हाल ही में, महाराष्ट्र में समुद्रीय तटरेखाओं पर नीले ज्वार (Blue Tide) की घटना देखी गई है। नीले रंग के इस प्रतिदीप्त (Fluorescent Blue Hue) ज्वार को जैव-संदीप्ति (Bioluminescence) भी कहा जाता है।
ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 के बाद से लगभग हर वर्ष इस प्रकार की घटनाएँ नवम्बर- दिसम्बर के महीनों में देखी जा रही हैं।
सामान्यतः समुद्री लहरों की हलचल द्वारा सूक्ष्म समुद्री पादपों, डाइनोफ्लैगलेट्स (Dinoflagellates) के अंदर स्थित प्रोटीन में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं के कारण ये सूक्ष्म पादप नीली रोशनी छोड़ते हैं, जिसे नीले ज्वार के नाम से जाना जाता है।
अतिपोषण या यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) को इस घटना का मुख्य कारक माना जाता है। यूट्रोफिकेशन वह स्थिति होती है जिसमें किसी जलीय वातावरण में सूक्ष्म पादपों या प्लवकों की संख्यां में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।
नीले ज्वार की यह स्थिति अत्यंत खतरनाक भी हो सकती है, क्योंकि इस दौरान न सिर्फ डाइनोफ्लैगलेट्स का भक्षण करने वाली मछलियाँ या समुद्री जीव विषाक्त हो सकते हैं बल्कि उनको आहार के रूप में प्रयोग करने वाले लोग भी फ़ूड पोइज़निंग का शिकार हो सकते हैं।