्न देशों के बीच कानूनों व नियमों में भी एकरूपता का अभाव है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री परिवहन पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • ब्लॅास्ट वाटर के कारण समुद्री पारितंत्र असंतुलित हो रहा है और गैर-स्थानीय प्रजातियों के प्रसार के कारण अन्य प्रजातियों का जीवन चुनौतीपूर्ण हो गया है। 

आगे की राह 

  • भारत में ब्लॅास्ट वाटर प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए नीतिगत स्तर पर और कदम उठाने की आवश्यकता है।
  • जलयान स्वामियों को सख्त निगरानी में लाने, बेहतर तकनीकी समाधान विकसित करने और स्थानीय समुद्री पारितंत्र संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। 
  • इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं अनुभव साझा करने से भी भारत इस चुनौती का सामना करने में सफल हो सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization : IMO)

  • क्या है : संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी 
  • स्थापना : जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में अपनाए गए एक अभिसमय के माध्यम से 17 मार्च, 1948 को 
  • सदस्य देश : 174
  • मुख्यालय : लन्दन 
  • उद्देश्य : 
    • समुद्री सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ व अन्य तंत्र विकसित करना
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भेदभावपूर्ण एवं प्रतिबंधात्मक प्रथाओं को हतोत्साहित करना 
    • शिपिंग चिंताओं द्वारा अनुचित व्यवहार को रोकना 
    • समुद्री प्रदूषण को कम करना 

अंतर्राष्ट्रीय जलयान प्रदूषण रोकथाम अभिसमय (MARPOL)

  • यह परिचालन या दुर्घटना के कारण जहाजों द्वारा समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण की रोकथाम को कवर करने वाला मुख्य अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय है। 
  • 2 नवंबर, 1973 को MARPOL अभिसमय को अपनाया गया था।
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