(प्रारंभिक परीक्षा: प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक भूगोल, पर्यावरण पारिस्थितिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : विश्व भर के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण) |
संदर्भ
'ब्लू फ़ूड' का अर्थ समुद्री उत्पादों एवं जलीय संसाधनों से प्राप्त खाद्य पदार्थ है। समृद्ध जल निकायों से घिरे हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए यह अवधारणा सांस्कृतिक, आर्थिक एवं पारिस्थितिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखती है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्लू फ़ूड की आवश्यकता
सतत विकास एवं खाद्य सुरक्षा
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सतत विकास एवं खाद्य सुरक्षा वैश्विक मुद्दे हैं जहाँ सामाजिक-आर्थिक असमानता, बदलते जलवायु पैटर्न और जनसंख्या वृद्धि बड़ी बाधाएँ प्रस्तुत करती हैं।
- इस क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा को दीर्घकाल तक सूखा, बाढ़ एवं चक्रवातों से भी अधिक खतरा है, जो फसलों व महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
तेजी से बढ़ती जनसंख्या
- तेजी से बढ़ती आबादी, जटिल भू-राजनीति, आर्थिक असमानता एवं पर्यावरणीय गिरावट जैसे कारकों से भी खाद्य सुरक्षा व सतत विकास को इस क्षेत्र में प्राथमिकता प्राप्त हुई है।
- वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कुल वैश्विक आबादी की आधी से ज़्यादा जनसंख्या निवास करती है जिसमें आगामी दशकों में उल्लेखनीय वृद्धि की संभावना है।
- यह बढ़ती आबादी खाद्य आपूर्ति पर अत्यधिक दबाव डाल रही है।
पर्यावरणीय गिरावट
- प्रदूषण, अत्यधिक मत्स्ययन, आवास क्षति एवं वनों की कटाई पर्यावरणीय क्षति के अतिरिक्त चालक हैं जो खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं।
- जल की कमी भी इस क्षेत्र में कृषि एवं गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली समस्या के रूप में उभर रही है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए ब्लू फ़ूड का महत्त्व
क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का आधार
समुद्री भोजन तटीय समुदायों की पाककला विरासत का अभिन्न हिस्सा है। ये मत्स्ययन, जलीय कृषि एवं संबंधित उद्योगों के माध्यम से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।
आवश्यक पोषक तत्त्वों से भरपूर
समुद्री भोजन प्रोटीन एवं ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे आवश्यक पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है जो तटीय क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा व पोषण सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक
ब्लू फ़ूड लैंगिक समानता, गरीबी उन्मूलन, भूखमरी को समाप्त करना, सभ्य कार्य दशाएं और असमानताओं को कम करने से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों को संबोधित करने के लिए क्षेत्र के समुद्री संसाधनों एवं पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता का दोहन करने पर भी बल देता है।
लचीली वैश्विक खाद्य प्रणाली का निर्माण
समुद्री भोजन, शैवाल एवं अन्य जलीय जीव भोजन के पौष्टिक व स्थायी स्रोत हैं जो वैश्विक खाद्य आपूर्ति में विविधता लाने, भूमि आधारित पारंपरिक कृषि पर दबाव कम करने और अधिक लचीली वैश्विक खाद्य प्रणाली सुनिश्चित करने में योगदान दे सकते हैं।
जैव विविधता का संरक्षण
- यह टिकाऊ मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि प्रथाओं के साथ संरेखित है जो जैव-विविधता संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ-साथ नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करता है।
- जलीय प्रजातियों एवं पारितंत्रों की अखंडता व विविधता को संरक्षित करने के लिए ब्लू फ़ूड के महत्व को स्वीकार करना आवश्यक है।
ब्लू फूड अर्थव्यवस्था में संभावनाएँ एवं अवसर
- ब्लू फूड दुनिया भर में सबसे ज़्यादा कारोबार किए जाने वाले खाद्य उत्पादों में से हैं जो वैश्विक खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने और लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करने में महत्वपूर्ण हैं।
- 10-12% वैश्विक आबादी आजीविका के लिए मत्स्ययन पर निर्भर है।
- ब्लू इकोनॉमी आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण एवं पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए महासागरीय संसाधनों का उपयोग करने पर केंद्रित है।
- ब्लू इकोनॉमी भूमि-आधारित प्रोटीन स्रोतों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए बढ़ती वैश्विक आबादी की आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संधारणीय समुद्री खाद्य उत्पादन को भी बढ़ावा देती है।
- ब्लू इकॉनमी एक प्रभावी सतत विकास रणनीति बनाने के लिए छोटे स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अर्थव्यवस्था के हर पहलू में महासागर को एकीकृत करने का प्रयास करती है।
- वर्ष 2030 तक ब्लू इकॉनमी के 2.5-3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
- अल्प विकसित देशों एवं विकासशील छोटे द्वीपीय राष्ट्रों में ब्लू इकॉनमी को गरीबी कम करने के साथ-साथ कोविड-19 महामारी से रिकवरी में सहायता के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखा जाता है।
- अफ्रीकी संघ का एजेंडा 2063 ब्लू इकॉनमी को ‘अफ्रीकी पुनर्जागरण’ की नई सीमा मानता है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्लू फूड पहल
देश एवं पहल
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विशेषताएँ
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भारत की नीली क्रांति
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- भारत ने सतत जलीय कृषि एवं मत्स्य पालन प्रबंधन को बढ़ाने के लिए नीली क्रांति पहल शुरू की।
- इसमें शामिल है :
- जलीय कृषि में प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देना
- मत्स्य प्रसंस्करण एवं भंडारण के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार करना
- अवैध मत्स्ययन प्रथाओं को रोकने के लिए नीतियों को लागू करना
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इंडोनेशिया की ब्लू इकोनॉमी पहल
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- इंडोनेशिया ने सतत मत्स्य पालन को बढ़ावा देने एवं टिकाऊ जलीय कृषि प्रथाओं को विकसित करने, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए समुद्री स्थानिक योजना बनाने व स्थानीय समुदायों में उत्तरदायी मत्स्ययन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू किया है।
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ऑस्ट्रेलिया की मरीन स्टीवर्डशिप काउंसिल (MSC) प्रमाणन
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- कई ऑस्ट्रेलियाई मत्स्यपालकों ने MSC प्रमाणन प्राप्त किया है जो संधारणीय मत्स्ययन प्रथाओं के पालन को दर्शाता है।
- यह प्रमाणन मछली स्टॉक की स्थिरता सुनिश्चित करने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इन उत्पादों को बढ़ावा देने में भी मदद करता है।
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प्रशांत द्वीप समूह समुद्री संरक्षित क्षेत्र
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- कई प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों ने समुद्री जैव विविधता को संरक्षित करने और संधारणीय रूप से मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए समुद्री संरक्षित क्षेत्र स्थापित किए हैं।
- ये क्षेत्र महत्वपूर्ण आवासों की रक्षा करते हैं और संधारणीय मत्स्ययन प्रथाओं व इकोटूरिज्म के माध्यम से स्थानीय समुदायों का समर्थन करते हैं।
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वियतनाम में जलीय कृषि विकास
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- वियतनाम ने सतत जलीय कृषि, विशेष रूप से झींगा व मछली पालन में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है।
- बेहतर फ़ीड प्रबंधन एवं जल गुणवत्ता निगरानी जैसे सर्वोत्तम तरीकों को अपनाने से उत्पादन को बढ़ावा देते हुए पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में मदद मिली है।
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खाद्य सुरक्षा के लिए ब्लू फूड अपनाने की चुनौतियाँ
- अत्यधिक एवं अवैध तथा अप्रतिबंधित एवं अनियमित (IUU) मत्स्ययन मत्स्य पालन प्रबंधन व सततता प्रयासों को कमज़ोर करके मछली स्टॉक और पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण में वृद्धि करता है।
- समुद्र का बढ़ता तापमान एवं अम्लीकरण, चरम मौसम की घटनाएँ और समुद्री जलस्तर में वृद्धि भी मत्स्य पालन व जलीय कृषि संचालन को बाधित कर रही है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट, कृषि अपवाह एवं औद्योगिक प्रदूषकों सहित स्थलीय स्रोतों से प्रदूषण से समुद्री प्रदूषण व आवास क्षरण में वृद्धि होती है।
- यह जल की गुणवत्ता, समुद्री जैव-विविधता एवं जलीय प्रजातियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
- सीमित बुनियादी ढाँचा, तकनीक एवं बाज़ार सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुँच ब्लू फूड मूल्य श्रृंखलाओं की दक्षता व प्रतिस्पर्धात्मकता को बाधित करती है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री संसाधनों की बढ़ती माँग मछुआरों, जलीय कृषि संचालकों, तटीय समुदायों एवं औद्योगिक क्षेत्रों सहित हितधारकों के बीच संसाधन प्रतिस्पर्धा व संघर्ष उत्पन्न कर सकती है।
- तटीय समुदाय व छोटे पैमाने के मछुआरे गरीबी, खाद्य असुरक्षा, वैकल्पिक आजीविका की कमी और सामाजिक असमानताओं सहित सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
ब्लू फूड को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप
एक मजबूत विनियामक ढाँचे की स्थापना
- सरकारों को सतत मत्स्य प्रबंधन, समुद्री संरक्षण एवं उत्तरदाई जलीय कृषि प्रथाओं का समर्थन करने वाली नीतियों को प्राथमिकता देना।
- मत्स्ययन कोटा के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित करना, महत्वपूर्ण समुद्री आवासों की सुरक्षा करना और अवैध एवं अनियमित मत्स्ययन निपटने के उपायों को लागू करना।
- समुद्री संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता व स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए सरकारों को जलीय कृषि प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने के लिए अनुसंधान एवं नवाचार में निवेश करना।
प्रोत्साहन एवं क्षमता निर्माण पर बल
- संधारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करने वाली सहायक वित्तीय एवं शैक्षिक वातावरण बनाने की आवश्यकता।
- ब्लू फूड सेक्टर के भीतर संधारणीयता व नवाचार के लिए प्रतिबद्धता दर्शाने वाली परियोजनाओं को अनुदान, कम ब्याज वाले ऋण एवं सब्सिडी जैसे वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
- विकास बैंक उन जलीय कृषि परियोजनाओं को रियायती ऋण प्रदान कर सकते हैं जो पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाती हैं।
- निवेशक ऐसे मत्स्य पालन का समर्थन कर सकते हैं जिनका उद्देश्य पर्यावरणीय प्रबंधन और सामाजिक समानता में सुधार करना है।
- ये वित्तीय तंत्र छोटे पैमाने के मछुआरों और जलीय कृषि संचालकों के लिए प्रवेश बाधाओं को कम कर सकते हैं, जिससे संधारणीय ब्लू फूड उत्पादन में व्यापक भागीदारी एवं निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
- स्थानीय समुदायों और हितधारकों को ब्लू फूड आधारित आजीविका अपनाने के लिए आवश्यक कौशल एवं ज्ञान के साथ सशक्त बनाने के लिए क्षमता निर्माण पर भी पर्याप्त बल देना।
- यह व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों, तकनीकी सहायता और ब्लू फूड सेक्टर की जरूरतों के अनुरूप शैक्षिक पहलों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- संधारणीय मत्स्ययन प्रथाओं, जलीय कृषि प्रबंधन एवं समुद्री संरक्षण पर कार्यशालाएँ मछुआरों व जलीय कृषि किसानों की विशेषज्ञता को बढ़ा सकती हैं।
- गैर-सरकारी संगठनों और शैक्षिक संस्थानों के बीच साझेदारी से ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का प्रसार सुगम हो सकता है जिससे ब्लू इकॉनमी को बढ़ावा देने वाला अधिक सूचित व सक्षम कार्यबल तैयार हो सकता है।
बाजार विकास एवं पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना
- आर्थिक व्यवहार्यता एवं दीर्घकालिक स्थिरता के लिए ब्लू फ़ूड के लिए बाजार विकसित करना आवश्यक।
- बुनियादी ढांचे के विकास का समर्थन देकर, बाजारों तक पहुँच में सुधार करके और ब्लू फ़ूड के पोषण एवं पर्यावरणीय लाभों को बढ़ावा देकर इसके लिए बाजार के अवसर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
- ब्लू बॉन्ड जारी करने जैसी पहल समुद्री एवं महासागर आधारित परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए समर्पित निवेश को आकर्षित कर सकती है।
- पर्यावरणीय स्थिरता के लिए बाजार विकास रणनीतियों में ब्लू फ़ूड उत्पादन पारिस्थितिक पदचिह्नों को कम करने के साथ समुद्री पारितंत्र के उत्थान के समर्थन को सुनिश्चित करना।
आगे की राह /सुझाव
- समुद्री संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए राष्ट्रों के बीच संधारणीय प्रथाओं, तकनीकी नवाचारों व सहयोगी प्रयासों को एकीकृत करने वाले व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
- इस नीति का लक्ष्य समुद्री पर्यावरण का लाभ उठाकर ऐसे समाधान विकसित करना है जो जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के साथ ही हिंद-प्रशांत के विविध राष्ट्रों के लिए लचीली व सुरक्षित खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करें।
- प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करना, टिकाऊ भूमि-उपयोग प्रथाओं को बढ़ावा देना और अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ाना ब्लू फ़ूड वातावरण की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
- इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक इक्विटी, आर्थिक लचीलापन एवं सांस्कृतिक विचारों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्लू फ़ूड शासन व प्रबंधन रणनीतियों को एकीकृत करता है।